भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद द्वारा “एक भारत श्रेष्ठ भारत के लिए इतिहास और इतिहास दृष्टि” विषय पर समारोह का आयोजन

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 2जनवरी। आज 2 जनवरी को भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद द्वारा “तृतीय प्रो. सतीश चंद्र मित्तल स्मृति व्याख्यान” में “एक भारत श्रेष्ठ भारत के लिए इतिहास और इतिहास दृष्टि” विषय पर साहित्य अकादमी, 35, फिरोजाबाद रोड नई दिल्ली में एक समारोह आयोजित किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ बाल मुकुंद पाण्डेय( राष्ट्रीय संगठन सचिव, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजन) ने की।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि प्रो. रजनीष कुमार शुक्ल( महात्मा गांधी अन्तराष्ट्रीय हिन्दी विश्व विद्यालय, वर्धा महाराष्ट्र ) रहे।
डॉ सौरभ मिश्रा ने कार्यक्रम का संचालन किया।
कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि इतिहास धर्म है।
रामायण इतिहास भी है और धर्म भी है। साहित्य व इतिहास एक दूसरे से जुड़े हुए है। 40-45 जन जातियों का समूह है नागा जैन जाति। इतिहास का काल खंड कहता है बहुत सारी जातियों को अधिसूचित किया गया, जनजातियों का एक समग्र इतिहास है। हिंदुस्तान का मध्य क़ालीन इतिहास दो हिस्सों में बंटा है- एक हिंदुस्तान व दक्षिण का इतिहास है। हिंदुस्तान में दक्षिण किसने बनाया
नदियों के विकास व स्वरूप पर भी कई जातियां बनी। श्रीमद भागवत का काल खंड रमनुजाचार्य ने लिखा 1000वर्ष पहले मतलब श्रीमद भागवत का काल उससे पुराना तो होगा धरती की चर्चा, दीपों की और समुद्रों की। अंत में भारतवर्ष की चर्चा होती है जिसका निर्माण नदियों व पर्वतों से है जिसने गंगा व जमुना नहीं है। हिमालय भी नहीं फिर सत्य क्या है? भारतवर्ष अखंड सत्य है।

उन्होंने कहा कि रामेश्वरम से हिंद कुश रामटेक से अलकापूरी जो आज तिब्बत है जिसका ज़िक्र कालिदास ने किया। विक्रमादित्य का काल भारतीय इतिहासकारों का बोध तिब्बत भारत से 1911 से वर्मा 1937 श्रीलंका1933-34 से अलग होता है। ये सब भारत के अंग रहे हैं। बहादुरशाह ज़फ़र का रंगूँन जेल जो नहीं था। वो ब्रह्म देश था जो बाद में वर्मा हो गया। किसी ने लिखा रक्तहिन क्रांति की वजह से भारत को आज़ादी मिली। लेकिन 1857 से आज़ादी तक 35 लाख लोग मारे गए। फिर कैसी रक्तहीन कैसा। 30-12-1946 को बोस ने अंडमान में भारत का जो झंडा फहराया था उसका बहुत बड़ा मतलब था। शेक्सपियर की अंग्रेज़ी काल, ब्रिटिश की अंग्रेज़ी नहीं थी। वो ऐंग्लो सेक्सन था।।
प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा कि खान अब्दुल ग़फ़्फ़ार खान -सीमांत गांधी का मतलब जो कांग्रेस ने बताया। जो हिंद कुश तक था। खान हिंद कुश की तराई से आते थे। भारतीय इतिहास का सृजन स्मृति भ्रंश से हुआ है। स्मृति लोप की बीमारी जब हो जाए तो क्या होगा। ये इतिहासकारों को स्मृति भ्रंश के शिकार हुए थे। कई प्रकार की भ्रांतियाँ रही। मध्य काल का इतिहास संस्कृत की उपेक्षा से नहीं लिखा जा सकता है। परसियन में ही नहीं, क़ुतुब मीनार 2 साल में बना था क्या ? जहां से आए थे वहाँ पर आधी मीनार भी बनाया था क्या ? बाबर ने पहली बार तोपखाने का प्रयोग नहीं किया था। उनसे 100 साल पहले तमिलनाडू के शिव सागर में आज़ भी बारूद निर्माण के अवशेष है।

डॉक्टर रजनीश ने खीर व टेढ़ी खीर व बगुला की कहानी व इतिहास के भ्रम की भी व्याख्या की। उन्होंने कहा कि काल ज़िंदा लोगों का होता भारतीय इतिहास को चिरंतन, निरंतरता की ज़रूरत है और इस अमृत काल में इतिहास लिखा जा रहा है।

अध्यक्षय डॉक्टर बालमुकुंद पांडेय ने अपने संबोधन में कहा कि ऋषि की कल्पना कैसी होती है वो प्रो सतीश चंद्र मित्तल जी जैसे होते हैं। उनका अंतिम साँस कर्म पथ पर रहे। उन्होंने मित्तल जी के जीवन व कृतियों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि श्री मित्तल अपनी समस्याओं को परिवार संगठन व देश पर नहीं लादा। मौत ज़ो बिना आह के निकले- वही हुआ। 56 पुस्तकें देकर गए हैं मित्तल जी। उन्होंने संजय धृतराष्ट्र संवाद पर चर्चा करते हुए कहा कि ऐसे कई भ्रांतियाँ रही है। कांग्रेस 1885 में बनी 1926 में नए भारत की बात कही गयी। मित्तल जी के मन में मलाल रह गया उपनिषद पर कुछ नहीं लिख सके। बड़े विद्वान छोटे को विद्वान नहीं मानते। स्वामी विवेकानंद की इतिहास दृष्टि व नेहरू की इतिहास दृष्टि पर भी लिखा। नेहरू की इतिहास दृष्टि उनकी कई ग़लतियों का परिणाम था। संगठन के साथ कार्यकर्ता का कैसे एकात्म होता है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ इस बात को ख़ूब समझता है। डॉक्टर बालमुकुंद पांडेय ने कहा कि भारत राष्ट्र है जो एक आध्यात्मिक इकाई है। राष्ट्र को दृष्टि को समग्रता से देखने की आवश्यकता है। इतिहास क्यो पढ़ते है ? काशी का ज़िक्र करते हुए बाल मुकुंद जी ने इतिहास व प्रासंगिकता पर भी प्रकाश डाला। भारत के इतिहास के प्रति घात हुआ। मालिक नौकर समवाद की बात की। उन्होंने कहा कि ये अमृत काल है। भारत का इतिहास भारतीय दृष्टि से देखने का है जिससे स्वराज से स्वतंत्र की ओर ले जा सकें। दिल्ली केंद्रित इतिहास नहीं हों। प्रारम्भ कब से है। हमें पता नहीं है। इसलिए जीव की उत्पत्ति से हमारा प्रारम्भ जुड़ा हुआ है। 647 तक जाता है। प्रारम्भ से हर्ष तक। 747 से 1760 तक का संघर्ष का काल है। जहां जहां हम हारे वो इतिहास का अंग हो गया। जहां हम जीते वो हिस्सा नहीं बनाया गया। 1191 का काल को इतिहास में नहीं जोड़ा गया। 1947 से 2014 तक सांस्कृतक संकट का काल है। पहले गंदा पानी गंगा में नहीं जाता था। 1947 के पहले ज़ो हिंदू राष्ट्र था। 90 हज़ार कूजेक गंदा पानी गंगा में जाता रहा था। अब ये काल भटकाव काल से अमृत काल का समय है। ये ICHR और वर्धा विश्वविद्यालय के माध्यम से भारत एक श्रेष्ठ भारत विश्व के परम भारत बने। भारत श्रेष्ठ तो हम सब श्रेष्ठ।

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