एक पौराणिक मान्यता के अनुसार देवताओं में सबसे पहले पूजे जाने वाले भगवान गणेश का जन्म माउंटआबू (राजस्थान) में हुआ था और माता पार्वती ने अर्बुद पर्वत के इशान शिखर पर बैठकर पुत्र की कामना के लिए पुन्यंक नामक व्रत किया था। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार स्कन्द पुराण के अर्बुद खंड के गौरी शिखर पर्वत पर भगवान गणेश का जन्म हुआ था। गौरी शिखर यानि अर्बुद पर्वत और भगवान गणेश के जन्म स्थान पर बना मंदिर और उनकी निशानियां आज भी मौजूद हैं।
माउंटआबू के अर्बुद पर्वत सहित अरावली पर्वत के सभी धर्म ग्रंथों में देवी देवताओं के निवास स्थान होने का उल्लेख है। स्कन्द पुराण के तीसरे अध्याय में अर्बुद खंड के अनुसार माउंटआबू के गौरी शिखर जिसे अब गुरु शिखर कहते हैं भगवान गणेश के जन्म होने के प्रमाण मिलते हैं।
करीब 200 साल पहले जाने माने संत रामदास ने भी आबू कल्प में लिखा है कि महा विनायक का जन्म गौरी शिखर पर पश्चिम दिशा में हुआ था। माउंटआबू में गोबर गणेश की प्रतिमा दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इस प्राचीन मूर्ति के बारे में ये मान्यता है कि यहां जो भी मांगा जाता है गणपति उसकी इच्छा ज़रूर पूरी करते है।यह 32 तीर्थो में पहला मुख्य तीर्थ है ।स्कन्द पुराण में वर्णन है कि इस पर्वत पर गणेश का जन्म होने के कारण इसके दर्शन मात्र से पापो का नाश होता है और व्यक्ति वैकुंठ लोक को प्राप्त होता है। यही वजह है कि श्रद्धालुओं में इस जगह को लेकर गहरी आस्था है। यूं तो भगवान गणेश की जन्म स्थली को लेकर मतभेद रहे हैं लेकिन किसी भी देवी देवता की जन्म स्थली को लेकर सबसे प्रमाणिक ग्रंथ अगर कोई है तो वो स्कन्द पुराण है। स्कंद पुराण में इस बात की चर्चा सात बार आईं हैं।
स्कंद पुराण के अर्बुद खंड में गणेश के प्रादुर्भाव की कथा इस प्रकार है। मां पार्वती ने भगवान शंकर से पुत्र प्राप्ति का वर मांगा। भगवान शंकर ने पावर्ती को पुण्यंक नाम का व्रत करने को कहा। जिसके बाद उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान भगवान शंकर से मिला।इसके बाद भगवान गणेश का जन्म गोबर से हुआ।उनके जन्म के समय 33 कोटी देवी-देवताओं के साथ भगवान शंकर ने अर्बुदारण्य की परिक्रमा की। ऋषि-मुनियों ने देवी- देवताओं के सहयोग से गोबर गणेश की प्रतिमा स्थापित की जो आज सिद्धिगणेश के नाम से जाना जाता है।
गोबर गणेश मंदिर को लंबोदर मंदिर, सिद्धि विनायक मंदिर, गोबर गणेश मंदिर या फिर सिद्धि गणेश मंदिर के नाम से जाना जाता है। गोबर गणेश की ये प्रतिमा आज भी भव्य रुप में विराजमान है ।यह प्रतिमा 4,500 साल पुरानी है। भगवान गणेश की प्रतिमा यहां बालरुप में विराजमान है।भगवान के दर्शन के लिए 200 सीढि़यों की चढ़ाई चढ़नी होती है ।
पद्म पुराण के अनुसार उनकी पूजा दूब से की जाती है। घर में कभी भी तीन गणेश की पूजा नहीं करनी चाहिए। भगवान गणेश की तीन प्रदक्षिणा ही करनी चाहिए। भगवान गणपति की आराधना में नामाष्टकका स्तवन अवश्य करना चाहिए। जिससे चतुर्थी के देवता भगवान वरद विनायक प्रसन्न होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति अवश्य करावें। हरित वर्ण का दूर्वा जिसमें अमृत तत्त्व का वास होता है, उसको भगवान श्री गणेश पर चढाने से समस्त विघ्नों का विनाश हो जाता है तथा अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
|| पार्वती नंदन श्री गणेश भगवान की जय हो ||