’एक खबर सा है तू, रोक नहीं पाता खुद को बिखरने से
एक आइना सा है तू, रोक नहीं पाता किसी को संवरने से’
आने वाले कुछ दिनों में मोदी मंत्रिमंडल में एक बड़ा फेरबदल मुमकिन है, कयासों के मंजर सज चुके हैं, आने व जाने वालों की धड़कनें तेज हैं। सूत्रों की मानें तो संसद के मानसून सत्र यानी 17 जुलाई से पहले यह फेरबदल कभी भी हो सकता है। इसके लिए जो तारीख मुकर्रर हो सकती है, वह है 4 या 5 जुलाई या फिर 8-15 जुलाई के बीच कभी भी। जो नाम मंत्री बनने की रेस में शामिल हैं, वे हैं कैप्टन अमरिंदर सिंह, सीपी जोशी, चिराग पासवान, हरसिमरत कौर बादल, केशव प्रसाद मौर्य, प्रताप राव जाधव, राहुल शेवाले या श्रीरंग बर्ने में से कोई एक। कई बड़े मंत्रियों को आसन्न 2024 के चुनावों के मद्देनज़र पार्टी संगठन में भेजा जा सकता है, जैसे धर्मेंद्र प्रधान, भूपेंद्र यादव, नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद जोशी, गजेंद्र सिंह शेखावत व महेंद्र नाथ पांडेय, ये लोग भाजपा संगठन की शोभा बढ़ा सकते हैं। कुछ मंत्रियों के भार कम किए जा सकते हैं, जैसे अश्विनी वैष्णव आईटी, ज्योतिरादित्य सिंधिया से स्टील और अनुराग ठाकुर से सूचना-प्रसारण मंत्रालय वापिस लिया जा सकता है। बदले परिदृश्य में एकनाथ शिंदे की शिवसेना, मुकेश सहनी की वीआईपी और एनडीए का पुराना घटक दल अकाली फिर से सरकार में वापसी कर सकते हैं। वापसी के कयास तो चंद्रबाबू नायडू की तेदेपा के लिए भी है। राजस्थान के आने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए दौसा की सांसद जरकौर मीणा, व बांसवाड़ा-डूंगरपुर के सांसद कनकमल कटारा के नाम भी मंत्री पद की रेस में शामिल बताए जाते हैं। वहीं राजस्थान का ब्राह्मण चेहरा घनश्याम तिवाड़ी, सीकर के सांसद सुमेधानंद सरस्वती व राजकुमारी दीया कुमारी के नाम के भी चर्चे हैं। तेलांगना के प्रदेश अध्यक्ष बांदी संजय कुमार को भी कैबिनेट में शामिल किया जा सकता है। मल्याली सुपर स्टार सुरेश गोपी जो केरल से आते हैं, इनको भी केंद्र में मंत्री बनाया जा सकता है। तेलांगना प्रदेश भाजपा के नए अध्यक्ष के तौर पर एटाला राजेंद्र और डीके अरूणा के नामों की चर्चा है। इन कयासों को इसीलिए भी पंख मिल रहे हैं कि प्रगति मैदान दिल्ली के नए बने कन्वेंशन सेंटर में पीएम मोदी अपने कैबिनेट की अहम बैठक 3 जुलाई को कर रहे हैं। इससे पहले अपनी विदेश यात्रा से लौटने के तुरंत बाद इस बुधवार को पीएम ने अपने सरकारी आवास पर अमित शाह, जेपी नड्डा व संगठन महासचिव बीएल संतोष के साथ 5 घंटों की एक मैराथन बैठक की थी, यह बैठक सरकार व पार्टी संगठन में व्यापक बदलाव पर फोकस थी।
सक्रिय राजनीति में आएंगी अहमद पटेल की बेटी मुमताज
कभी कांग्रेस की राजनीति की धुरी रहे और पार्टी के चाणक्य में शुमार होने वाले दिवंगत अहमद पटेल की बेटी मुमताज पटेल ने कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में उतरने के लिए अपनी कदमताल तेज कर दी है। जिस दिन दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में छत्तीसगढ़ को लेकर एक अहम बैठक चल रही थी, उसी रोज मुमताज अपने पिता के पूर्व सहयोगी यतीन्द्र शर्मा के साथ राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और वेणुगोपाल से मिली थीं। इस मीटिंग को तय करवाने में कनिष्क सिंह और मुकुल वासनिक की एक अहम भूमिका बताई जाती है। कभी अहमद पटेल के बेहद भरोसेमंद लोग चाहते हैं कि मुमताज को पार्टी के शीर्ष निर्णायक संगठन ’कांग्रेस वर्किंग कमेटी’ में जगह मिले। यह भी सुना जा रहा है कि खड़गे ने मुमताज के समक्ष महिला कांग्रेस की बागडोर संभालने का प्रस्ताव रखा, पर मुमताज ने इसके लिए मना कर दिया है। मुमताज अपने पिता की भरूच सीट से लोकसभा का अगला चुनाव लड़ना चाहती है। यह सीट 1952 से लेकर 1977 तक लगातार कांग्रेस के पास रही थी, 1977 में जब देश में कांग्रेस विरोधी लहर चल रही थी तब अहमद पटेल को कांग्रेस ने इस सीट से उतारा था और तब पटेल चुनाव जीत गए थे और जीतने के बाद उन्होंने इंदिरा गांधी के लिए यह सीट छोड़ने की पेशकश भी कर दी थी। फिर अहमद पटेल ने 1980 और 1985 का चुनाव भी भरूच से जीत कर अपनी जीत की तिकड़ी बना दी, 1989 में वे राज्यसभा के लिए चुन लिए गए, फिर लगातार राज्यसभा में ही बने रहे पर भरूच से उनका नाता कभी टूटा नहीं, वे लगातार भरूच में सक्रिय रहे, जबकि भरूच राजपूतों के दबदबे वाली सीट है। राहुल गांधी ने कांग्रेस संगठन में 50 से कम उम्र के युवाओं को 50 फीसदी जगह देने का लक्ष्य रखा है, यही वजह है कि मुमताज को भी लगता है कि उन्हें कांग्रेस संगठन में कुछ बड़ा मिलने जा रहा है।
शताब्दी वर्ष की तैयारियों में जुटा संघ
डॉ. केशव हेडगेवार ने सन् 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव डाली थी, इस लिहाज से आने वाले 2025 में संघ अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर लेगा। संघ ने अपने शताब्दी वर्ष को जोर शोर से मनाने की तैयारियां अभी से शुरू कर दी है। अभी देशभर में संघ की 55,000 शाखाएं लगती हैं, संघ का लक्ष्य 2025 तक इसे एक लाख करने का है। संघ का लक्ष्य गांव-गांव तक अपने विचारों के विस्तार का है, जिसके लिए संघ ने अपने नंबर दो दत्तात्रेय होसाबोले की अगुवाई में 3000 लोगों की एक टीम बनाई है, इस टीम को ’शताब्दी वर्ष विस्तारक’ के रूप में जाना जाएगा। ये विस्तारक गांव-गांव तक पहुंचेंगे, इनका लक्ष्य खास तौर पर दलित व घुमंतु जातियों को साधने का है। 10-12 गांवों को मिला कर ये विस्तारक इसे एक मंडल का रूप देंगे। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में यही विस्तारक ’एक गांव, एक कुआं और एक श्मशान’ की नीति को अमलीजामा पहनाएंगे। 2024 के आसन्न आम चुनाव के मद्देनज़र ये विस्तारक देशभर की जमीनी हकीकत और लोगों के मूड को खंगाल कर इसकी रिपोर्ट ऊपर तक देंगे यानी कहीं न कहीं भाजपा को भी इन शताब्दी वर्ष विस्तारकों के जमीनी फीडबैक का लाभ मिलने वाला है।
केसीआर व भाजपा में क्या गुप्त डील है?
कभी भाजपा के खिलाफ देशभर में घूम-घूम कर अलख जगाने वाले चंद्रशेखर राव ने क्यों इतना बड़ा सियासी ’यू-टर्न’ ले लिया है? क्यों यूं अचानक शराब घोटाले में उनकी बेटी कविता पर जांच एजेंसियों की लटकती तलवारों की धार कुंद पड़ गई हैं? क्या केसीआर अब अंदरखाने से भाजपा की मदद को प्रस्तर हैं? जैसे पिछले दिनों जब केसीआर महाराष्ट्र के पंढरपुर के विट्ठल रूक्मिणी मंदिर में अपने 600 गाड़ियों के काफिले के साथ पूजा अर्चना को पहुंचे तो एक नया सियासी समीकरण भी वहां अंगड़ाई लेते दिखा। पूजा अर्चना के बाद केसीआर ने बकायदा वहां एक रैली कर अपना शक्ति प्रदर्शन भी कर दिया। कहते हैं महाराष्ट्र में महाअघाड़ी गठबंधन को चुनौती देने के लिए केसीआर का भाजपा के साथ एक गुप्त समझौता हो गया है। जिसके तहत वे पूरे महाराष्ट्र में अपने उम्मीदवार खड़े कर रहे हैं, जिससे महाअघाड़ी के वोट बैंक में सेंध लगाई जा सके, वैसे भी महाराष्ट्र के विदर्भ में तेलुगू भाषियों की एक अच्छी खासी तादाद है, बदले में भाजपा तेलांगना में केसीआर की राहों में कांटे नहीं बिछाएगी और जरूरत पड़ने पर उनकी पुत्री कविता को भी अभयदान मिल सकता है।
कैसे माने सिंहदेव?
बाबा के नाम से मशहूर सरगुजा के महाराज व छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव को बघेल सरकार में उप मुख्यमंत्री बनाने का फैसला कांग्रेस हाईकमान के लिए किंचित आसान नहीं था। सूत्रों की मानें तो राज्य में मुख्यमंत्री का ढाई साल का टर्म नहीं मिलने से सिंहदेव अपने पार्टी हाईकमान से इस कदर नाराज़ थे कि उन्होंने चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस छोड़ने का पक्का मन बना लिया था। सूत्रों की मानें तो सिंहदेव की बात आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल से हो चुकी थी और वे आसन्न राज्य चुनावों में कांग्रेस के जीत के मंसूबों पर झाड़ू लगाने को तैयार बैठे थे। कहते हैं इसके बाद राहुल करीबी कनिष्क सिंह हरकत में आए और उन्होंने आनन-फानन में सिंहदेव की बात राहुल से करवाई। फौरन सिंहदेव को दिल्ली तलब किया गया। कांग्रेस नेतृत्व को इस बात का डर सता रहा था कि सिंहदेव के बागी होने से सरगुजा संभाग की 14 सीटों पर इसका सीधा असर पड़ सकता है, इसके अलावा सरगुजा के आसपास की कोई दर्जन भर सीटों पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। सो, सिंहदेव के दिल्ली पहुंचते ही उनकी राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और छत्तीसगढ़ की प्रभारी कुमारी सैलजा के साथ कोई चार घंटे की मैराथन बैठक चली। इसके बाद कोई 45 मिनट खड़गे व राहुल गांधी अकेले में बैठे, फिर सिंहदेव को डिप्टी सीएम बनाने का अहम फैसला ले लिया गया।
…और अंत में
भाजपा ने मध्य प्रदेश में अपनी चुनावी रणनीति को नई धार देनी शुरू कर दी है, राज्य में जनमत सर्वेक्षण मनमाफिक न आने के बाद पार्टी हाईकमान ने एक नई रणनीति को परवान चढ़ाया है, इस नीति के तहत जिन सीटों पर कांग्रेस के मजबूत बागी मैदान में होंगे भाजपा उन्हें आर्थिक मदद देगी जिससे कि वे अधिकृत कांग्रेस प्रत्याशी की नाक में दम कर सके। कुछ मजबूत प्रत्याशियों को कांग्रेस उम्मीदवार के मुकाबले खड़ा भी करवाया जा सकता है। बुंदेलखंड क्षेत्र में बसपा में विद्रोह की स्थिति है, भाजपा ने अभी से यहां बागी बसपा नेताओं की शिनाख्त शुरू कर दी है, भाजपा इन्हें भी साजो-सामान से लैस कर कांग्रेस उम्मीदवारों के खिलाफ मैदान में उतार सकती है। (एनटीआई–gossipguru.in)