‘दिव्यांगजनों’ को सहानुभूति का पात्र नहीं समझा जाना चाहिए, वे ज्ञान, कौशल, रुझान, विशेषज्ञता के भंडार हैं -उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति ने सार्थक ग्लोबल रिसोर्स सेंटर का उद्घाटन किया और गुरुग्राम में विकलांगता के 10वें राष्ट्रीय सम्मेलन में लिया भाग

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 9 दिसंबर। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज इस बात पर बल दिया कि दिव्यांगजनों को सहानुभूति का पात्र नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि उन्हें उनके ज्ञान, कौशल, रुझान और विशेषज्ञता का भंडार माना जाना चाहिए। उन्होंने एक ऐसा इको-सिस्टम बनाने की आवश्यकता पर बल दिया जिससे हम दिव्यांगजनों को सशक्त बना सकें और कहा कि उनके पास अपार प्रतिभा है जिसका लाभ उठाया जा सकता है।

धनखड़ ने डिस्लेक्सिया से पीड़ित अल्बर्ट आइंस्टीन के उदाहरण का उल्लेख करते हुए, इस बात को रेखांकित किया कि विकलांगता के बारे में हमारी धारणा, अक्सर जो दिखाई देती है उस पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा, हालाँकि वास्तविक विकलांगता केवल सामने आने वाली चीज़ों तक ही सीमित नहीं है बल्कि मानसिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक चुनौतियों के दायरे तक विस्तारित है। उपराष्ट्रपति ने सभी प्रकार की विकलांगताओं पर ध्यान देने और उसके लिए उपयुक्त समाधान तैयार करने का आह्वान किया।

आज गुरुग्राम में विकलांगता पर 10वें राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने उन सामाजिक धारणाओं में आए बदलाव को रेखांकित किया, जिनमें कभी माना जाता था कि महिलाएं कठिन कार्य करने में असमर्थ हैं। यह देखते हुए कि आज विभिन्न क्षेत्रों में महिलाएं निरंतर अग्रणी भूमिकाएं निभा रहीं हैं। उपराष्ट्रपति ने “दिव्यांग” कहे जाने वाले व्यक्तियों के प्रति धारणा में समान बदलाव लाने की अपील की। उन्होंने कहा, “वे दिव्यांग नहीं हैं; हम उन्हें दिव्यांग मान लेते हैं।” उन्होंने विस्तारपूर्वक बताया कि जो लोग बाहरी तौर पर शारीरिक रूप से सक्षम दिखते हैं उनमें किसी न किसी प्रकार की विकलांगता हो सकती है, चाहे वह दृष्टिगोचर हो या छिपी हुई हो। कोई भी व्यक्ति वास्तव में पूर्ण नहीं होता।

उपराष्ट्रपति ने केवल “दान की भावना से किसी की कुछ आर्थिक मदद करने” की हालिया प्रवृत्ति के प्रति आगाह करते हुए, सशक्तिकरण के बजाय निर्भरता को बढ़ावा देने के जोखिम को रेखांकित किया। उन्होंने विशेष रूप से दिव्यांगजनों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों सहित निर्बल वर्गों के सशक्तिकरण को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर बल देते हुए प्रमुख कॉर्पोरेट संस्थाओं से अपने कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) फंड को समाज के इन वर्गों को सशक्त बनाने के लिए निर्देशित करने का आग्रह किया।

इस बात पर बल देते हुए कि भारत के लोकाचार और जी-20 का आदर्श वाक्य वसुधैव कुटुंबकम अब व्यवहारिक सच्चाई है, उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत के प्रति विश्व के दृष्टिकोण में बदलाव आया है। उन्होंने समाधान के लिए केवल पश्चिम देशों से उम्मीद करने से बचने की अपील की और कहा कि अब, पश्चिम देश भारत से अंतर्दृष्टि चाहते हैं। उन्होंने आज वैश्विक मंच पर भारत की अग्रणी स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “देश के अभूतपूर्व विकास ने विश्व को आश्चर्यचकित कर दिया है।”

2016 में दिव्यांगजनों के अधिकार अधिनियम को लागू किए जाने की सराहना करते हुए, उपराष्ट्रपति ने इसके संपूर्ण प्रावधानों पर संतोष व्यक्त किया। गांवों और ग्रामीण क्षेत्रों में दिव्यांगजनों को सुविधाएं प्रदान करने के विजन की सराहना करते हुए, उपराष्ट्रपति ने दिव्यांगजनों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए “अभिनव सोच का उपयोग करने और नवोन्मेषी बनने” के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने आग्रह किया कि हर किसी को किसी न किसी तरह से योगदान देना चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने अपनी यात्रा के दौरान सार्थक ग्लोबल रिसोर्स सेंटर में ‘संभावनाओं के संग्रहालय’ एबिलिटी म्यूजियम का भी दौरा किया। इस अवसर पर सार्थक एजुकेशनल ट्रस्ट के संस्थापक और सीईओ डॉ. जितेंद्र अग्रवाल, दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग के सचिव राजेश अग्रवाल और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।

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