देशबंधु के दागी संपादक ने डराने के लिए भेजा नकली सा नोटिस. कमिश्नर हथियार का लाइसेंस रद्द करें, PIB कार्ड कैसे बन गया? . पत्रकार है या व्यापारी? कमिश्नर संजय अरोरा कमिश्नर संजय अरोरा दरबारी /दागी/दलाल/छिछोरे पत्रकारों से सावधान रहना.
"उसूलों पर जहां आंच आए तो टकराना जरुरी है जो जिंदा हो तो जिंदा नजर आना जरूरी है"- वसीम बरेलवी
इंद्र वशिष्ठ
महल की छत पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता है, यह बात देशबंधु के संपादक कथित पत्रकार जोगेंद्र सोलंकी पर खरी उतरती है.
जोगेंद्र सोलंकी ने एक नकली सा कानूनी नोटिस भेजा है. इस नकली से नोटिस ने जोगेंद्र सोलंकी के दिमागी दिवालियापन को एक बार फिर उजागर कर दिया है.
नकली सा नोटिस –
यह नकली सा कानूनी नोटिस आधा अधूरा है इसमें वह आखिरी पन्ना ही नहीं है जिसमें वकील के हस्ताक्षर होते हैं. किसी भी पेज पर जोगेंद्र सोलंकी के हस्ताक्षर भी नहीं हैं. 27 मार्च को मिले खराब ड्राफ्टिंग वाले 6 पेज के इस नोटिस में सत्रह पैराग्राफ है सत्रहवां पैराग्राफ भी अधूरा है. इस नोटिस में यह लिखा ही नहीं गया कि वह मेरे से क्या चाहता हैं.
इस नोटिस में बार-बार सिर्फ एक ही बात दोहराई गई है कि जोगेंद्र सोलंकी बहुत सम्मानित व्यक्ति/ पत्रकार है.
उसके बारे में झूठी, बेबुनियाद बातें लिख कर उसकी मान हानि की गई है.
इसमें यह कहीं नहीं लिखा गया कि वे कौन-कौन सी बातें हैं जो गलत या बेबुनियाद है.
कथित नोटिस वाले लिफाफे पर वकील का नाम अनिल मोहन और पता तीस हजारी कोर्ट वेस्टर्न विंग लिखा है. इस बिना हस्ताक्षर वाले आधे अधूरे नोटिस से यह पता ही नहीं चलता कि यह नोटिस वाकई इस वकील ने ही भेजा है या वकील के नाम का किसी ने दुरूपयोग किया है.
कोई भी विद्वान वकील बिना हस्ताक्षर के आधा अधूरा नोटिस नहीं भेजता.
डराने का हथकंडा-
वकील/मुवक्किल के हस्ताक्षर के बिना भेजे गए कागज़ पत्र को अदालत द्वारा कानूनी नोटिस नहीं माना जाता है. ऐसा नकली सा नोटिस सिर्फ डराने धमकाने की नीयत से ही भेजा जाता है. क्योंकि भेजने वाले को डर होता है कि गलत नोटिस भेजने पर उसके खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई/ एफआईआर की जा सकती है. ऐसा होने पर वह कह देगा कि उसने तो नोटिस भेजा ही नहीं.
खुद जवाब देने की हिम्मत नहीं-
जोगेंद्र सोलंकी अगर सही मायने में पत्रकार होता, तो मैंने जो लिखा है उसका वह खुद बिंदुवार जवाब देकर खंडन करता. लेकिन मैंने जो लिखा वह सच्चाई है और तथ्य पर आधारित है. इसलिए वह खुद तो जवाब देकर उन बातों को झूठला नहीं सकता.
ऐसे में उसने मुझे डराने धमकाने के लिए नकली सा कानूनी नोटिस भेजने का हथकंडा अपनाया है.
जोगेंद्र सोलंकी ने अभ्रद भाषा में मुझे नीचे दिया गया यह मैसेज 16 मार्च को भेजा.
‘आपने मैच को लेकर क्या लिखा है. मैंने मैच में आपको बुलाया था, मैच को करवाने में मैं और सुरेश झा शामिल थे, क्या हम लोग दलाल हैं और अगर ऐसा था तो वहां आए क्यों और दलालों का खाना भी क्यों खा लिया’.
आपके अंदर थोड़ी बहुत भी खुद की रिस्पेक्ट है या नहीं. आप हमसे आकर मिलें और अपनी इस हरकत को सबके सामने साफ़ करे कि आपने यह बेजा हरकत क्यों की’.
सोलंकी का यह उपरोक्त मैसेज उसके चरित्र और संस्कार को उजागर करता है.
हिम्मत है तो जवाब दे-
जोगेंद्र सोलंकी जो खुद को देशबंधु अखबार का रोविंग संपादक बताता है वह सिर्फ इस बात का ही जवाब देकर दिखाए कि 16 मार्च को उसने मुझे यह अभ्रद मैसेज क्यों और किस हैसियत/अधिकार से भेजा ?
मतलब साफ़ है कि उसने मुझे उसकी कुंडली उजागर करने के लिए मजबूर किया.
आईना दिखाया-
जोगेंद्र सोलंकी ने खुद ही अपने आप के लिए दलाल शब्द लिखा है.
मैंने उसके अभ्रद मैसेज का सिर्फ जवाब दिया है. उसने मुझसे पूछा कि, ‘क्या हम दलाल हैं’, मैंने तो बस ईमानदारी से उसे तथ्यों के साथ आईना दिखा दिया. इसमें मानहानि कहां से हो गई.
चरित्र प्रमाण पत्र –
मेरा फर्ज है कि अगर कोई मुझसे अपने बारे में मेरी राय पूछे तो, मुझे सच्चाई से उसके बारे में बता देना चाहिए. अगर उसे मेरी बात कड़वी लगी तो मैं क्या करुं, सच्चाई तो कड़वी ही होती है. अगर वह अपने बारे में सच्चाई बर्दाश्त नहीं कर सकता था, तो उसने मुझे अभ्रद भाषा में यह मैसेज क्यों भेजा? उसे मुझसे अपना चरित्र प्रमाण पत्र लेने की क्या जरूरत आन पड़ी थी. वैसे यह मैसेज भेज कर उसने खुद ही साबित कर दिया कि वह क्या है.
उसे तो मेरा अहसानमंद होना चाहिए कि, मैंने ईमानदारी से तथ्यों के साथ उसके सवालों का जवाब दिया है. वरना आज के जमाने में भला कोई इस तरह सच बोलता है. लेकिन वह तो अपने चरित्र के अनुसार अहसान फरामोश ही निकला, उसने सच्चाई को मानहानि मान लिया.
कबीर ने तो कहा है कि निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय.
दूसरी बात यह जरुरी नहीं होता, कि जिसके पास पद और पैसा है उसके पास मान भी होगा ही. मानहानि के लिए मान का होना सबसे अहम होता है.
हजार बार जवाब दूंगा-
मैंने किसी की मानहानि नहीं की है. लेकिन
अपने स्वाभिमान की रक्षा करने के लिए ऐसे बदतमीज़ लोगों को मैं एक बार नहीं, हज़ार बार जवाब दूंगा.
जोगेंद्र सोलंकी के अभ्रद भाषा में भेजे गए मैसेज के बाद ही मैने निम्न लिखित तथ्य लिखें . जोगेंद्र सोलंकी ने इन तथ्यों का खंडन नहीं किया है.
जोगेंद्र सोलंकी की करतूतें-
जोगेंद्र सोलंकी ने अपनी औकात भूल कर ऐसी अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया है जो कि दरबारी/ दलाल ही कर सकता हैं. इसलिए ऐसे व्यक्ति को जवाब देना बहुत जरुरी हो जाता है.
छाज बोले सो बोले, छलनी भी बोले, जिसमें सत्तर छेद-
जोगेंद्र सोलंकी (निवासी उस्मान पुर) के ख़िलाफ़ उत्तर पूर्वी जिला पुलिस ने मामला दर्ज किया था. इस पत्रकार ने तब सांध्य टाइम्स में वह खबर छापी थी. तभी से वह मुझ से दुश्मनी रखता है. सोलंकी के ख़िलाफ़ पूर्वी जिला पुलिस ने भी गोली चलाने का मामला दर्ज किया था.
वह शराब पीकर बदतमीजी करने के लिए शुरू से ही बदनाम रहा है. ऐसी करतूतों के कारण प्रेस क्लब में भी बदनाम है.
जवाब दे-
जोगेंद्र सोलंकी अगर इतना बड़ा मर्द/बदमाश बनता है तो उस प्रताप गूजर से बदला ले कर दिखाए. जिस पर, उसने गोली मारने का आरोप लगाया था. वैसे गोली भी सोलंकी के अपने कर्मों का ही नतीजा थी, कोई पत्रकारिता के कारण उसे गोली नहीं मारी गई थी. वैसे उस समय चर्चा तो यह भी हुई थी कि पुलिस सुरक्षा लेने के लिए उसने खुद ही अपने ऊपर गोली चलवाई थी. अगर वाकई प्रताप गूजर ने उस पर गोली चलवाई थी, तो क्या सोलंकी ने उसे सज़ा दिलाने के लिए अदालत में गवाही दी थी ? जोगेंद्र सोलंकी में दम है तो इस बात का जवाब दे.
नोटिस में से निकले सवाल –
जोगेंद्र सोलंकी द्वारा भेजे गए नकली से नोटिस से ही कई सवाल पैदा हो गए हैं.
जोगेंद्र सोलंकी ने खुद को देशबंधु अखबार का पीआईबी से मान्यता प्राप्त पत्रकार और अपने दफ़्तर का पता सी-7 निजामुद्दीन वेस्ट लिखा है.
जहां तक मेरी जानकारी है निजामुद्दीन में देशबंधु अखबार का दफ्तर नहीं है.देशबंधु अखबार का दफ़्तर तो दिल्ली में आईएनएस में है. फिर यह दफ़्तर किसका है ?
पत्रकार या व्यापारी?
क्या यह जोगेंद्र सोलंकी के किसी अन्य काम धंधे/ व्यापार/ कारोबार का दफ़्तर है ?
जोगेंद्र सोलंकी बताए कि क्या देशबंधु की नौकरी के अलावा उसका कोई अन्य धंधा/ व्यवसाय भी है. दरअसल वह सिर्फ पत्रकार ही नहीं है देशबंधु की नौकरी के अलावा उसका अन्य धंधा भी है. देशबंधु तो उसे इतना वेतन दे नहीं सकता, जिसमें वह महंगी कार और ड्राइवर रख सके.
पीआईबी कैसे बन गया ? .
जोगेंद्र सोलंकी ने देशबंधु अखबार की ओर से पीआईबी कार्ड बनवाया हुआ है.
क्या उसने देशबंधु अखबार की नौकरी के अलावा अपने दूसरे व्यवसाय या कारोबार के बारे में पीआईबी को जानकारी दी थी ?
पीआईबी कार्ड बनवाने/नवीनीकरण के समय क्या उसने पीआईबी को कभी अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की सूचना दी थी.
क्योंकि अगर यह सब जानकारी दी जाती तो उसका पीआईबी कार्ड बन ही नहीं सकता था.
वैसे यह जांच का विषय तो है ही, क्योंकि पीआईबी कार्ड पुलिस वैरीफिकेशन के बाद ही बनता है. पीआईबी को इस मामले की गंभीरता से गहराई तक जांच करनी चाहिए.
पीआईबी देशबंधु अखबार के मालिक/संपादक राजीव रंजन श्रीवास्तव से भी इस बारे में मालूम कर सकती है. क्योंकि संपादक द्वारा ही पीआईबी कार्ड बनवाने के लिए पत्र दिया जाता है.
मालिक/संपादक की भूमिका-
देशबंधु के मालिक/ संपादक को यह तो मालूम ही होगा कि उनके अखबार का प्रतिनिधि होने के कारण ही पुलिस कमिश्नर/ आईपीएस और पत्रकार आदि सोलंकी से मिलते जुलते हैं. उसकी पहचान और वजूद अखबार के कारण ही है. सोलंकी की ऐसी हरकतों से अखबार की भी बदनामी होती है कि कैसे कैसे लोगों को संपादक बनाया हुआ है.
देशबंधु के मालिक/संपादक बताएं कि किसी पत्रकार को अभ्रद भाषा में मैसेज भेजने वाले अपने संपादक जोगेंद्र सोलंकी के ख़िलाफ़ उन्होंने क्या कार्रवाई की है? क्योंकि यह मेरा कोई निजी मामला नहीं है यह सीधा सीधा शुद्ध रूप से पत्रकारिता का मामला है. देशबंधु के मालिकों को इस मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए, क्योंकि इस मामले में उनकी चुप्पी सोलंकी का समर्थन ही मानी जाएगी.
कमिश्नर लाइसेंस रद्द करें-
दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा को इस बात की जांच करानी चाहिए कि जोगेंद्र सोलंकी का हथियार का लाइसेंस कब और कैसे बना. क्योंकि हथियार का लाइसेंस बनवाने और नवीनीकरण के समय तो बकायदा फॉर्म में लिखा जाता है कि आपराधिक मामले हैं या नहीं.
पता तो यह भी चला हैं अब वह अपने हथियार के लाइसेंस की एरिया वैलिडिटी बढ़वाना चाहता है.
पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा को जोगेंद्र सोलंकी का हथियार का लाइसेंस रद्द करना चाहिए.
पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा को साफ़ छवि के सयुंक्त पुलिस आयुक्त (लाइसेंसिंग) ओ पी मिश्रा से या किसी अन्य आईपीएस से इस बारे में निष्पक्ष जांच करानी चाहिए.
स्पेशल कमिश्नर (लाइसेंसिंग) संजय सिंह को जोगेंद्र सोलंकी अपना पारिवारिक मित्र/भाई
बताता है इसलिए उनसे तो इस मामले की जांच कराई ही नहीं जा सकती.
मैदान से बाहर-
जोगेंद्र सोलंकी ने ख़ुद को बड़ा सम्मानित और बेदाग पत्रकार बताया है. सोलंकी के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले दर्ज हुए थे इसके बावजूद उसका खुद को बेदाग़ कहना हास्यास्पद है.
जोगेंद्र सोलंकी ने कथित नोटिस में दावा किया है कि वह पिछले तीस साल से पत्रकारिता कर रहा है और मैं उससे ईर्ष्या करता हूँ.
सोलंकी क्या अपनी ऐसी कोई खबर दिखा सकता है जिसकी वजह से दिल्ली के पत्रकारिता जगत में उसे याद किया जाता हो.
रही बात मेरे ईर्ष्या करने की तो उसे क्या इतना भी नहीं मालूम, कि स्वस्थ प्रतिस्पर्धा भी अपने बराबर वालों से ही की जाती है. वह तो उस मैदान/ दौड़ में कहीं है ही नहीं.
किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कार्य और आचरण/व्यवहार से होती है. इन दोनों मापदंड/कसौटी पर वह कहीं भी खरा नहीं उतरता .
पत्रकारिता धर्म का पालन-
पत्रकार होने के नाते मैने जोगेंद्र सोलंकी को पत्रकारिता के हिसाब से जवाब दिया है. पत्रकार का कार्य पत्रकारिता को कलंकित कर रहे इस तरह के लोगों का भी पर्दाफाश करके लोगों को सतर्क/ जागरूक करना है. मैंने अपने पत्रकारिता धर्म का पालन किया है. किसी की मानहानि नहीं की.
जोगेंद्र सोलंकी अगर सही मायने में पत्रकार होता, तो कानूनी नोटिस भेजने की बजाए मेरे दिए गए तथ्यों को झुठला कर दिखाता.
ऐसी घटिया हरकत करने वाले व्यक्ति को दरबारी/ भांड /चापलूस या दलाल की बजाए क्या लिखा जाए ? जोगेंद्र सोलंकी या कोई भी अन्य व्यक्ति ऐसा वैकल्पिक शब्द बता दें ताकि आगे से मैं वहीं लिख दूंगा.
क्या कमिश्नर ने जिम्मेदारी दी थी ?
जोगेंद्र सोलंकी ने लिखा है कि ‘जी मुरली कप’ का वह कोऑर्डिनेटर था.
जोगेंद्र सोलंकी बताए कि क्या दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा , स्पेशल कमिश्नर संजय सिंह और पीआरओ डीसीपी सुमन नलवा ने उसे यह जिम्मेदारी सौंपी थी.
दरअसल सुरेश झा और यह स्वंयभू कोआर्डिनेटर है.
मीडिया से समन्वय के लिए तो स्पेशल कमिश्नर संजय सिंह और पीआरओ डीसीपी सुमन नलवा के अंतर्गत पूरी ब्रांच है. पुलिस मीडिया से संपर्क/ समन्वय के लिए उसके जैसे पत्रकार पर तो निर्भर नहीं ही होगी.
दिल्ली पुलिस ने मैच का आयोजन किया था. मीडिया को दिल्ली पुलिस ने बुलाया था. जोगेंद्र सोलंकी ने लिखा है कि मुझे उसने बुलाया था. सोलंकी शायद भूल गया कि उसके बुलावे पर तो, मैं उसकी बेटी की शादी में भी नहीं गया था.
सबसे अहम बात जिस “जी मुरली कप” को लेकर जोगेंद्र सोलंकी और सुरेश झा ने मुझसे बदतमीजी की.उस मैच के बारे में तो मैने कोई खबर लिखी ही नहीं. इससे इनके दिमागी दिवालियापन का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.वैसे अगर लिखी भी होती तो मुझे कुछ भी कहने का इनको कोई अधिकार और औकात नहीं है.
कोई पत्रकार किसी पत्रकार को यह कह ही नहीं सकता है कि तुमने ऐसा क्यों लिखा.
इस तरह का मैसेज करने वाला पत्रकार नहीं हो सकता.
इस तरह का मैसेज करने और बदतमीजी करने वालों को मुंह तोड़ जवाब देना जरुरी होता है.
मुझे मैसेज करके जोगेंद्र सोलंकी ने शुरुआत की है. वह अपनी हद पार कर गया था, इसलिए उसे उसकी हैसियत याद दिलाने के लिए जवाब देना जरुरी था.
जोगेंद्र सोलंकी मुझे धमकाने या डराने की कोशिश मत करो. मैं तुमसे डरने वाला नहीं हूं.
जान को खतरा-
ऐसे कथित पत्रकारों द्वारा जिस प्रकार मुझ पर हमला किया जा रहा है.यह बहुत ही गंभीर मामला है. ऐसे पत्रकारों से मुझे जान का खतरा है. यह मुझे नुकसान पहुंचा सकते हैं. मुझे कुछ हो गया तो उसके जिम्मेदार यह पत्रकार होगे.
पुलिस कमिश्नर संजय अरोरा को मेरी जान और सम्मान की रक्षा करनी चाहिए.
मैं शायद इकलौता पत्रकार हूं जो दिल्ली में ऐसे पत्रकारों को नंगा(एक्सपोज़) करता रहता हूँ. इसलिए ऐसे पत्रकार मुझसे दुश्मनी रखते हैं.
गुणैरुत्तमतां याति नोच्चैरासनसंस्थिताः । प्रासादशिखरस्थोऽपि काकः किं गरुडायते ॥
इस श्लोक में आचार्य चाणक्य ने श्रेष्ठ गुणों और सच्चरित्र का महत्व स्वीकार किया है।
वे कहते हैं कि इन्हीं के कारण साधारण इंसान श्रेष्ठता के शिखर की ओर अग्रसर होता है जिस प्रकार महल की छत पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं हो जाता है, उसी प्रकार ऊंचे आसन पर विराजमान व्यक्ति महान नहीं होता। महानता के लिए इंसान में सदुगणों एवं सच्चरित्र का होना जरूरी है। इससे वह नीच कुल में जन्म लेकर भी समाज में मान-सम्मान प्राप्त करता है.