चैट -जी.पी.टी से क्यों डरे हुए हैं लेखक ??

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
*संजय स्वतंत्र
इन दिनों चैट जीपीटी की बड़ी चर्चा है। मेरे पास कई युवा पत्रकारों के फोन आते हैं। उनका यही सवाल होता है कि क्या एआइ (कृत्रिम मेधा) और चैट जीपीटी से हमारा भविष्य खतरे में है। मैं उन्हें कहता हूं, शायद, मगर पूरी तरह नहीं। याद कीजिए जब कंप्यूटर आया था तब भी यही सवाल उठे थे। जब भी कोई नई तकनीक आती है तो ऐसी आशंका लोगों के मन में घर करने लगती है। मुझे याद है उस समय मैं खबरें लिखता था। धीरे-धीरे कंप्यूटर आता गया और हम सभी कंप्यूटर पर ही खबरें कंपोज करने लगे। इसके बाद सभी पत्रकार कंप्यूटर कुशल हो गए। फिर तो इसी कंप्यूटर पर न केवल सीधे खबरें तैयार होने लगीं बल्कि इसी पर अखबार के सभी पन्ने भी बनने लगे। देखते ही देखते न्यूजरूम का चेहरा बदल गया।
…कोई पच्चीस-तीस साल बाद फिर तस्वीर बदलने वाली है। तमाम सर्च इंजनों से आगे बढ़ कर कृत्रिम मेधा और चैट जीपीटी ने पूरा परिदृश्य बदलने के लिए कमर कस ली है। तकनीकीविद् तो इसे इंटरनेट से कहीं आगे का माध्यम बता रहे हैं। इसकी असीम संभावनाओं को देखते हुए गूगल और मेटा ने चैट जीपीटी के तर्ज पर ऐसे माडल तैयार किए हैं। मगर वे चैट जीपीटी की तरह सटीक और एक जवाब नहीं दे पाते। दूसरी ओर अगर आप पूछे गए सवाल से संतुष्ट नहीं है तो जीपीटी दोबारा नया डाटा तैयार करता है। वह तक तक बदलाव करता है जब तक कि आप पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो जाते। यानी गूगल की तरह यह दस तरह के विकल्प नहीं देता। जाहिर है सबसे पहले तो गूगल को ही इससे खतरा है। हम तो बाद में आते हैं।
आखिर चैट जीपीटी से लोग खासतौर से लेखक-साहित्यकार क्यों डरे हुए हैं। दरअसल, यह एआइ तकनीक का सुगमता से प्रयोग करते हुए मानसिक रूप से थका देने वाले कई कामों को आसान करने वाला है। इसका असर हम मीडिया से लेकर मनोरंजन उद्योग में सबसे पहले देखने वाले हैं। हालांकि इसके प्रयोग से पड़ने वाले संभावित प्रभाव से हालीवुड के लेखक, कलाकार, कैमरामैन भी सहमे हुए हैं। अभी वहां तीन महीने से हड़ताल चल रही है। उनके आंदोलन के मुद्दों में एआइ का प्रयोग भी शामिल है। यानी उन्हें अपनी नौकरी जाने का डर सता रहा है। उनका यही डर भारतीय लेखकों-पत्रकारों में भी दिख रहा है। यह डर इसलिए भी है कि चैट जीपीटी जल्द ही हिंदी और दूसरी भाषाओं में काम करने लगेगा। एक खतरा जरूर है कि मनुष्य इस पर निर्भर होने के बाद आलसी हो सकता है। उसकी अपनी बुद्धिमत्ता कुंद पड़ सकती है।
विख्यात तकनीकीविद् बालेंदु दाधीच बताते हैं कि कोई भी नई तकनीक संभावनाओं के नए द्वार खोलती है। यह तय है कि कृत्रिम मेधा से पृष्ठभूमि के बहुत से काम आसानी से होंगे। हालांकि वे इस बात से इत्तफाक रखते हैं कि मशीन आदमी की जगह नहीं ले सकती। फिर भी कई क्षेत्रों में एआई तकनीक का प्रयोग तेजी से बढ़ेगा। यह नई तकनीक बहुत सारे रचनात्मक और जटिल कामों को पलक झपकते पूरा कर देगी।
उन्होंने अनुवाद का उदाहरण देते हुए कहा कि एआई जैसे-जैसे सक्षम होगी साहित्य का अनुवाद दक्षता के साथ करती जाएगी। अगर पोलैंड में बैठा कोई पाठक प्रेमचंद की रचनाओं को अपनी भाषा में पढ़ना चाहे तो यह संभव हो जाएगा। या आप पौलेंड के साहित्य को हिंदी में पढ़ना चाहें तो यह काम भी कृत्रिम मेधा कर देगी। भाषा की जो दीवार है वह टूटेगी।
आप कहेंगे तो कृत्रिम मेधा कविता और कहानी लिख देगी, मगर इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं। क्योंकि नाटकीयता रचने की जो शक्ति और प्रतिभा लेखकों के पास है, वह एआई के पास तो होगी मगर वह उस तरह का चमत्कार शायद ही पैदा कर पाए। मनुष्य की रचनात्मकता और कृत्रिम मेधा की रचनात्मकता में कुछ तो फर्क होगा। उसके पास विविधता हो सकती है मगर गहराई तो मनुष्य के पास ही होगी। इसलिए सृजनशील लोगों को घबराने की जरूरत नहीं। बेहतर होगा कि हम लोग भी एआई दक्ष बनें।
दाधीच ने इस आशंका को भी खारिज किया कि एआइ में संवेदना नहीं होगी। अगर संवेदना नहीं होगी तो फिर सटीक अनुवाद कहां कर पाएगा। तो यहां भावनाएं भी महसूस होगी और लय भी। अभी यह शुरुआती दौर है। वैसे अगले कुछ सालों में क्या होगा, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। लेकिन इसका व्यापक असर जरूर देखने को मिलेगा। बीस साल पहले ही किसने सोचा था कि लोग मोबाइल से पैसे का लेन-देन और भुगतान करेंगे। बैंकिंग के काम करेंगे या कंप्यूटर में ही बही खाता समा जाएगा। इसी तरह अगले बीस सालों में एआई दक्ष या कहें कुशल बन कर हम अपने और भी काम आसानी से करने लगेंगे। कई कंपनियां जल्द ही अपनी आडिट रिपोर्ट कृत्रिम मेधा से तैयार कराने लगेंगीं।
कोई संदेह नहीं कि आने वाले कल के लिए हमें तैयार रहना चाहिए। तकनीक हमारे जीवन को बदलने वाली है। इसके प्रयोग से ‘ह्यूमन विजडम’ कितना फीसद प्रतिस्थापित हो जाएगा, यह कहना मुश्किल है। पर सभी को एआई दक्ष होना पड़ेगा, नहीं तो हम लोग पिछड़ जाएंगे। ठीक उसी तरह जिनको आज कंप्यूटर पर काम करना नहीं आता या मोबाइल का प्रयोग करना नहीं आता। इंटरनेट और मोबाइल फोन से आए बदलाव के बाद एक और नए बदलाव के लिए आप सभी तैयार रहिए।
*संजय स्वतंत्र
कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.