सनातन धर्म में सोमरस का आशय मदिरा सेवन नही है, ना ही सोमरस नशीला पदार्थ है.

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प्रताप सिंह। “देवता शराब नही पीते थे”।
सोमरस सोम के पौधे से प्राप्त था , आज सोम का पौधा लगभग विलुप्त है।
शराब पीने को सुरापान कहा जाता था , सुरापान असुर करते थे , ऋग्वेद में सुरापान को घृणा के तौर पर देखा गया है।
टीवी सीरियल्स ने भगवान इंद्र को अप्सराओं से घिरा दिखाया जाता है और वो सब सोमरस पीते रहते हैं , जिसे सामान्य जनता शराब समझती है।
सोमरस , सोम नाम की जड़ीबूटी थी जिसमे दूध और दही मिलाकर ग्रहण किया जाता था , इससे व्यक्ति बलशाली और बुद्धिमान बनता था ,
जब यज्ञ होते थे तो सबसे पहले अग्नि को आहुति सोमरस से दी जाती थी।
ऋग्वेद में सोमरस पान के लिए अग्नि और इंद्र का सैकड़ो बार आह्वान किया गया है।
आप जिस इंद्र को सोचकर अपने मन मे टीवी सीरियल की छवि बनाते हैं वास्तविक रूप से वैसा कुछ नही था।
जब वेदों की रचना की गयी तो अग्नि देवता , इंद्र देवता , रुद्र देवता आदि इन्ही सब का महत्व लिखा गया है।
मन मे वहम मत पालिये।
आज का चरणामृत/पंचामृत सोमरस की तर्ज पर ही बनाया जाता है बस प्रकृति ने सोम जड़ीबूटी हमसे छीन ली
तो एक बात दिमाग मे बैठा लीजिये , सोमरस नशा करने की चीज नही थी ,
आपको सोमरस का गलत अर्थ पता है अगर आप उसे शराब समझते हैं।
शराब को शराब कहिए सोमरस नहीं ।
सोमरस का अपमान मत करिए , सोमरस उस समय का चरणामृत/पंचामृत था ।
कहीं पढ़ रहा था , किसी ने पोस्ट किया था कि देवता भी सोमरस पीते थे तो हम भी पियेंगे तो अचानक मन मे आया तो लिख दिया ,

साभार – विवेक दर्शन पत्रिका, प्रतापसिंह

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