प्रस्तुति -:कुमार राकेश
भगवानजी ने जब इंसान की रचना की तो उसे दो पोटलियाँ दी।
निर्देशित किया कि एक पोटली को आगे की तरफ लटकाना और दूसरी को कंधे के पीछे पीठ पर। इंसान दोनों पोटलियां लेकर चल पड़ा।
हां!! भगवानजी ने उसे ये भी कहा था कि आगे वाली पोटली पर नजर रखना पीछे वाली पर नहीं।
समय बीतता गया। वह इंसान आगे वाली पोटली पर बराबर नज़र रखता। आगे वाली पोटली में उसकी कमियां थीं और पीछे वाली में दुनिया की… वो अपनी कमियां सुधारता गया और तरक्की करता गया। पीछे वाली पोटली को इसने नजरंदाज कर रखा था।
एक दिन दोनों पोटलियां गलती से अदल बदल हो गई। आगे वाली पीछे और पीछे वाली आगे आ गई। आगे दूसरी वाली पोटली की वजह से अब उसे दुनिया में कमियां ही कमियां नज़र आने लगी। ये ठीक नहीं,वो ठीक नहीं। बच्चे ठीक नहीं,पड़ोसी बेकार है,सरकार निक्कमी है आदि-आदि।
अब वह खुद के अलावा सब में कमियां ढूंढने लगा। परिणाम ये हुआ कि कोई नहीं सुधरा, पर उसका पतन होने लगा। वह चक्कर में पड़ गया कि ये क्या हुआ है?
अंत में वो एक संत जी के पास गया। संत जी ने उसे समझाया कि जब तक तेरी नज़र अपनी कमियों पर थी, तूं तरक्की कर रहा था। जैसे ही तूने दूसरों में मीन-मेख निकालने शुरू किये,वहीं से तेरा पतन शुरू हो गया।
हकीकत यही है कि हम किसी को नहीं सुधार सकते,हम अपने आपको सुधार लें इसी में हमारा कल्याण है।अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा हैं। हम सुधरेंगे तो ही जीवन सुधरेगा, जीवन आनंद से भर जाएगा…यही जीवन का सार है ! स्वयं सुधार ! संसार की सबसे बड़ी सेवा !
प्रस्तुति -: कुमार राकेश