ग्लोबल साउथ की आवाज बनने के लिए भारत खेलेगा बड़ा दांव, जानिए G-20 कैसे खोलेगा इंडिया के लिए सुपरहाईवे?
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली ,19 अगस्त। बस अब 15 दिनों का वक्त बचा है, जब भारत, अपनी राजधानी नई दिल्ली में ग्रुप ऑफ ट्वेंटी (जी20) शिखर सम्मेलन आयोजित करेगा। पिछले साल दिसंबर में G-20 की अध्यक्षता संभालने के बाद से, भारत ने विभिन्न भू-राजनीतिक मुद्दों पर कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कई बैठकें आयोजित की हैं।
भारत ने शुरुआत में घोषणा की थी, कि वह अपने कार्यकाल के दौरान ग्लोबल साउथ यानि वैश्विक पश्चिम की आवाज बनेगा। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल दिसंबर में कहा था, कि “हमारी G-20 प्राथमिकताएं न केवल हमारे जी20 भागीदारों, बल्कि ग्लोबल साउथ में हमारे साथी-देशों के परामर्श से भी तय की जाएंगी, जिनकी आवाज अक्सर अनसुनी कर दी जाती है।”
इसके बाद से भारत सरकार ने, विशेष रूप से यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद वैश्विक दक्षिण की चिंताओं को उठाने पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए बातचीत को आगे बढ़ाना सुनिश्चित किया है।
ग्लोबल साउथ क्या है? भारत उनकी “आवाज़” बनकर सेवा करने का अपना वादा कैसे पूरा कर रहा है? आइये समझने की कोशिश करते हैं।
ग्लोबल साउथ क्या है?
ग्लोबल साउथ का इस्तेमाल एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों को संदर्भित करने के लिए किया जाता है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूरोप, रूस, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे आर्थिक रूप से विकसित देश ग्लोबल नॉर्थ का गठन करते हैं।
भारत ने पहले भी कई बार संयुक्त राष्ट्र की बैठकों और सम्मेलनों सहित अंतरराष्ट्रीय मंचों पर वैश्विक दक्षिण देशों को परेशान करने वाले मुद्दों को उठाया है।
वैश्विक थिंक टैंक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम के साथ यूरोप की एसोसिएट फेलो शायरी मल्होत्रा ने अपने फरवरी के लेख में लिखा है, कि “अपनी स्वतंत्रता के बाद के वर्षों में, भारत ने तीसरी दुनिया की एकजुटता का समर्थन करते हुए, उस समय की महान शक्ति की राजनीति में उलझने से बचने के लिए, विकासशील देशों के लिए के लिए और भी ज्यादा जगह तलाशने के लिए ज्यादा विकल्प सुनिश्चित करने के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया।”
मल्होत्रा ने आगे कहा, कि ग्लोबल नॉर्थ के देशों के साथ नई दिल्ली के घनिष्ठ संबंध और ग्लोबल साउथ के देशों के साथ इसकी समान चुनौतियां, एशियाई देश को एक अद्वितीय स्थिति में रखती हैं।
वहीं, भारतीय विदेश मंत्रालय के पूर्व सलाहकार अशोक मलिक ने डॉयचे वेले (डीडब्ल्यू) को बताया, कि भारत का “रणनीतिक लक्ष्यों और मूल्यों के मामले में पश्चिम के साथ गहरा संबंध है।” लेकिन, उन्होंने कहा, कि “इसकी जड़ें ग्लोबल साउथ में भी गहरी हैं। इसलिए भारत ने विकसित दुनिया के जी20 सदस्यों और ग्लोबल साउथ के बीच एक सेतु बनने की कोशिश की है।”
G20 में ग्लोबल साउथ पर भारत का फोकस
जनवरी में, भारत ने विकासशील देशों के नेताओं और मंत्रियों का ‘वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट’ नामक एक वर्चुअल शिखर सम्मेलन का आयोजन किया था और हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, नई दिल्ली का उद्देश्य जी20 में प्रतिनिधित्व नहीं करने वाले देशों से उनकी राय जानना था, कि वो भारत से क्या उम्मीद करते हैं।
भारत का ये कदम, उसकी लीडरशिप क्वालिटी को दर्शाने के साथ साथ भविष्य में भारत के सुपरपावर बनने का रास्ता भी साफ करता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने 12 जनवरी को शिखर सम्मेलन के अपने उद्घाटन भाषण में 4R का जिक्र किया था, जो हैं रिस्पाउंड, रिकॉग्नाइज, रेस्पेक्ट और रिफॉर्म।
द डिप्लोमैट पत्रिका के मुताबिक, भारतीय प्रधानमंत्री ने आगे बताते हुए कहा, कि “इसका मतलब ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं का जवाब देना, ‘सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों’ के सिद्धांत को पहचानना, सभी देशों की संप्रभुता का सम्मान करना और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में सुधार करना है।”
इस शिखर सम्मेलन में 125 देशों ने हिस्सा लिया था, जिसमें लैटिन अमेरिका और कैरेबियन देशों में से 29, 47 अफ्रीकी देश, यूरोप के सात देश, 31 एशियाई देश और ओशिनिया के 11 देश शामिल थे और ये दुनिया का सबसे बड़ा वर्चुअल शिखर सम्मेलन था।
अफ्रीकन यूनियन को जी-20 की सदस्यता
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत G20 में अफ्रीकी संघ की सदस्यता पर जोर देकर अपनी अध्यक्षता को सफल बनाने पर दांव लगा रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है, कि भारत के एयू प्रस्ताव को दो कारणों से “बहुत समर्थन” मिल रहा है। सबसे पहले, यह पहली बार है, कि जी20 तिकड़ी – इंडोनेशिया, भारत और ब्राजील – में तीन विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं।
दूसरे, वर्तमान G20 को यूरोप का “अति-प्रतिनिधित्व” करने वाले के रूप में देखा जाता है, क्योंकि यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ इस समूह का एक चौथाई हिस्सा बनाते हैं।
जबकि, रूस और चीन, जो G20 दस्तावेज़ में यूक्रेन युद्ध का कोई संदर्भ नहीं चाहते हैं, पहले से ही भारत के राष्ट्रपति पद के लिए सभी नेताओं को एक संयुक्त बयान बनाने के लिए चुनौती पेश कर रहे हैं, लिहाजा एयू सदस्यों को जी-20 की सदस्यता दिलाना भारत की ऐतिहासिक कामयाबी हो सकती है, जिससे अफ्रीकी देशों में भारत एक लीडर की तरह स्थापित हो जाएगा।