कांग्रेस में आपसी सिर फुटौव्वल कम थमेगी?

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त्रिदीब रमण
त्रिदीब रमण

मुद्दतों साथ चले हो और आज पांव पत्थरों से बचा रहे हो

भले तेरी नज़रें आसमां पर है पर तुम क्यों गर्त में जा रहे हो’

कांग्रेस को अपनी प्रतिद्वंद्वीं भाजपा से कहीं ज्यादा अपने घर में ही अपनों से लड़ना पड़ रहा है, राहुल गांधी को भी इस बात का इल्म तब हुआ जब अपनी संसद की सदस्यता जाने के बाद उन्होंने अपने घर पर कोई दो दर्जन ऐसे कांग्रेसी नेताओं को बुलाया जो दिल्ली एनसीआर में भीड़ जुटाने की कूवत रखते हैं। राहुल ने इन नेताओं से कहा कि ’दो दिन बाद से विरोध प्रदर्शन शुरू होंगे कम से कम दिल्ली में तो लाखों की भीड़ जुटे।’ यह कह कर राहुल वहां से चले गए। राहुल के वहां से जाने के बाद ये नेतागण केसी वेणुगोपाल के इर्द-गिर्द कदमताल करने लगे। दिल्ली के एक नेता ने तो यह कहते हुए भीड़ जुटाने से पल्ला झाड़ लिया कि ’कांग्रेस को दिल्ली की सत्ता से बाहर हुए दस साल हो गए, उसका वोट प्रतिशत भी दिल्ली में महज़ 2 फीसदी पर सिमट आया है तो यहां भीड़ कहां से आएगी।’ सो ले-देकर इस बात पर सहमति बनी कि भीड़ के लिए पश्चिमी यूपी, हरियाणा और राजस्थान का रुख किया जाए। सो, अगले रोज जब कांग्रेस की ’लोकतंत्र बचाओ मशाल शांति मार्च’ लाल किले से लेकर चांदनी चौक के टाउन हॉल तक निकली तो मशालों की चमक फीकी थी, बड़े नेताओं के चेहरे भी उतरे हुए थे, अगले रोज राहुल ने अपने कोर ग्रुप की मीटिंग में किंचित खीझ उतारते हुए कहा-’जितनी ऊर्जा आप मुझे देंगे, मैं उतनी ही मजबूती से खड़ा हो पाऊंगा।’

फर्जीकांत बनाम नगरवधु

 ’फर्जीकांत बनाम नगरवधु वाली लड़ाई अब सड़कों पर उतर आई है, सियासत का यह उदंड चेहरा अब लोगों के बीच है। एक बड़बोले भाजपा सांसद और प्रखर तृणमूल नेत्री की आपसी तू-तू मैं अब ट्विटर और सोशल मीडिया की परिधि लांघ एक विद्रूप हकीकत बन गई है। कहने वाले अब ये कहने लगे हैं कि ’इन दोनों राजनेताओं की लड़ाई में अब देश के दो प्रमुख औद्योगिक घरानों की टंकार सुनाई देने लगी है।’ सुनने में यह भी आया है कि संकट झेल रहे इस औद्योगिक समूह के एक कर्मचारी ने एक अहम डायरी एक अखबार समूह को सौंप दिया है, जिसमें राजनेताओं और मीडिया समूहों को दिए गए लेन-देन का ब्यौरा है। इस कर्मचारी को कंपनी ने पहले ही काम से निकाल दिया था। अब यह अखबार समूह इस डायरी के हवाले से कोई रिपोर्ट छापने से पहले इसकी कानूनी वैद्यता की विभिन्न पहलुओं की जांच कर रहा है। सबसे दिलचस्प तो यह कि उस डायरी में उसी अखबार समूह में काम करने वाली एक मूर्धन्य पत्रकार का भी जिक्र है, जिसे इस उद्योग समूह ने अपने पक्ष में ट्वीट करने के लिए कथित तौर पर पैसे दिए हैं।

क्या नई राह तलाश रहे हैं नीतीश?

सीबीआई और ईडी का शिकंजा जैसे-जैसे तेजस्वी यादव पर कसता जा रहा है, गठबंधन के मुखिया नीतीश कुमार की बेचैनी बढ़ती जा रही है। जो राह वह पीछे छोड़ आए थे, चोरी छुपे अब वे उन राहों को तकने लगे हैं। सो, नवरात्रि के पूजा के मौके पर एक रोज वे भाजपा नेता और अमित शाह के करीबी माने जाने वाले संजय मयूख के घर जा पहुंचे, पूजा का प्रसाद ग्रहण करने के बाद माना जा रहा है कि इन दोनों नेताओं के बीच आगे की राजनीति को लेकर बेहद गूढ़ बातचीत भी हुई। इसके कुछ दिन बाद नीतीश कथित तौर पर एक भाजपा थिंकटैंक से भी मिले। सूत्रों की मानें तो ईडी ने राजद नेता और बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को गिरफ्तार करने का पूरा प्लॉन बनाया हुआ था, पर इत्तफाक से उस वक्त बिहार विधानसभा का सत्र चल रहा था और तेजस्वी की गर्भवती पत्नी से ईडी की पूछताछ बिहार में एक बड़ा मुद्दा बना हुआ था, सो ईडी और सीबीआई को तब बैकफुट पर आना पड़ा था, पर जांच एजेंसियों से जुड़े सूत्र खुलासा करते हैं कि तेजस्वी को अगले माह यानी मई में गिरफ्तार किए जाने की पूरी संभावना है।

सोरेन सरकार कब तक खैर मनाएगी?

झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने जब से सत्ता का स्वाद चखा है तब से लगातार उसके गिरने की भविष्यवाणियां हो रही हैं। सूत्रों का दावा है कि पिछले महीने ही सरकार गिराने के तमाम बंदोबस्त कर लिए गए थे। यह भी दावा हो रहा है कि झामुमो और कांग्रेस के उन चंद विधायकों को चिन्हित भी कर लिया गया था और उन्हें 30 करोड़ रुपयों की भारी भरकम राशि भी ऑफर की गई थी ताकि वे सोरेन सरकार से अपना समर्थन वापिस लेकर बाहर आ सकें। पर इस ऑपरेशन में जिस औद्योगिक समूह को पैसा लगाना था वह एक अप्रत्याशित संकट में फंस गया। अब इस औद्योगिक समूह का दर्द है कि जब भाजपा एक पार्टी के तौर पर ठीक से इनका बचाव ही नहीं करती तो वे भाजपा के लिए इतना रिस्क क्यों लें? वहीं भाजपा रणनीतिकारों ने इस समूह को यह भी सिग्नल दे दिया है कि संसद में अगर यह मामला इतना ही हंगामीखेज बना रहता है तो सरकार इस मामले पर जेपीसी के गठन के लिए बाध्य हो जाएगी, भले ही समूह को इस मामले में क्लीनचिट मिल जाए। पर कहते हैं कि समूह को जेपीसी के गठन का विचार ही रास नहीं आ रहा, इनका कहना है कि जेपीसी में समूह की इतनी छिछालेदारी हो जाएगी तो इसके बाद क्लीनचिट मिलने का क्या औचित्य रह जाएगा?

क्या केजरीवाल से भी होगी पूछताछ?

विश्वस्त सूत्रों का दावा है कि आप नेता मनीष सिसोदिया की सितंबर महीने में जेल से रिहाई संभव है। लेकिन इससे पहले सीबीआई और ईडी आप मुखिया अरविंद केजरीवाल से पूछताछ कर सकती है। कहते हैं सीबीआई के हाथ एक फोन रिर्कार्डिंग लगी है जिसमें उस बातचीत का खुलासा है कि कैसे पंजाब से राज्यसभा सीट के ऐवज में लेनदेन की बात हो रही है। सीबीआई और कुछ पुख्ता सबूत जुटाने की तैयारियों में लगी है।

 

 भाजपा के साथ क्यों नहीं जा रहे अकाली

कोई दो सप्ताह पूर्व संसद में अकाली नेता हरसिमरत कौर बादल प्रधानमंत्री से जाकर मिलीं। कहते हैं बातों ही बातों में पीएम ने कहा कि ’पंजाब में एक बार फिर से भाजपा व अकाली दल को मिल कर चुनाव लड़ना चाहिए।’ इस प्रस्ताव को लेकर हरसिमरत बादल अपने गृह राज्य पहुंचीं और अपने पति सुखबीर बादल को पीएम से हुई अपनी बातचीत का संपूर्ण ब्यौरा दिया। इसके बाद सुखबीर ने कुछ प्रमुख अकाली नेताओं यानी अपने कोर टीम की एक बैठक बुलाई और भाजपा की ओर से मिले इस प्रस्ताव का जिक्र किया। बैठक में मौजूद अकाली नेताओं ने समवेत स्वरों में इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि ’अभी पंजाब में भाजपा का कोई नामलेवा नहीं है और अगर हम उनके साथ गए तो हमारा भी कहीं वही हश्र न हो जाए।’ सो यह मामला फिलहाल तो खटाई में लगता है।

तेजस्वी अगर पहले चेत जाते

तेजस्वी यादव के लिए आने वाला वक्त मुश्किल भरा हो सकता है। भाजपा की पूरी कोशिश होगी कि किसी भी प्रकार से जांच एजेंसियां उन्हें दोषी करार दे ताकि कोर्ट में भी इस पर मुहर लग जाए और वे चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दिए जाएं। कहते हैं जांच एजेंसी से जुड़े बिहार के कुछ अधिकारियों ने तेजस्वी को पहले ही आगाह कर दिया था कि ’वे अपना कागज-पतर  ठीक कर लें, जल्दी ही उनके परिवार पर दबिश होने वाली है’, पर तेजस्वी ने उनकी बातों को तब मजाक में उड़ा दिया था। इसके बाद राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने अपने घर दिल्ली में तेजस्वी के सम्मान में एक चाय पार्टी रखी थी, जिसमें विभिन्न पार्टियों के नेताओं के अलावा आईबी के एक पूर्व डायरेक्टर भी तशरीफ लाए थे। ये पूर्व डायरेक्टर भी बिहार से ही हैं। उस पूर्व डायरेक्टर ने तब ही तेजस्वी को सावधान करते हुए कहा था-’आपके घर सीबीआई व ईडी की पूरी टीम छानबीन के लिए आने वाली है।’ तब तेजस्वी ने उनकी बातों को यह कहते हुए मजाक में उड़ा दिया था कि ’पंडित जी ध्यान रहे कि हम पंडित नहीं हैं न, आएंगे तो लाठी से लाठी बजा देंगे।’ ऐसे ही मौकों के लिए कहा गया है-विनाशकाले, विपरीत बुद्धि!

और अंत में

भाजपा नेतृत्व की योजना है कि 2024 के आम चुनाव अपने तयशुदा वक्त पर ही हों पर उस चुनाव के साथ मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव भी करवा लिए जाएं, ताकि इन राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी लोकसभा चुनाव की तर्ज पर मोदी के चेहरे पर वोट पड़ जाए।

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