गुस्ताखी माफ़ हरियाणा: जब डीएसपी ने दीप्ति उमाशंकर को कहा, भागो मैडम -भागो।
पवन कुमार बंसल
जब डीएसपी ने दीप्ति उमाशंकर को कहा, भागो मैडम -भागो। डीएसपी की सलाह और हिसार की तत्कालीन एस डी एम दीप्ति उमाशंकर की सूझबूझ से मामला सुलझा।
यह किस्सा उन आईएएस अफसरों के लिए नसीहत है जो सहयोगियों की सलाह नहीं मानते। आमतौर पर आई ए एस अफसर खुद को सुप्रीम मानते है और किसी की सलाह लेना पसंद नहीं करते। लेकिन कई बार सहयोगियों की सलाह बहुत बड़े संकट से निकाल देती है।
दीप्ति उमाशंकर हिसार की एस डी एम थी। नगरपालिका कर्मचारियों ने हड़ताल कर दी।हड़ताल में सफाई कर्मचारी भी कूद पड़े।
अब सफाई कर्मचारी जब मामलो मे कूद जाए तो उनकी बाणी निंयंत्रण में ,तो रहती नही, और उनको अपने कर्मचारी नेता से उपर धरती पर कोई लगता भी नही। ऐसे मे धरने पर बैठे इन के समुह मे जब ये एसडीएम साहिबा धरना उठाने के लिए कहने गई, तो साथ मे पुलिस डीएसपी भी, को भी ले गयी। पुलिस को देखकर हड़ताली कर्मचारी होश खो बैठे।
जैसे ही धरना हटाने को कहा तो महिला सफाई कर्मचारियों ने बिना फिल्टर की गई गालियो के श्लोक पढने शुरु कर दिए। मैडम कुछ समझी कुछ नहीं समझी। इधर रोष बढते देख डीएसपी को कहा कि ये तो गालियां निकाल रही है, क्या करना चाहिये???तो बिगड़ती व्यवस्था और आवेश देख के डीएसपी बोले ,की अब तो भागने मे ही भलाई है!! भागो मेडम।
अनुभवी रहे होगे डी एस पी। कारण यूनियन के लोग इन लडा़कू लोगो यानी सफाई कर्मचारियों का पूरा उपयोग करते रहे है। यदि इनकी गालियो से भड़क के लाठी चार्ज करते तो उन्हें तो यही चाहिये। फिर उससे उत्पन्न रोष का फायदा पुरी स्टेट में उठाते।उधर दीप्ति उमाशंकर जी भले नयी नयी थी, पर बहुत ही विवेकशील और यथार्थवादी अधिकारी रही है. इसलिए उन्होंने इसे अपनी ईगो का मामला नहीं बनाया और सूझबूझ से हालत पर काबू पाया।
इनके पति वी उमाशंकर जी का तो कहना ही क्या। गजब की बात तो यह कि वी उमांशंकर के पिताजी खुद सब्जी मंडी जाकर सब्जी लाते वो भी नकद भुगतान करके। दीप्ति उमाशंकर हिसार की डीसी और वी उमाशंकर जी भी बिजली बोर्ड मे उच्च पदो पर रहे। मार्केटिंग बोर्ड के कर्मचारी कृष्ण कुमार काकड़ का कहना है के उनके एक इशारे पर घर पर सब्जी फलो के ढेर लगा देनेवालो की कमी नही, थी और हमारे मंडी कमेटी वाले तो ऐसी सेवा देकर खुद कृतज्ञ अनुभव करते।
उमाशंकर ने हिसार में बिजली बोर्ड में रहते ,बोर्ड की कीमती जमीन एक नेता के नाम से बने ट्रस्ट को नहीं दी तमाम दबाव के बावजूद। रोहतक में भी उन्होंने एस डी एम रहते एक तत्कालीन मंत्री के नाम से जमीन जो सरकार की थी का म्युटेशन सरकार के नाम कर दिया था।
मुझे लाल बहादुर शास्त्री अकादमी में जाने का निमंत्रण मिला है। वहा में आई ए एस अफसरों को बताऊंगा की नेता के दबाव के बावजूद भी नौकरी की जा सकती है और वो भी शान से।