विश्वकर्मा पूजा 2023: जाने हर साल 17 सितंबर को ही क्यों मनाई जाती है विश्वकर्मा पूजा?

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 17सितंबर। जब भगवान ब्रह्म ने सृष्टि का निर्माण किया तो देवी-देवताओं के महलों की संरचना का कार्य अपने पुत्र भगवान विश्वकर्मा को दिया. इसलिए उन्हें दुनिया का पहला इंजीनियर भी कहा जाता है और हर साल 17 सितंबर के दिन विश्वकर्मा पूजा की जाती है. धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा ने देवी-देवताओं के महलों में शिल्पकारी करने के साथ ही अस्त्र-शस्त्र भी ​बनाएं. यही वजह है कि विश्वकर्मा पूजा के दिन मशीनों व लोहे के सामानों की पूजा भी की जाती है. इस दिन लोग अपने कार्यालयों में मशीनों की पूजा करते हैं ताकि बरकत हो. सनातन धर्म में पंचांग के अनुसार प्रत्येक व्रत व त्योहार की डेट हर साल बदल जाती है. लेकिन विश्वकर्मा पूजा हमेशा 17 सितंबर के दिन ही की जाती है. ऐसे में कई लोगों के मन में यह सवाल जरूर आता होगा कि आखिर विश्वकर्मा पूजा की डेट क्यों नहीं बदलती? आइए जानते हैं इसके पीछे क्या रहस्य छिपा हुआ है?

क्यों नहीं बदलती विश्वकर्मा पूजा की डेट?
दरअसल भगवान विश्वकर्मा जी के बारे में बहुत सी मान्यताएं हैं. वहीं कुछ धर्मशास्त्रियों का मानना है कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म अश्विन मास में कृष्णपक्ष को हुआ था जबकि दूसरी तरफ लोग कहते हैं कि इनका जन्म भाद्रपद मास की अंतिम तिथि को हुआ था. वहीं जन्म तिथि से अलग एक ऐसी मान्यता निकली जिसमें विश्वकर्मा पूजा को सूर्य के परागमन के अनुसार तय किया गया. यह दिन बाद में सूर्य संक्रांति के दिन रूप में मनाया जाने लगा. यह लगभग हर साल 17 सितंबर को ही पड़ता है इसलिए इसी दिन पूजा-पाठ की जाने लगी.

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