देव दीपावली का भगवान शिव से है गहरा संबंध, काशी में होगा भव्य आयोजन

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 23नवंबर। देव दीपावली के पर्व की तैयारियां लगभग शुरू हो गई है और उत्तर प्रदेश के काशी में इस पर्व को बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. भगवान शिव की नगरी काशी की संस्कृति और परंपरा प्राचीन काल से ही धार्मिक रही है. देव दीपावली के दिन इस शहर को दीपों से सजाया जाता है और इसकी जगमगाहट देखते ही बनती है. कार्तिक माह की अमावस्या के दिन भगवान राम अधर्मी रावण का वध कर और 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या लौटे थे. इसलिए कार्तिक अमावस्या के दिन दिवाली का पर्व मनाया जाता है. ऐसे में लोगों के मन से यह सवाल जरूर आता होगा कि दिवाली के ​बाद देव दिवाली या देव दीपावली का त्योहार क्यों मनाया जाता है? आपके ऐसे ही कई सवालों का जवाब हम इस आर्टिकल के ​जरिए देंगे.

देव दीपावली 2023 कब है?
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को देव दीपावली का पर्व मनाया जाता है और इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है. पंचांग के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा तिथि 26 नवंबर को दोपहर 3 बजकर 53 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 27 नवंबर को दोपहर 2 बजकर 45 मिनट पर होगा. देव दीपवाली की पूजा व दीपदान प्रदोष काल में होती है इसलिए इस साल यह पर्व 27 नवंबर 2023 को मनाया जाएगा.

क्यों मनाते हैं देव दीपावली?
देव दिवाली से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार एक बार पृथ्वी पर त्रिपुरासुर राक्षस का आतंक फैल गया था. जिससे हर कोई त्राहि त्राहि कर रहा था. तब देव गणों ने भगवान शिव से एक राक्षस के संहार का निवेदन किया. जिसे स्वीकार करते हुए शिव शंकर ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर दिया. इससे देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और शिव का आभार व्यक्त करने के लिए काशी आए थे.

जिस दिन इस अत्याचारी राक्षस का वध हुआ और देवता काशी में उतरे उस दिन कार्तिक मास की पूर्णिमा था. उस दौरान देवताओं ने काशी में अनेकों दीए जलाकर दिवाली मनाई थी. यही कारण है कि हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा पर आज भी काशी में दिवाली मनाई जाती है और चूंकि ये दीवाली देवों ने मनाई थी इसीलिए इसे देव दिवाली या देव दीपावली कहा जाता है.

देव दीपावली का काशी से संबंध
देव दीपावली का पर्व उत्तर प्रदेश की पावन नगरी काशी में मनाया जाता है. कहते हैं कि जब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया तो सभी देवतागण भगवान शिव से मिलने काशी नगरी पहुंचे थे. जहां देवताओं ने गंगा स्नान ​किया और फिर दीपदान कर खुशियां मनाई. इसलिए काशी में इस पर्व को बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है.

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