बुद्ध का शांति, अहिंसा और सत्य के मार्ग का संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना 2500 साल पहले था: मीनाक्षी लेखी
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 06 मई। अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ(आईबीसी) ने शुक्रवार को वैसाख पूर्णिमा का शुभ दिन श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया। अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ ने हिमालयी बौद्ध सांस्कृतिक संघ(एचबीसीए) के समन्वय से राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली में कार्यक्रम का आयोजन किया।
संस्कृति और विदेश मामलों की राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी ने कहा कि बुद्ध का शांति, अहिंसा और सत्य का मार्ग आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना 2500 साल पहले था। उन्होंने कहा,“ हमें सिर्फ इसका स्मरण करने की ही आवश्यकता नहीं है, बल्कि इसे उसी तरह से आगे बढ़ाने की जरूरत है, जैसे यह सदियों से होता आया है।
मीनाक्षी लेखी ने वैसाख बुद्ध पूर्णिमा के शुभ दिन पर राष्ट्रीय संग्रहालय में उपस्थित लोगों से बुद्ध के विचारों से कार्रवाई की ओर बढ़ने का आह्वान किया। संग्रहालय में ही पवित्र बुद्ध से जुड़े स्मृति चिन्ह रखे हुए हैं। उन्होंने बुद्ध के शब्दों को उद्धृत करते हुए कहा कि हमारे सभी विचार सुगंध की तरह हैं, इन्हें सभी तक पहुंचना चाहिए और हमें इन्हें क्रियान्वित करने की आवश्यकता है।
मंत्री महोदया ने कहा कि सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान, कई भिक्षु बुद्ध की शिक्षा लेकर कई देशों में गए। इस संबंध में, हम सभी रक्त, विचार और संस्कृति से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि संदेश समान रहता है: विचार और कर्म में दयालु बनो, और हर किसी के जीवन में सही कार्य का पालन करो।
संस्कृति मंत्रालय, अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ और हिमालयी बौद्ध सांस्कृतिक संघ के साथ शाक्यमुनि के आशीर्वाद से बुद्ध का जन्म, उनके ज्ञान प्राप्त करने का दिन और महापरिनिर्वाण दिवस को मनाने के लिए समारोह आयोजित किया गया था। यह आयोजन पूरी श्रद्धा और पवित्रता के किया गया था। राष्ट्रीय संग्रहालय में भगवान बुद्ध से जुड़े स्मृति चिन्ह रखे जाने से पहले राष्ट्रीय एकता, सद्भाव और विश्व शांति के लिए प्रार्थना की गई थी।
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन और भिक्षुओं द्वारा मंगलाचरण प्रार्थना के साथ हुई।
धम्म वार्ता डेपुंग गोमांग मठ के सम्मानित अतिथि, महामहिम कुंडलिंग तक्षक छोकत्रुल रिनपोछे की ओर से प्रस्तुत किया गया था। उन्होंने कहा कि बुद्ध की शिक्षाओं का सार हिमालय के ग्लेशियरों के मीठे पानी की तरह ताजा और महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि उनकी शिक्षाओं का संरक्षण, अध्ययन और अभ्यास करना महत्वपूर्ण है क्योंकि वे समकालीन दुनिया का दर्द दूर करने के लिए आवश्यक हैं। उन्होंने कहा कि अपनी सर्वोत्तम क्षमता के अनुसार दूसरों की सेवा करना प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व है।
इस अवसर के विशेष अतिथि भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष डॉ. विनय सहस्रबुद्धे थे। उन्होंने कहा कि बुद्ध भारत की अवधारणा के केंद्र में हैं और भारत और बुद्ध गहन रूप से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि सभी भारतीयों में बुद्ध की शिक्षाएं और विचार आध्यात्मिक और दार्शनिक परंपराओं में अद्वितीय है।
संस्कृति मंत्रालय के तहत विभिन्न स्वायत्त बौद्ध संगठनों और अनुदान प्राप्त संस्थानों ने इस अवसर पर कई कार्यक्रमों का आयोजन किया।
केंद्रीय बौद्ध अध्ययन संस्थान, लेह के सभी कर्मचारियों और 600 छात्रों ने लेह के पोलो ग्राउंड में लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन और लद्दाख गोन्पा एसोसिएशन द्वारा आयोजित भव्य समारोह में भाग लिया। इस अवसर पर सीआईबीएस, लेह के छात्रों द्वारा मंगलाचरण किया गया। इसके अलावा,सीआईबीएस लेह, केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख के छात्रों द्वारा तैयार की गयीं बुद्ध के पहले उपदेश और वितरण को दर्शाने वाली दो झांकियों का प्रदर्शन किया गया था।
केंद्रीय उच्च तिब्बती अध्ययन संस्थान, सारनाथ द्वारा सुबह छह बजे बुद्ध जयंती समारोह मनाया गया। इसके बाद शोध पत्रिका ‘धिह’ के 63वें संस्करण का विमोचन किया गया।
नव नालंदा महाविहार (एनएनएम), नालंदा, बिहार के भिक्षु-छात्रों द्वारा बुद्ध मंदिर में पारंपरिक पूजा की गई, इसके बाद ‘बौद्ध धर्म और बिहार’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन कल्चर स्टडीज, दाहुंग, अरुणाचल प्रदेश की ओर से इस शुभ अवसर पर पूजा समारोह और अन्य अनुष्ठानों के प्रदर्शन के साथ-साथ एक वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर जेंटसे गादेन रबग्याल लिंग (जीआरएल) मठ, अरुणाचल प्रदेश ने अपने भिक्षु छात्रों के माध्यम से विश्व शांति प्रार्थना और ‘मंगलचरण’ का आयोजन किया।
बुद्ध जयंती मनाने के लिए तिब्बत हाउस में आकांक्षी बोधिसत्व संस्कार का आयोजन किया गया।
तवांग मठ, अरुणाचल प्रदेश ने ‘बुद्ध के उपदेश, शांति और शांति’ विषय पर भाषण-सह-व्याख्यान प्रतियोगिता आयोजित करके इस शुभ अवसर को मनाया।
लाइब्रेरी ऑफ़ तिब्बतन वर्क्स एंड आर्काइव्स धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, इस शुभ दिन मनाने के लिए एक मई से पांच मई, 2023 तक ‘पशु चेतना सम्मेलन का आयोजन कर रहा है।
वैशाख बुद्ध पूर्णिमा पूरे विश्व में बौद्ध अनुयायियों के लिए वर्ष का सबसे पवित्र दिन है क्योंकि यह भगवान बुद्ध के जीवन की तीन मुख्य घटनाओं – जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण का प्रतीक है। भारत में बौद्ध धर्म की उत्पत्ति के बाद से यह दिन विशेष महत्व रखता है।
1999 से इसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘यूएन डे ऑफ वैशाख ‘ के रूप में भी मान्यता दी गई है।
इस साल वैशाख बुद्ध पूर्णिमा पांच मई को मनाई जा रही है।
हाल ही में, संस्कृति मंत्रालय ने पहला वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन (20-21 अप्रैल) आयोजित किया, जिसमें 30 देशों के 500 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया। इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था। संस्कृति मंत्रालय ने अपने से जुड़े एक वैश्विक बौद्ध निकाय आईबीसी, के साथ 14 से 15 मार्च तक ‘साझा बौद्ध विरासत’ पर शंघाई सहयोग संगठन राष्ट्रों के विशेषज्ञों की एक सफल अंतरराष्ट्रीय बैठक भी आयोजित की थी।