मिट गए जो मन्दिर ख़ातिर, लहू बहा शरीरों से।
अयोध्या की माटी धन्य हुई, राम भक्त वीरो से।
अयोध्या की और कूच था, भक्ति का दिव्य पुंज था।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक, जय श्रीराम का गूँज था।
भगवा सारी सड़क रही थी, भुजाएँ सबकी फड़क रही थी।
राम काज होकर रहेगा,संकल्प की बिजली कड़क रही थी।
मन्दिर का बस शोर था, हिंदुत्व का जोर था।
इतिहास रचने वाला था, दृश्य भाव विभोर था।
मिला दिल से दिल का धागा था, जो ना मिला वो अभागा था।
दुनिया सारी देख रही थी, हिन्दू अबकी जागा था।
फिजाओ में भक्ति घोल रहे थे, साहस को वो तौल रहे थे।
विवादित ढाँचे पर चढ़कर, जय श्रीराम बोल रहे थे।
हथौडी छैने चलने लगे, जोश के बादल घुमड़ने लगे।
राम भूमि पर मूंग दलने वाले, ढाँचे के पत्थर ढहने लगे।
मैदान कुछ कुछ साफ था, माहौल अब शांत था।
मिटा दिया आज रामभक्तों ने, बाबर ने किया जो पाप था।
वो आधा काम कर गए, पूरा हमे करना था।
‘मैदान’ साफ था, बस मन्दिर ही बनना था।
हो गए बलिदान वो, मन्दिर की चाह में।
26 सालो से, काँटे भरे थे राह में।
आखिर आया वो दिन, रामभक्तों का ह्रदय खिल गया।
तारीख पर तारीख कोर्ट से, राममंदिर मिल गया।
रामजन्मभूमि पर, भव्य मंदिर का स्वप्न पूरा होगा।
बिना राम भवन निर्माण के, रामराज्य अधूरा होगा।