मकर संक्रांति का भीष्म पितामह से है गहरा रिश्ता, आइए यहां पढ़ें पौराणिक कथा

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,10 जनवरी। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को नवग्रहों का राजा कहा गया है और हर माह सूर्य अपनी राशि बदलते हैं. यानि प्रत्येक माह सूर्य एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं और इसे संक्रांति कहा जाता है. इस तरह साल में कुल 12 संक्रांति आती हैं लेकिन जनवरी में आने वाली मकर संक्रांति का विशेष महत्व माना गया है. इस दिन ग्रहों के राजा सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं और इसलिए मकर संक्रांति कहा गया है. इसे देशभर में बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है और इस साल मकर संक्रांति 15 जनवरी 2024 को पड़ रही है. कहते हैं कि इस मकर संक्रांति के दिन यदि गंगा में स्नान किया जाए तो 100 गुना पुण्य फल प्राप्त होता है. इस दिन गंगा में स्नान के साथ ही दान का भी विशेष महत्व माना गया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मकर संक्रांति का महाभारत काल में भीष्म पितामह से गहरा रिश्ता है? आइए यहां पढ़ें मकर संक्रांति और भीष्म पितामह से जुड़ी यह कहानी.

मकर संक्रांति और भीष्म पितामह का रिश्ता?
पौराणिक कथाओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपने पंच भौतिक शरीर का त्याग किया था. भीष्म पितामह को यह वरदान था कि वह जब चाहें अपना शरीर त्याग सकते हैं और इसके लिए उन्होंने मकर संक्रांति का दिन चुना. भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था और उन्होंने सूर्य उत्तरायण होने पर अपने शरीर का त्याग किया. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं और मोक्ष के द्वार खुलते हैं इसलिए इस समय मृत्यु होने पर व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

दूसरी पौराणिक वजह
एक अन्य पौराणिक कहानी के अनुसार मकर संक्रांति के दिन मां गंगा ने महाराज सगर के 60 हजार पुत्रों का उद्धार किया था. माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन स्वर्ग के द्वार खुलते हैं और इसलिए इसे मोक्ष का दिन भी कहा जाता है. इसलिए मकर संक्रांति के दिन गंगा में स्नान करने वालों के सभी पाप मिटते हैं और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है.

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