प्रेरक कहानियों का संग्रह

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संकलन एवं प्रस्तुति:-कैलाश मनोहर तिवारी(राजू)
(1) कहानी

मृत्यु से मित्रता
एक चतुर व्यक्ति को काल से बहुत डर लगता था। एक दिन उसे चतुराई सूझी और काल को अपना मित्र बना लिया। उससे कहा – मित्र, तुम किसी को भी नहीं छोड़ते हो, किसी दिन मुझे भी गाल में धर लोगो।

काल ने कहा- सृष्टि नाटक का यह शाश्वत नियम है इस लिए मैं मजबूर हूँ। आप मेरे मित्र है मैं आपकी जितनी सेवा कर सकता हूँ करूँगा ही, आप मुझ से क्या आशा रखते है बताइये।

चतुर व्यक्ति ने कहा- मैं इतना ही चाहता हूँ कि आप मुझे लेने पधारने के कुछ दिन पहले एक पत्र अवश्य लिख देना ताकि मैं अपने बाल- बच्चो को कारोबार की सभी बाते अच्छी तरह से समझा दूँ और स्वयं भी भगवान के भजन में लग जाऊँ।

काल ने प्रेम से कहा- यह कौन सी बड़ी बात है मैं एक नहीं आपको चार पत्र भेज दूँगा। मनुष्य बड़ा प्रसन्न हुआ सोचने लगा कि आज से मेरे मन से काल का भय भी निकल गया, मैं जाने से पूर्व अपने सभी कार्य पूर्ण करके जाऊँगा तो देवता भी मेरा स्वागत करेंगे।

दिन बीतते गये आखिर मृत्यु की घड़ी आ पहुँची। काल अपने दूतों सहित उस चतुर व्यक्ति के समीप आकर कहने लगा- आपके नाम का वारंट मेरे पास है मित्र चलिए, मैं सत्यता और दृढ़तापूर्वक अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करते हुए एक क्षण भी तुम्हें और यहाँ नहीं छोड़ूँगा।

मनुष्य के माथे पर बल पड़ गये, भृकुटी तन गयी और कहने लगा धिक्कार है तुम्हारे जैसे मित्रों का मेरे साथ विश्वासघात करते हुए तुम्हें लज्जा नहीं आती ? तुमने मुझे वचन दिया था कि लेने आने से पहले पत्र लिखूँगा। मुझे बड़ा दुःख है कि तुम बिना किसी सूचना के अचानक दूतों सहित मेरे ऊपर चढ़ आए।

मित्रता तो दूर रही तुमने अपने वचनों को भी नहीं निभाया। काल हँसा और बोला- मित्र इतना झूठ तो न बोलो। मेरे सामने ही मुझे झूठा सिद्ध कर रहे हो। मैंने आपको एक नहीं चार पत्र भेजें। आपने एक भी उत्तर नहीं दिया। मनुष्य ने चौक कर पूछा-कौन से पत्र ? कोई प्रमाण है ?

मुझे पत्र प्राप्त होने की कोई डाक रसीद आपके पास है तो दिखाओ। काल ने कहा – मित्र, घबराओ नहीं। मेरे चारों पत्र इस समय आपके पास मौजूद है।

मेरा पहला पत्र आपके सिर पर चढ़कर बोला, आपके काले सुन्दर बालों को पकड़ कर उन्हें सफेद कर दिया और यह भी कि सावधान हो जाओ, जो करना है कर डालो। नाम, बड़ाई और धन-संग्रह के झंझटो को छोड़कर भजन में लग जाओ पर मेरे पत्र का आपके ऊपर जरा भी असर नहीं हुआ।

बनावटी रंग लगा कर आपने अपने बालों को फिर से काला कर लिया और पुनः जवान बनने के सपनों में खो गए। आज तक मेरे श्वेत अक्षर आपके सिर पर लिखे हुए है।

कुछ दिन बाद मैंने दूसरा पत्र आपके नेत्रों के प्रति भेजा। नेत्रों की ज्योति मंद होने लगी। फिर भी आँखों पर मोटे शीशे चढ़ा कर आप जगत को देखने का प्रयत्न करने लगे।

दो मिनिट भी संसार की ओर से आँखे बंद करके, ज्योतिस्वरूप प्रभु का ध्यान, मन में नहीं किया। इतने पर भी सावधान नहीं हुए तो मुझे आपकी दीनदशा पर बहुत तरस आया और मित्रता के नाते मैंने तीसरा पत्र भी भेजा।

इस पत्र ने आपके दाँतो को छुआ, हिलाया और तोड़ दिया। और अपने इस पत्र का भी जवाब न देखकर और ही नकली दाँत लगवाये और जबरदस्ती संसार के भौतिक पदार्थों का स्वाद लेने लगे।

मुझे बहुत दुःख हुआ कि मैं सदा इसके भले की सोचता हूँ और यह हर बात एक नया, बनावटी रास्ता अपना ने को तैयार रहता है।

अपने अन्तिम पत्र के रूप में मैंने रोग-क्लेश तथा पीड़ाओ को भेजा परन्तु आपने अहंकार वश सब अनसुना कर दिया। जब मनुष्य ने काल के भेजे हुए पत्रों को समझा तो फुट-फुट कर रोने लगा और अपने विपरीत कर्मो पर पश्चाताप करने लगा।

उसने स्वीकार किया कि मैंने गफलत में शुभ चेतावनी भरे इन पत्रों को नहीं पढ़ा, मैं सदा यही सोचता रहा कि कल से भगवान का भजन करूँगा। अपनी कमाई अच्छे शुभ कार्यो में लगाऊँगा, पर वह कल नहीं आया।

काल ने कहा- आज तक तुमने जो कुछ भी किया, राग-द्वेष, स्वार्थ और भोगों के लिए किया। जान-बूझकर ईश्वरीय नियमों को जो तोड़ता है, वह अक्षम्य है। मनुष्य को जब बातों से काम बनते हुए नज़र नहीं आया तो उसने काल को करोड़ों की सम्पत्ति का लोभ दिखाया।

काल ने हँसकर कहा- यह मेरे लिए धूल है। लोभ संसारी लोगो को वश में कर सकता है, मुझे नहीं। यदि तुम मुझे लुभाना ही चाहते थे तो सच्चाई और शुभ कर्मो का धन संग्रह करते।

काल ने जब मनुष्य की एक भी बात नहीं सुनी तो वह हाय-हाय करके रोने लगा और सभी सम्बन्धियों को पुकारा परन्तु काल ने उसके प्राण पकड़ लिए और चल पड़ा अपने गन्तव्य की ओर।
समय के साथ उम्र की निशानियों को देख कर तो कम से कम हमें प्रभु की याद में रहने का अभ्यास करना चाहिए और अभी तो कलयुग का समय है इस में तो हर एक को चाहे छोटा हो या बड़ा सब को प्रभु की याद में रहकर ही कर्म करना चाहिए।

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(2) कहानी

एक आदमी, जो हमेशा अपने दोस्तों के साथ घुल मिल कर रहता था और उनके साथ बैठकें करता था, अचानक बिना किसी को बताए सबसे मिलना जुलना बंद कर दिया।

कुछ हफ्ते बाद एक सर्द रात उसके ग्रुप के लीडर ने उससे मिलने का फैसला किया।

वह लीडर उस आदमी के घर गया और पाया कि आदमी घर पर अकेला ही था। एक आगखाने में जलती हुई लकड़ियों की लौ के सामने बैठा आराम से आग ताप रहा था। उस आदमी ने आने वाले लीडर का बड़ी खामोशी से इस्तकबाल किया।

दोनों चुपचाप बैठे रहे। सिर्फ आग की लपटों को ऊपर तक उठते हुए ही देखते रहे।

कुछ देर के बाद आने वाले लीडर ने बिना कुछ बोले, उन अंगारों में से एक लकड़ी जिसमें लौ उठ रही थी (जल रही थी) उसे उठाकर किनारे पर रख दिया। और फिर से खामोश बैठ गया।

मेजबान हर चीज़ पर ध्यान दे रहा था। लंबे वक़्त से अकेला होने की वज़ह मन ही मन खुश भी हो रहा था कि वह आज अपने ग्रुप के एक दोस्त के साथ है।

लेकिन उसने देखा कि अलग की हुए लकड़ी की आग की लौ धीरे धीरे कम हो रही है। कुछ देर में आग बिल्कुल बुझ गई। उसमें अब कोई गर्मी नहीं बची था। उस लकड़ी से आग की चमक भी खत्म हो गई।

कुछ वक़्त पहले उस लकड़ी में रौशनी थी और आग की गर्मी थी वह अब एक काले और मरे टुकड़े से ज्यादा कुछ न रह गयी थी।

इस बीच.. दोनों दोस्त ने एक दूसरे चुनिंदा अलफाज बोले।

फिर जाने से पहले लीडर ने अलग की हुई बेकार लकड़ी को उठाया और फिर से आग के बीच में रख दिया। वह लकड़ी फिर से सुलग कर लौ बनकर जलने लगी, और चारों तरफ रोशनी और गर्मी बिखेरने लगी।

जब दोस्त लीडर को छोड़ने के लिए मेजबान दरवाजे तक पहुंचा तो उसने दोस्त से कहा, आपका मेरे घर आकर मुलाकात करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।

आज आपने बिना कुछ बात किए ही एक खूबसूरत पाठ पढ़ाया है। अब मैं अकेला नहीं हूं। जल्द ही ग्रुप में लौटूंगा।

गौर कीजिए कि लीडर ने क्यों बुझायी उस एक लकड़ी की आग को..?

बहुत आसान है समझना..
ग्रुप का हर मेम्बर खास होता है। कुछ न कुछ खासियत हर मेम्बर में होती है। दूसरे मेम्बर उनकी खासियत से ताकत हासिल करते हैं। आग और गर्मी के तपिश की सीख लेते हैं और ताकत देते हैं।

अपने माता पिता और अपने परिवार के साथ रहने मे ही अपनी सार्थकता लगती है

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(3) कहानी

🌹❤️जय जिनेंद्र जी❤️🌹
❤️जीना है तो गेंहू छोड़ो…..❤️
अमेरिका के एक हृदय रोग विशेषज्ञ हैं डॉ विलियम डेविस…उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी 2011 में जिस का नाम था “Wheat belly गेंहू की तोंद”…यह पुस्तक अब फूड हेबिट पर लिखी सर्वाधिक चर्चित पुस्तक बन गई है…पूरे अमेरिका में इन दिनों गेंहू को त्यागने का अभियान चल रहा है…

कल यह अभियान यूरोप होते हुये भारत भी आएगा…

यह पुस्तक ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं और कोई फ़्री में पढ़ना चाहे तो भी मिल सकती है….

चौंकाने वाली बात यह है कि डॉ डेविस का कहना है कि अमेरिका सहित पूरी दुनिया को अगर मोटापे, डायबिटिज और हृदय रोगों से स्थाई मुक्ति चाहिए तो उन्हें पुराने भारतीयों की तरह मक्का, बाजरा, जौ, चना, ज्वार, कोदरा, रागी, सावां, कांगनी ही खाना चाहिये गेंहू नहीं…

जबकि यहां भारत का हाल यह है कि 1980 के बाद से लगातार सुबह शाम गेंहू खा खाकर हम महज 40 वर्षों में मोटापे और डायबिटिज के मामले में दुनिया की राजधानी बन चुके हैं…

गेंहू मूलतः भारत की फसल नहीं है। यह मध्य एशिया और अमेरिका की फसल मानी जाती है और आक्रांता बाबर के भारत आने के साथ यह अनाज भारत आया था…उससे पहले भारत में जौ की रोटी बहुत लोकप्रिय थी और मौसम अनुसार मक्का, बाजरा, ज्वार आदि…भारतीयों के मांगलिक कार्यों में भी यज्ञवेदी या मन्दिरों में जौ अथवा चावल (अक्षत) ही चढाए जाते रहे हैं।

प्राचीन ग्रंथों में भी इन्हीं दोनों अनाजों का अधिकतम जगहों पर उल्लेख है…

ब्रह्मपुरी (जयपुर) निवासी प्रशासनिक अधिकारी नृसिंह जी की बहन विजयकांता भट्ट (81 वर्षीय) अम्मा जी कहती हैं कि 1975-80 तक भी आम भारतीय घरों में बेजड़ (मिक्स अनाज) की रोटी या जौ की रोटी का प्रचलन था जो धीरे धीरे खतम हो गया।

1980 के पहले आम तौर पर घरों में मेहमान आने या दामाद के आने पर ही गेंहू की रोटी बनती थी और उस पर घी लगाया जाता था, अन्यथा जौ ही मुख्य अनाज था…

आज घरवाले उसी बेजड़ की रोटी को चोखी धाणी में खाकर हजारों रुपए खर्च कर देते हैं….

हम अक्सर अपने ही परिवारों में बुजुर्गों के लम्बी दूरी पैदल चल सकने, तैरने, दौड़ने, सुदीर्घ जीने, स्वस्थ रहने के किस्से सुनते हैं। वे सब मोटा अनाज ही खाते थे गेंहू नहीं। एक पीढ़ी पहले किसी का मोटा होना आश्चर्य की बात होती थी, आज 77 प्रतिशत भारतीय ओवरवेट हैं और यह तब है जब इतने ही प्रतिशत भारतीय कुपोषित भी हैं…फ़िर भी 30 पार का हर दूसरा भारतीय अपनी तौंद घटाना चाहता है….

गेंहू की लोच ही उसे आधुनिक भारत में लोकप्रिय बनाये हुये है क्योंकि इसकी रोटी कम समय और कम आग में आसानी से बन जाती है…पर यह अनाज उतनी आसानी से पचता नहीं है…

समय आ गया है कि भारतीयों को अपनी रसोई में 80-90 प्रतिशत अनाज जौ, ज्वार, बाजरे आदि को रखना चाहिये और 10-20 प्रतिशत गेंहू को…

हाल ही कोरोना ने जिन एक लाख लोगों को भारत में निगला है उनमें से डायबिटिज वाले लोगों का प्रतिशत 70 के करीब है…वाकई गेहूं त्यागना ही पड़ेगा….

अन्त में एक बात और भारत के फिटनेस आइकन 54 वर्षीय टॉल डार्क हेंडसम (TDH) मिलिंद सोमन गेंहू नहीं खाते हैं….

मात्र बीते 40 बरसों में यह हाल हो गया है तो अब भी नहीं चेतोगे फ़िर अगली पीढ़ी के बच्चे डायबिटिज लेकर ही पैदा होंगे…

‘न्यू यॉर्क टाइम्स’ के सबसे अधिक बिकने वाली किताब “Wheat Belly” (गेहूं की तोंद) में से लिया गया अंश।

संकलन :– पवन जैन मुंबई
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(4) कहानी

*अच्छे लोगो के साथ ही बुरा क्यो होता है…
यह सवाल कई लोगो के मन मे आता होगा। मैंने तो किसी का बुरा नही किया, फिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ। मैं तो सदैव ही धर्म और नीति के मार्ग का पालन करता हूँ, फर मेरे साथ हमेशा बुरा क्यो होता है।

एक बार अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि हे अच्छे लोगो के साथ ही बुरा क्यो होता है…

यह सवाल कई लोगो के मन मे आता होगा। मैंने तो किसी का बुरा नही किया, फिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ। मैं तो सदैव ही धर्म और नीति के मार्ग का पालन करता हूँ, फर मेरे साथ हमेशा बुरा क्यो होता है।

ऐसे कई विचार अधिकांश लोगों के मन मे आते होंगे। ऐसे ही तमाम सवालों के जवाब स्वयं श्रीकृष्ण ने दिए हैं।

एक बार अर्जुन श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि हे वासुदेव ! अच्छे और सच्चे बुरे लोगो के साथ ही बुरा क्यो होता है, इस पर श्री कृष्ण ने एक कहानी सुनाई। इस कहानी में हर मनुष्य के सवालों का जवाब वर्णित है।

श्रीकृष्ण कहते हैं, कि एक नगर में दो पुरूष रहते थे। पहला व्यक्ति जो बहुत ही अच्छा इंसान था, धर्म और नीति का पालन करता था, भगवान की भक्ति करता था और मन्दिर जाता था। वह सभी तरह के गलत कामो से दूर रहता था। वहीं दूसरा व्यक्ति जो कि दुष्ट प्रवत्ति का था, वो हमेशा ही अनीति और अधर्म के काम करता था। वो रोज़ मन्दिर से पैसे और चप्पल चुराता था, झूठ बोलता था और नशा करता था। एक दिन उस नगर में तेज बारिश हो रही थी और मन्दिर में कोई नही था, यह देखकर दूसरे उस नीच व्यक्ति ने मन्दिर के सारे पैसे चुरा लिए और पुजारी की नज़रों से बचकर वहाँ से भाग निकला, थोड़ी देर बाद जब वो पहला व्यक्ति दर्शन करने के उद्देश्य से मन्दिर गया तो उस पर चोरी करने का इल्ज़ाम लग गया। वहाँ मौजूद सभी लोग उसे भला – बुरा कहने लगे, उसका खूब अपमान हुआ। जैसे – तैसे कर के वह व्यक्ति मन्दिर से बाहर निकला और बाहर आते ही एक गाड़ी ने उसे टक्कर मार दी। वो व्यक्ति बुरी तरह से चोटिल हो गया। इसी वक्त मन्दिर से दूर भागते समय उस दुष्ट व्यक्ति को एक नोटो से भरी पोटली हाथ लगी, इतना सारा धन देखकर वह दुष्ट खुशी से पागल हो गया और बोला कि आज तो मज़ा ही आ गया। पहले मन्दिर से इतना धन मिला और फिर ये नोटों से भरी पोटली। दुष्ट की यह बात सुनकर पहला व्यक्ति दंग रह गया।

उसने घर जाते ही घर मे मौजूद भगवान की सारी तस्वीरे निकाल दी और भगवान से नाराज़ होकर जीवन बिताने लगा। सालो बाद जब उन दोनों की मृत्यु हो गयी और दोनों यमराज के सामने गए तो उस व्यापारी ने नाराज़ स्वर में यमराज से प्रश्न किया कि मैं तो सदैव ही अच्छे कर्म करता था, जिसके बदले मुझे अपमान और दर्द मिला और इस अधर्म करने वाले दुष्ट को नोटो से भरी पोटली…आखिर क्यों?
उसके सवाल पर यमराज बोले जिस दिन तुम्हारे साथ दुर्घटना घटी थी, वो तुम्हारी ज़िन्दगी का आखिरी दिन था, लेकिन तुम्हारे अच्छे कर्मों की वजह से तुम्हारी मृत्यु एक छोटी सी चोट में बदल गयी।

वही इस दुष्ट को जीवन मे राजयुग मिलने की सम्भावनाएं थी, लेकिन इसके बुरे कर्मो के चलते वो राजयोग एक छोटे से धन की पोटली में बदल गया।

श्रीकृष्ण कहते हैं कि “भगवान हमे किस रूप में दे रहे हैं, ये समझ पाना बेहद कठिन होता है। अगर आप अच्छे कर्म कर रहे हैं और बुरे कर्मो से दूर हैं, तो भगवान निश्चित ही अपनी कृपा आप पर बनाए रखेंगे।

जीवन मे आने वाले दुखों और परेशानियों से कभी ये न समझे कि भगवान हमारे साथ नही है, हो सकता है आपके साथ और भी बुरा होने का योग हो, लेकिन आपके कर्मों की वजह से आप उनसे बचे हुए हो।

तो ये थी श्रीकृष्ण द्वारा बताई गई एक रोचक कहानी, जिसमे मनुष्यों के अधिकांश सवालों के उत्तर मौजूद हैं।

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(5) कहानी

इस कहानी को पढ़कर सारी ज़िन्दगी की टेंशन खत्म हो जायेगी…

POWER OF POSITIVE THOUGHT

एक व्यक्ति काफी दिनों से चिंतित चल रहा था जिसके कारण वह काफी चिड़चिड़ा तथा तनाव में रहने लगा था, वह इस बात से परेशान था कि घर के सारे खर्चे उसे ही उठाने पड़ते हैं, पूरे परिवार की जिम्मेदारी उसी के ऊपर है, किसी ना किसी रिश्तेदार का उसके यहाँ आना जाना लगा ही रहता है

इन्हीं बातों को सोंच सोच कर वह काफी परेशान रहता था तथा बच्चों को भी अक्सर डांट देता था तथा अपनी पत्नी से भी ज्यादातर उसका किसी न किसी बात पर झगड़ा चलता रहता था।

एक दिन उसका बेटा उसके पास आया और बोला पिताजी मेरा स्कूल का होमवर्क करा दीजिये, वह व्यक्ति पहले से ही तनाव में था तो उसने बेटे को डांट कर भगा दिया लेकिन जब थोड़ी देर बाद उसका गुस्सा शांत हुआ तब वह बेटे के पास गया और देखा कि बेटा सोया हुआ है तथा उसके हाथ में उसके होमवर्क की कॉपी है उसने कॉपी लेकर देखी और जैसे ही उसने कॉपी नीचे रखनी चाही उसकी नजर होमवर्क के टाइटल पर पड़ी।

होमवर्क का टाइटल था…

“वे चीजें जो हमें शुरू में अच्छी नहीं लगतीं लेकिन बाद में वे अच्छी ही होती हैं।”

इस टाइटल पर बच्चे को एक पैराग्राफ लिखना था जो उसने लिख लिया था। उत्सुकतावश उसने बच्चे का लिखा हुआ पढ़ना शुरू किया बच्चे ने लिखा था…

मैं अपने फाइनल एग्जाम को बहुत धन्यवाद् देता हूँ क्योंकि शुरू में तो ये बिलकुल अच्छे नहीं लगते लेकिन इनके बाद स्कूल की छुट्टियाँ पड़ जाती हैं।

मैं ख़राब स्वाद वाली कड़वी दवाइयों को बहुत धन्यवाद् देता हूँ क्योंकि शुरू में तो ये कड़वी लगती हैं लेकिन ये मुझे बीमारी से ठीक करती हैं।
मैं सुबह-सुबह जगाने वाली उस अलार्म घड़ी को बहुत धन्यवाद् देता हूँ जो मुझे हर सुबह बताती है कि मैं जीवित हूँ।
मैं ईश्वर को भी बहुत धन्यवाद देता हूँ जिसने मुझे इतने अच्छे पिता दिए क्योंकि उनकी डांट मुझे शुरू में तो बहुत बुरी लगती है लेकिन वो मेरे लिए खिलौने लाते हैं, मुझे घुमाने ले जाते हैं, मुझे अच्छी अच्छी चीजें खिलाते हैं और मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मेरे पास पिता हैं क्योंकि मेरे दोस्त सोहन के तो पिता ही नहीं हैं।

बच्चे का होमवर्क पढ़ने के बाद वह व्यक्ति जैसे अचानक नींद से जाग गया हो, उसकी सोंच बदल सी गयी बच्चे की लिखी बातें उसके दिमाग में बार बार घूम रही थी। खासकर वह आखीरी वाली लाइन जिससे उसकी नींद उड़ गयी थी फिर वह व्यक्ति थोड़ा शांत होकर बैठा और उसने अपनी परेशानियों के बारे में दोबारा सोंचना शुरू किया।

●● मुझे घर के सारे खर्चे उठाने पड़ते हैं, इसका मतलब है कि मेरे पास घर है और ईश्वर की कृपा से मैं उन लोगों से बेहतर स्थिति में हूँ जिनके पास घर नहीं है।

●● मुझे पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है, इसका मतलब है कि मेरा परिवार है, बीवी बच्चे हैं और ईश्वर की कृपा से मैं उन लोगों से ज्यादा खुशनसीब हूँ जिनके पास परिवार नहीं हैं और वो दुनियाँ में बिल्कुल अकेले हैं।

●● मेरे यहाँ कोई ना कोई मित्र या रिश्तेदार आता जाता रहता है, इसका मतलब है कि मेरी एक सामाजिक हैसियत है और मेरे पास मेरे सुख दुःख में साथ देने वाले लोग हैं।

हे ! मेरे भगवान् ! तेरा बहुत बहुत आभार है •••
मुझे माफ़ करना मैं तेरी कृपा को पहचान ही नहीं पाया।

इसके बाद उसकी सोंच एकदम से बदल गयी उसकी सारी परेशानी, सारी चिंता एक दम से जैसे ख़त्म हो गयी वह एकदम से बदल सा गया और भागकर अपने बेटे के पास गया और सोते हुए बेटे को गोद में उठाकर उसके माथे को चूमने लगा और अपने बेटे को तथा ईश्वर को धन्यवाद देने लगा।

हमारे सामने जो भी परेशानियाँ हैं, हम जब तक उनको नकारात्मक नज़रिये से देखते रहेंगे तब तक हम परेशानियों से घिरे रहेंगे लेकिन जैसे ही हम उन चीजों को और उन्हीं परिस्तिथियों को सकारात्मक नज़रिये से देखेंगे हमारी सोंच एकदम से बदल जाएगी हमारी सारी चिंताएं, सारी परेशानियाँ, सारे तनाव एक दम से ख़त्म हो जायेंगे और हमें मुश्किलों से निकलने के नए-नए रास्ते दिखाई देने लगेंगे।

अगर आपको बात अच्छी लगे तो उसका अनुकरण करके जिन्दगी को खुशहाल, आनन्द दायक बनाइये..!!

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