*कुमार राकेश
वर्ष 1999 की बात हैं.देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे.देश के सभी पत्रकार यूनियनों के राष्ट्रीय पदाधिकारियो का एक प्रतिनिधिमंडल उनसे मिलने प्रधानमंत्री आवास 7,रेसकोर्स मार्ग (अब लोक कल्याण मार्ग) पहुंचा.तमाम वरिष्ठ पत्रकारों के उस जमात में मैं भी एक सदस्य था.अटल जी से हम सबों की बड़ी अपेक्षाएं थी,क्योकि अटल जी एक पूर्व पत्रकार थे.लेकिन हम सबकी आशाओं परउस वक़्त तुषारपात हो गया,जब अटल जी ने पूर्व पत्रकार के तौर पर नहीं,बल्कि एक सत्ता के प्रमुख प्रतिनिधि की तरह व्यवहार किया.वो भी अपनी चिर परिचित हंसी-ठहाके वाली शैली में.मुद्दा पत्रकारों के वेतन बोर्ड को लेकर था.उस वक़्त पत्रकारों व गैर पत्रकारों के वेतनमानो को एक नए तरीके से सुनिश्चित करने के लिए न्यायमूर्ति राजकुमार मनीसाना सिंह आयोग कार्यरत था.करीब 6 साल हो गए थे.उस आयोग ने पत्रकारों के हितों के मद्देनजर सरकार को रिपोर्ट ही नहीं सौंपी थी.हम लोगो की मांग थी वो रिपोर्ट जल्द सौंपी जाये.जिससे हम पत्रकार बिरादरी का कुछ भला हो सके.अटल जी ने सबको सुना,आश्वासन दिया.उसके बाद का जवाब हम सबको चौकाने वाला था.हम लोगो की अपेक्षाओ के जवाब में उनका कहना था-आज आप लोग मिल रहे हो,कल आईएनएस के लोग,मतलब मीडिया हॉउस के मालिकानो का प्रतिनिधिमंडल भी मिलने वाला है.आईएनएस वाले उस रिपोर्ट के विलम्ब किये जाने के पक्ष में थे,जोकिउनके हित मेंथा.उस बात को सुनकर सभी पत्रकारों की स्थिति किंकर्तव्यविमूढ़ वाली हो गयी थी.उस प्रतिनिधिमंडल में श्याम खोसला,डॉ नन्द किशोर त्रिखा,महेश्वर दयालु गंगवार,अखौरी सुरेश प्रसाद,एसएन सिन्हासहित कई जाने माने पत्रकार थे.
ऐसा नहीं है कि हम पत्रकार बिरादरी के प्रति अटल जी का ही रुख ऐसा रहा.उनके पहले और बाद के प्रधानमंत्रियो में भी नरसिंह राव,देवेगौडा,गुजराल,डॉ मनमोहन सिंह का रवैया कमोबेश ऐसा ही रहा.सबके अनुभव मेरे पास हैं.तमाम सरकारी घोषणाओ के बावजूद आजतकराष्ट्रीय मीडिया परिषद् नहीं बन सका है.कौन जिम्मेदार है.?चिंता व चिंतन की बात है.कहते हैं सत्ता की अपनी अपनी संस्कृति व संस्कार होते हैं.इसलिए आज भी मेरे को राजनेता को लेकर न तो कोई अपेक्षा है न ही कोई भ्रम.
1990 के दशक के बाद से आजतक मीडिया की स्थिति में कई परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं.पहले की तुलना में स्थिति बद से बदतर ही हुयी है.नैतिकता व कार्यशैली को लेकर सब कुछ गिरता ही जा रहा है.कब वो ग्राफ उठेगा,कुछ कह नहीं सकते.पत्रकार की भूमिकाएं गौण हो गयी है.राजनेता,नीति निर्माता और मीडिया मालिकान का वर्चस्व बढ़ा है.सरकारी विज्ञापन बड़ी खबर हो गयी है.उन विज्ञापनों की सच्चाई को लेकर कोई रिपोर्टिंग नहीं होती.अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खोजी रिपोर्ट के परिणाम भी सरकारी स्तर पर ठन्डे बस्तेमें रख दिए जा रहे है.कोई कुछ नहीं बोल रहा.एक क्रिकेटर या फिल्म स्टार की शादियाँ ब्रेकिंग न्यूज़ बन गयी है.जबकि गरीबो की अकाल मृत्यु महज एक पट्टी वाली तथाकथित खबर.प्रिंट की भूमिकाएं बदली है तो टीवी मीडिया टीआरपी की अंधी दौर में शामिल हैं.सबकुछ इवेंट्स हो गया है.
पहले तो सरकारे हम पत्रकारों की बाते कम से कम सुन लिया करती थी,परन्तु आज तो पत्रकार/मीडियाकर्मी बेचारा हो गया है.पिछले दो दशक में तेजी से बदलते समीकरणों के तहत सरकारें अब पत्रकारों से नहीं मालिकों से बात करती हैं.सौदा सीधा तय होता है.खुला बाज़ार है.मोल है.भाव है.भंगिमाएं हैं.नए सुर हैं.नए ताल हैं.नए राग हैं.नए धुन हैं.नए गीत हैं.नए संगीत हैं.पत्रकारों की हितों की बाते अब अतीत हो गयी हैं.सत्ता व राजनीति मीडिया पर हावी है.पत्रकार/मीडियाकर्मी बेचारा है,मालिकान भगवान्!!
सरकार किसी भी दल के हो,परन्तु सबके स्वाभाव के जैसे होते है.कहते हैं सत्ता की भी एक अपनी संस्कृति होती है.अपना स्वाभाव होता है.वो नहीं बदलता.कभी पर्दे के पीछे बैठने वाला मालिकान समाज के सभी पूर्व स्थापित नैतिक,जनतान्त्रिक मूल्यों को भूलकर सामने आ गया है.पहले वो छुप छुप कर खेलते थे,आजकल खुलकर खेलते हैं.सच कहे तो तेजी से बदलते हुए इस माहौल में आज स्वयं को पत्रकार/मीडियाकर्मी कहने में संकोच होने लगा है.
मौजूदा स्थिति के परिपेक्ष्य में मेरे को ऐसा लग रहा है कि मीडिया,मालिको व सरकारों की पूर्णरुपेण दासी बन चुकी है.इस बात को लेकर कोई भ्रम में रहने की जरुरत नहीं है.सम्पादक नामक संस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है.मिशन वाली पत्रकारिता व्यवसाय की गलियों से गुजरते हुए बड़े बाज़ार में आकर टिक सी गयी लगती है.फिर भी किसी को कोई चिंता नहीं दिख रही है.लगता है सभी शिव भक्ति भाव में उस बाज़ार के विशेष नशे में मस्त हो गए हैं. उस नशे से मुक्त होने के बजाय नित नए प्रकार के नशे का अपनाया जाना आम बात सी हो गयी हैं.
शायद इसीलिए नब्बे के दशक के बाद भारत में कोई राहुल बारपुते,अज्ञेय,गिरिलाल जैन,एस मूलगावकर,शाम लाल,शम्भू नाथ झा,प्रभाकर माचवे,रामजी मिश्र मनोहर,रघुवीर सहाय,धर्मवीर भारती,आरके करंजिया,राजेंद्र माथुर,प्रभाष जोशी,सुरेन्द्र प्रताप सिंह,विनोद मेहता,एच के दुआ,अरुण शौरी,राम बहादुर राय,हरिवंश,हरिशंकर व्यास,आनंद किशोर सहाय,माधव कान्त मिश्र,विकास कुमार झा,मणिकांत ठाकुर,अश्विनी सरीन,सुचेता दलाल,चित्रा सुब्रहमन्यम जैसे पत्रकार/संपादक नहीं हो पाए.इन सभी व्यक्तित्वों काभारतीय मीडिया में समाचार व विचार के परिपेक्ष्य में अपना अपना विशेष योगदान रहा है.सबकी अपनी अपनी विशेषताएं रही हैं.
यदि हम क्रमवार तरीके से दशकीय शैली में मीडिया की तमाम स्थितियों के बारे में विश्लेषण करे तो वर्ष 2000 के बाद मीडिया में उतरोत्तर गिरावट में तेजी आई हैं.आज 2010 के बाद तो मीडिया शुद्ध तौर पर एक बाज़ार बन कर रह गया है.समाचार,विचार और विज्ञापन में घालमेल से समाचार पक्ष विलीन हो गया सा लगता है.समाचार और विज्ञापन कोई फर्क नहीं दिख रहा है.मीडिया हॉउस के मालिकान मस्त है तो मिशन वाले पत्रकार पस्त व त्रस्त हैं,बाज़ारवाद के समर्थक संपादक मस्त हैं.कुल मिलाकर मीडिया बेआबरू कर बाज़ार के चौराहे पर खड़ी कर दी गयी हैं.ये किसने किया है/कौन किया है /क्या इसके लिए पत्रकार खुद जिम्मेदार है या सरकारी या प्रबंधन व्यवस्था? ये एक यक्ष प्रश्न जैसा हो गया लगता है.अब तो कोई युधिष्ठिर नहीं दिख रहा,न ही अर्जुन.इस मीडिया बाज़ार में दुर्योधन व दुशासनो की जमात बड़ी व मज़बूत होती दिख रही हैं.मीडिया में कथनी व करनी में बड़ा लम्बा फर्क दिखने लगा हैं.जिसको समय रहते पाटने की जरुरत हैं.
सामाजिक नवजागरण में कभी मीडिया की बड़ी भूमिका हुआ करती थी.आज़ादी के पहले व अज अमृत काल में काफी अंतर है.वैसे कोयले के खदान चुके इस मीडिया जगत में अभी भी कई हीरे हैं, जो जनहित में समाचार व समाजके प्रति जिम्मेदाराना भाव रखते हैं,लेकिन वो हाशिये पर धकेल दिए गए हैं.
इस क्रम में पत्रकारों/मीडियाकर्मियों पर कई प्रकार के हमलो में बढ़ोतरी हुई हैं.अप्रैल 2022 में मध्यप्रदेश के सीधी जिले में राजनेता व सरकार ने पत्रकारों के साथ जो दुर्व्यवहार किया था,उसकी निंदा जितनी की जाये,वो कम है.ये बात दीगर है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बाद में माफ़ी मांगी ली थी.ये हैं पत्रकारों की दयनीय स्थिति का एक ताज़ातरीन उदाहरण.एक आंकड़े के अनुसार पिछले 15 वर्षो में 50 से ज्यादा पत्रकारों की हत्या हुयी हैं.जो कि दर्ज मामले है.
वैसे तो मीडिया के समक्ष कई चुनौतिया हैं. जिनमे पत्रकारों की सुरक्षा व सम्मान भी अहम् मसला है.चुनौती है.सोशल मीडिया का बढ़ता दुष्प्रभाव भी एक बड़ी चुनौती हैं.सरकार व समाज दोनों के लिए.सोशल मीडिया अनियत्रित सा हो गया है.फेक न्यूज़ के साथ भारत विरोधी खबरों मे वृद्धि हुयी है.जिस पर कड़ी कारवाई के साथ नियंत्रण की जरुरत है.देश हित में सरकारी स्तर पर कड़े कानून की जरुरत है.भारत सरकार ने हाल में समय समय पर सैकड़ो युट्यूब चैनलों को प्रतिबंधित भी किया हैं.
सरकार को सूचना तंत्र को जन हित में द्विपक्षीय करना चाहिए,जो कि कई कारणों से एक पक्षीय सा हो गया है.ये स्वस्थ व जीवंत लोकतंत्र के लिए अच्छी स्थिति नहीं कही जा सकती हैं.केंद्र व राज्य सरकारों को समाचार की आवाजाही को द्विपक्षीय करना पड़ेगा,तभी हम एक स्वस्थ व जीवंत समाज का दावा कर सकते हैं.
पिछले दो दशक में पत्रकारिता शब्द मीडिया में तब्दील हो गया हैं.उसमें प्रिंट,टीवी,ऑनलाइन,रेडियो और मनोरंजन को भी इस मीडिया शब्द में समाहित कर दिया गया है.क्योकि आजकल समाचार,विचार नहीं होकर मनोरंजन में तब्दील हो गए हैं. मीडिया के इस बड़े बाज़ार में पहले वाली वैचारिक व जनपयोगी पत्रकारिता कहीं खो गयी सी लगती है.इसलिए हम मीडिया की स्थिति व चुनौतियों पर चर्चा कर उस पुरातन,पारदर्शी,जनहित वाली स्थिति को खोजने की कोशिश कर रहे हैं,जिससे अपनी पत्रकार बिरादरी/मीडिया समाज के साथ आम जनता व समाज को भी एक सही दिशा मिल सके व हमें जीवंत लोकतंत्र का एहसास हो सके.
*लेखक परिचय
*कुमारराकेश,नईदिल्लीस्थितवरिष्ठपत्रकार,लेखक,कवि,राजनीतिकविश्लेषक,टिप्पणीकारहै.
देशकेकईशीर्षमीडियासंस्थानोंमेंकार्यरत रहे.देश के प्रमुखमीडिया संस्थानों में IndianNationसमूह,TimesofIndiaसमूह,HindustanTimesसमूह,IndianExpressसमूह,दैनिकभास्करसमूहसहितकईसंस्थानोंमेंविभिन्नसम्पादकीयपदोंपरकार्यरतरहेहैं.कईटीवीचैनलोकेसंस्थापकसम्पादक/समूहसंपादकरहेहैं.1987 सेपत्रकारितामेंसक्रिय.50 सेज्यादादेशोकीयात्रा.कईराष्ट्रपतियों/उपराष्ट्रपतियों/प्रधानमंत्रियोंकेसाथदेश -विदेशकीयात्रावमीडियाकवरेज.देशवविदेशकेकईमीडियाफ़ेलोशि,मानद सम्मान,.देश-विदेशकेकईमीडियासंस्थानोंवविश्वविद्यालयोंमेंसम्बोधनवव्याख्यान.भारत व विश्व के कई मीडिया संगठनो के मानद और सक्रिय सदस्य व सलाहकार .UNICEFकेकईप्रोजेक्ट्सकासफलसंयोजन, संपादनव समय समय पर सञ्चालन,भारतीयसंसदकेलगातार32वर्षोसेमीडियाकवरेजकेलिए“दीर्घवविशिष्टसेवाश्रेणी”कामानदसम्मान, भारतसरकारद्वाराप्रत्यायित,पत्रकारितावलेखनकेलिएदेशवविदेशमेंकईसम्मानवपुरस्कार.UNHQ,USAकेUNICद्वाराप्रत्यायित.
सम्प्रति-सम्पादकीयअध्यक्ष- GlobalGovernanceNewsGroupऔरसमग्रभारतमीडियासमूह ,नईदिल्ली,भारत सहित 25 देशोमें क्रियाशील सहयोगीइकाइयाँ.