मध्य प्रदेश डायरी : रवीन्द्र जैन
मप्र के आईपीएस से घबराए राजस्थान के सीएम!
मप्र के 1987 बैच के आईपीएस पवन जैन फिलहाल स्पेशल डीजी होमगार्ड हैं। अभी उन्होंने न तो नौकरी से इस्तीफा दिया है और न ही भाजपा ने उन्हें राजस्थान की राजाखेडा विधानसभा सीट से प्रत्याशी घोषित किया है। लेकिन राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राजाखेडा विधानसभा क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता से इतने घबड़ा गये हैं कि लंबे समय बाद वे अपने 12 मंत्रियों के साथ राजाखेडा पहुंचे। दरअसल धौलपुर जिले का राजाखेडा पवन जैन का गृहनगर है। पवन जैन पिछले 28 वर्षों से अपने स्वर्गीय पिता जी की स्मृति में यहां चिकित्सा शिविर लगाकर लोगों की सेवा कर रहे हैं। इसी वर्ष जुलाई में पवन जैन रिटायर होने वाले हैं। चर्चा है कि वे दिसम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव में राजाखेडा से भाजपा के प्रत्याशी होंगे। इस चर्चा के बाद राजस्थान की गहलोत सरकार अचानक सक्रिय हो गई है। राज्य सरकार ने पवन जैन के छोटे भाई जो कि राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं का तबादला जयपुर से बीकानेर कर दिया। इसके बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने 12 मंत्रियों के साथ राजाखेडा पहुंचे। जहां उन्होंने अभी से मतदाताओं को साधने का काम शुरु कर दिया है।
महल का सम्पत्तिकर क्यों नहीं?
देश के तातकवर केन्द्रीय मंत्री और मप्र भाजपा के दिग्गज नेता ग्वालियर में लगभग 4000 करोड़ के महल में रहते हैं। लेकिन इस विशाल महल का सम्पत्तिकर एक रुपया भी नगर निगम को नहीं दिया जाता। मजेदार बात यह है कि इसका खुलासा भी ग्वालियर भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष ने सोशल मीडिया के जरिये किया है। ग्वालियर नगर निगम ने किस नियम के तहत इस विशाल महल को सम्पत्तिकर से छूट दी है, यह कोई भी अधिकारी बताने को तैयार नहीं है। केन्द्रीय मंत्री का रसूख इतना है कि इस मुद्दे पर ग्वालियर से भोपाल तक कोई भी अफसर मुंह खोलने को तैयार नहीं है। सम्पत्तिकर के जानकार एक रिटायर आईएएस ने बस इतना बताया कि मप्र में नगर पालिका एक्ट लागू होने के बाद यदि सम्पत्तिकर से छूट देनी है तो परिषद में प्रस्ताव पारित कराना होगा। ग्वालियर में ऐसा कोई प्रस्ताव पारित होने की सूचना नहीं है।
दीपक चले गये, लेकिन बेटे को छोड़ गये हैं!
मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर आरोपों की बारिश करते हुए कांग्रेस में शामिल हो गये हैं। लेकिन अपने बेटे जयवर्धन जोशी को भाजपा में न केवल छोड़ गये हैं, बल्कि भाजयुमो में उसे स्थापित करके गये हैं। जयवर्धन जोशी भाजयुमो में प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य बनाये गये हैं। दीपक बेशक अपने पिता कैलाश जोशी की तस्वीर के साथ कांग्रेस कार्यालय पहुंचे, लेकिन उनके बेटे जयवर्धन की परछाई भी कांग्रेस कार्यालय के आसपास नहीं पहुंची है। भाजपा का एक तबका मानता है कि दीपक पार्टी में वापस लौटेंगे। क्योंकि वह जिस मिट्टी के बने वह कांग्रेस की रीति-नीति से मेल ही नहीं खाती है।
चार नेता, चार बयान…साजिश या सियासत!
इस सप्ताह मप्र भाजपा के चार नेताओं के चार अलग अलग बयानों ने पार्टी को हिलाकर रख दिया। यह सभी चार नेता मालवा के हैं। चारों के बयानों को एक एक कर सुनेंगे तो लगेगा कि किसी सोची समझी रणनीति के तहत यह बयानबाजी हुई है। शुरुआत पूर्व मंत्री दीपक जोशी के बयान से हुई। दीपक जोशी के निशाने पर सीधे सीएम थे। पूर्व विधायक भंवरसिंह शेखावत ने ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के खिलाफ मोर्चा खोला। पार्टी के पुराने नेता सत्यनारायण सत्तन ने भाजपा संगठन को निशाने पर लेते हुए वीडी शर्मा पर हमला बोला। मंदसौर के रघुनन्दन शर्मा ने पांचों प्रदेश प्रभारियों की कार्यशैली को कटघरे में खड़ा कर दिया। अटकलें लगाई जा रही हैं कि यह बयान अचानक नहीं आये हैं। यह सोची समझी रणनीति का हिस्सा हैं।
भाजपा की नई रणनीति से विधायक परेशान!
मप्र भाजपा की नई रणनीति से विधायक परेशान बताये जा रहे हैं। दरअसल भाजपा के अंदर खाने से खबर आ रही है कि पार्टी अगले चुनाव में मजबूत व लोकप्रिय विधायकों को हारने वाली सीटों पर शिफ्ट करने पर विचार कर रही है। चर्चा है कि भोपाल के दो विधायक विश्वास सारंग और रामेश्वर शर्मा इससे प्रभावित हो सकते हैं। यह दोनों विधायक अपने अपने क्षेत्र में काफी लोकप्रिय हैं। इनकी क्षेत्र पर अच्छी पकड़ भी हैं। लेकिन इन दोनों को भोपाल की हारी हुईं मध्य और उत्तर की सीटों पर भेजने पर विचार चल रहा है। चर्चा है कि इसी तरह की रणनीति मप्र के अन्य जिलों में अपनाई जा सकती है। इस खबर से विधायक परेशान हैं। क्योंकि उन्होंने लंबे समय मेहनत करके अपने क्षेत्र में पकड़ बनाई है।
करणी सेना के बाद ब्राह्मणों की हूंकार, सरकार हुई सतर्क !
मप्र में राजपूत समाज की मांगों को लेकर करणी सेना के जबर्दस्त प्रदर्शन के बाद अब ब्राह्मण समाज ने भोपाल की सड़कों पर बड़ा प्रदर्शन करने की तैयारी शुरु कर दी है। इसके लिए प्रदेश के 55 ब्राह्मण संगठन एक मंच पर आ गये हैं। 4 जून को भोपाल में बड़ा शक्ति प्रदर्शन कर सरकार को 11 सूत्रीय मांगपत्र देने की तैयारी है। ब्राह्मण नेताओं का दावा है कि 5 लाख ब्राह्मण भोपाल पहुंच रहे हैं। यदि ऐसा हुआ तो प्रशासन के लिए परेशानी होगी। राज्य सरकार इसलिये भी सतर्क हो गई है कि करणी सेना ने एक दिन की अनुमति ली और पांच दिन तक डटी रही। ब्राह्मण समाज तो ऐसा नहीं करेगा? यह भी चर्चा है कि मप्र भाजपा में ब्राह्मण समाज की राजनीति चमकाने के लिये यह शक्ति प्रदर्शन हो रहा है। भाजपा के ब्राह्मण समाज के एक गुट ने परशुराम जयंती पर भोपाल में शक्ति प्रदर्शन किया था। अब पार्टी का ही दूसरा गुट 4 जून को बड़े प्रदर्शन के जरिये सत्ता और संगठन को अपनी ताकत दिखाने की तैयारी में है।
बदनावर या बदलापुर!
मप्र की बदनावर विधानसभा सीट को आप बदलापुर भी कह सकते हैं। दरअसल इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के मौजूदा और पूर्व विधायक खुलकर आमने सामने आ गये हैं। दोनों एक दूसरे से बदला लेने पर उतारूं हैं। पार्टी अनुशासन को घता बताते हुए खुलकर बयानबाजी चल रही है। इस सीट पर चुनाव हारे भंवरसिंह शेखावत ने तो कैमरे के सामने अपनी ही पार्टी के विधायक राजवर्धन सिंह पर गंभीर आरोप लगाते हुए उन्हें जमीनों पर कब्जा करने वाला, जुआ सट्टा तक चलवाने वाला बता दिया है। राजवर्धन सिंह ने भी कानूनी नोटिस भेजने की बात की है। मजेदार बात यह है शेखावत जैसे पुराने व अनुभवी नेता ने घोषणा की है कि अगले चुनाव में वे पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी राजवर्धन सिंह के खिलाफ झंडा नहीं डंडा उठाएंगे। यानि बदनावर का चुनाव भाजपा बनाम भाजपा होना तय है।
और अंत में…!
राजधानी भोपाल में वरिष्ठ अफसरों का अब अवैध काॅलोनी व्हीसप्रिंग पाॅल्मस से मोहभंग होने लगा है। कुछ अफसर यहां बने अपने अवैध बंगलों को बेचना चाहते हैं और कुछ अपने प्लाॅट बेचकर यहां से मुक्ति पाना चाहते हैं। भोपाल के बरखेड़ी खुर्द गांव में बनी काॅलोनी व्हीसप्रिंग पाॅल्मस लो डेंसिटी एरिये में है। यह भोपाल का टाइगर मूवमेंट क्षेत्र भी है। नियमानुसार यहां 10 हजार फीट के प्लाट पर मात्र 600 फीट निर्माण की अनुमति है। लेकिन अफसरों ने नियमों की धज्जियां उड़ाकर यहां 7000 वर्गफीट से अधिक निर्माण करके बड़े बड़े बंगले बना लिये हैं। यह मामला अब न्यायालय पहुंच गया है। इन अवैध बंगलों पर कोर्ट की तलवार लटकी हुई है। जो इन आलीशान बंगलों में रह रहे हैं वे तनाव में रहते हैं कि पता नहीं कब इन्हें तोड़ने के आदेश आ जाएं। अब खबर आ रही है कि अफसरों का इस काॅलोनी से मोहभंग होने लगा है। वे अपने बंगले और प्लाॅट बेचकर सुरक्षित स्थान की तलाश में लग गये हैं।