गुजरात दंगा: नरोदा गाम केस के फैसले पर पीड़ित बोले; न्यायपालिका राजनीतिक दबाव में है

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समग्र समाचार सेवा
गांधीनगर, 21अप्रैल। नरोदा गाम मामले के 67 आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले को पीड़ितों ने न्यायपालिका की “हत्या” करार दिया है. पीड़ितों ने कहा कि इससे दंगाइयों के हौसले और बुलंद होंगे. नरोदा गाम दंगों के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय के 11 लोगों की हत्या कर दी गई थी. अहमदाबाद में नरोदा गाम के उस हिस्से में अब एक भयानक सन्नाटा पसरा हुआ है जहां अल्पसंख्यक समुदाय के 11 सदस्य मारे गए थे, अधिकांश घर बंद हैं और उनकी दीवारों पर कालिख पुती है जो उस विनाशकारी दिन की याद दिलाती है जब उन्हें (घरों को) आग लगा दी गई थी. इसे लेकर पीड़ितों ने कहा कि उनकी आंखों के सामने जिंदगी छीन ली गई. एक विशेष अदालत ने यहां गुजरात की पूर्व मंत्री माया कोडनानी, बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी समेत मामले के सभी आरोपियों को बरी कर दिया था. गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस की बोगी में आग लगाए जाने के बाद राज्यभर में दंगे भड़क गए थे. इसी दौरान नरोदा गाम में 11 लोगों की हत्या कर दी गई थी. इस मामले की जांच उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल ने की थी.

भीड़ द्वारा किए गए हमले में घायल शरीफ मालेक ने दावा किया कि “न्यायपालिका दबाव में प्रतीत होती है” और ऐसा निर्णय केवल दंगाइयों को प्रोत्साहित करेगा. दंगाइयों की भीड़ ने उनके घर को भी लूट लिया था. इम्तियाज कुरैशी ने कहा कि उनके घर को लूट लिया गया और लोगों के एक समूह ने उनकी आंखों के सामने तीन लोगों की हत्या कर दी. उन्होंने दावा किया कि बृहस्पतिवार के फैसले से पता चलता है कि “न्यायपालिका दबाव में है”.

अदीब पठान के घर को हिंसा के दौरान उपद्रवियों ने लूट लिया था. अदीब ने कहा, “अगर कानून की रक्षा करने वालों को कानून की हत्या करने पर मजबूर किया जाएगा तो यह देश को विनाश की ओर ले जाएगा. इस तरह लोग लोकतंत्र में विश्वास खो देंगे.”

मालेक ने कहा, “मैं अपने पड़ोस के एक घर में एक महिला और उसके दो बच्चों सहित परिवार के तीन सदस्यों को जिंदा जलाए जाने का गवाह था. अधिकांश घर बंद हैं और दंगों से पहले वहां रहने वाले लगभग 110 परिवारों में से मुश्किल से 10-15 परिवार अब रह रहे हैं.” उन्होंने दावा किया, “यह न्यायपालिका की हत्या है. अगर इस तरह का फैसला सुनाया जाता है तो इससे दंगाइयों को प्रोत्साहन मिलेगा. उन्हें अब कानून का भय नहीं रहेगा. इसमें कोई संदेह नहीं है कि न्यायपालिका राजनीतिक दबाव में है. न्यायपालिका राजनीतिक नियंत्रण में है, खासकर गुजरात में.” मालेक ने कहा कि अगर “ऐसा कोई दबाव नहीं होता और न्यायाधीश ने निष्पक्ष रूप से फैसला सुनाया होता” तो कम से कम 25-30 अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा दी जाती.

नरोदा गाम में छपाई का कारोबार करने वाले कुरैशी ने कहा, “मेरी आंखों के सामने एक शादीशुदा दंपति और उनकी बेटी को जिंदा जला दिया गया. अपने परिवार के छह सदस्यों को जलाने वाली लुटेरों की भीड़ से बच निकली एक महिला को भी मेरी आंखों के सामने चाकू मार दिया गया.” उन्होंने दावा किया कि इस मामले में सभी 67 अभियुक्तों के बरी होने का मतलब है कि “न्यायपालिका दबाव में है”.

एक दिन पहले गोधरा स्टेशन के पास भीड़ द्वारा साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 बोगी में आग लगाने के विरोध में बुलाए गए बंद के दौरान 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद के नरोदा गाम क्षेत्र में दंगे भड़क गए थे.

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