समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 9 जनवरी।जब भगवान सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे मकर संक्रांति कहते हैं और इस त्योहार को देशभर में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. क्योंकि यह एक कृषि पर्व है और इस दिन भगवान सूर्य से अच्छी फसल की कामना की जाती है. साथ ही यह भी कहते हैं कि इस दिन सूर्यदेव उत्तरायण होते हैं और इसके बाद सर्दी कम हो जाती है. धार्मिक दृष्टिकोण से भी मकर संक्रांति बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि सूर्यदेव के उत्तरायण होने से देवलोक में दिन शुरू होता है. मकर संक्रांति को खिचड़ी भी कहा जाता है और इस दिन कई जगहों पर खिचड़ी खाने व दान करने की परंपरा है. लेकिन बिहार में मकर संक्रांति के दिन दही-चूड़ा खाना जरूरी माना गया है और इसके पीछे एक बेहद ही रोचक वजह छिपी हुई है.
बिहार में मकर संक्रांति पर खाते हैं दही-चूड़ा
बिहार के मिथिलांचल में मकर संक्रांति को तिला संक्रांति भी कहा जाता है और इस दिन देवताओं को तिल व गुड़ का भोग लगाया जाता है. साथ ही खिचड़ी बनाने की भी परंपरा है. लेकिन बिहार में मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी के साथ ही दही-चूड़ा खाने का भी रिवाज है और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. धार्मिक व सामाजिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन धान की कटाई होती है और इसके बाद ही चावल खाए जाते हैं. इसलिए मकर संक्रांति के दिन चावल का दान करना बहुत ही शुभ माना गया है और चावल का सेवन करना भी स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना गया है.
बिहार में इस दिन दही-चूड़ा खाया जाता है और मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन यदि दही-चूड़ा खाया जाए तो सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है. साथ ही कुंडली में मौजूद ग्रह दोषों से भी मुक्ति मिलती है. बिहार में यह मान्यता है कि यदि इस दिन परिवार के सभी लोग मिलकर दही-चूड़ा खाते हैं तो आपसी प्रेम बढ़ता है और रिश्ते मजबूत होते हैं.
इसके अलावा यह भी मान्यता है कि मकर संक्रांति प्रकृति की अराधना का पर्व है जो सूर्य के उत्तरायण होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. यही कारण है कि कड़ाके की ठंड में लोग सूर्योदय से पूर्व स्नान करके सूर्य को अर्घ्य देते हैं और तिलाठी (तिल के पौधे का ठंडल) जलाकर खुद को गर्म करते हैं और पहले दही-चूड़ा तिलबा (तिल का लड्ड) खाते हैं. इसे सेहत के लिए अच्छा माना जाता है.