महाभारत में जीवन भी, दर्शन भी!!

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*कुमार राकेश

महाभारत एक शौर्य गाथा मात्र नहीं है,एक वास्तविकता भी है, जीवन को नज़दीक से देखने , समझनें व जानने का एक उपक्रम है ।महाभारत को हम यदि गहराई से अध्ययन करे तो हम एक जीवंत दर्शन से रूबरू हो सकते हैं ।हमें जीवन का एक संपूर्ण साक्षात दर्शन हो सकता है ।एक ऐसा दर्शन ,जो आपको जीवन जीने की एक अप्रतिम कला भी सिखाता है ।महाभारत ज्ञान का दर्पण है तो जीवन जीने का एक अद्भुत दर्शन भी ।समर्पण , त्याग ,जीवंतता , निरंतरता , साहस , जिजीविषा और चिरंतन भाव से हम सबको परिचय करवाता है।
महाभारत से ही गीता रूपी ग्रंथ का सृजन हुआ ।वह श्रीकृष्ण व अर्जुन संवाद से संभव हो सका ।
जब अर्जुन अपनों को सामने देखकर हतोत्साहित हो जाता है । युद्ध से इंकार कर देता है । तब श्री कृष्ण ,अर्जुन को इस जीवन की सच्चाई से सामना करवाते है । अर्जुन को अपने विराट स्वरूप का दर्शन करवा कर उन्हें सत्य से सामना भी करवाते है ।

इस पारलौकिक दर्शन की बात करे तो
पांडव कुछ और नहीं,बल्कि आपकी पाँच इंद्रियाँ हैं – दृष्टि,गंध,स्वाद,स्पर्श और श्रवण –
और कौरव कौन हैं? तो
कौरव सौ तरह के विकार हैं,जो आपकी इंद्रियों पर प्रतिदिन हमला करते हैं।

लेकिन आप उनसे लड़ सकते हैं और जीत भी सकते है।

पर क्या आप जानते हैं कैसे?

जब कृष्ण आपके रथ की सवारी करते हैं!
कृष्ण आपकी आंतरिक आवाज,
आपकी आत्मा,
आपका मार्गदर्शक प्रकाश हैं और
यदि आप अपने जीवन को उनके हाथों में सौप देते हैं तो आपको फिर चिंता करने की कोई आवश्कता नहीं है।

अर्जुन मेरी आत्मा हैं,मैं ही अर्जुन हूं और स्वनियंत्रित भी हूं।

कृष्ण हमारे परमात्मा हैं।पांच पांडव पांच नीचे वाले चक्र भी हैं,मूलाधार से विशुद्ध चक्र तक।
द्रोपदी कुंडलिनी शक्ति है,वह जागृत शक्ति है,जिसके ५ (पाँच) पति ५ ( पाँच) चक्र हैं।

ओम 🕉शब्द ही कृष्ण का पांचजन्य शंखनाद है,जो मुझ और आप आत्मा को ढ़ाढ़स बंधाता है कि चिंता मत कर मैं तेरे साथ हूं,

अपनी बुराइयों पर विजय पाकर ,अपने निम्न विचारों,निम्न इच्छाओं,सांसारिक इच्छाओं, अपने आंतरिक शत्रुओं यानि कौरवों से लड़ाई कर अर्थात अपनी सांसारिक वासनाओं को त्याग कर और चैतन्य पाठ पर आरूढ़ हो जा आदि विकार रूपी कौरव अधर्मी एवं दुष्ट प्रकृति के हैं।

श्री कृष्ण का साथ होते ही ७२००० नाड़ियों में भगवान की चैतन्य शक्ति भर जाती है,और हमें पता चल जाता है कि मैं चैतन्यता,आत्मा,जागृति हूं,

मैं अन्न से बना शरीर नहीं हूं,इसलिए उठो जागो और अपने आपको,अपनी आत्मा को,अपने स्वयं सच को जानो,भगवान को पाओ,यही भगवद प्राप्ति या आत्म साक्षात्कार है,यही इस मानव जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है।

ये शरीर ही धर्म क्षेत्र,कुरुक्षेत्र है।
धृतराष्ट्र अज्ञान से अंधकार से घिरा मन है।
अर्जुन आप हो,
संजय आपके आध्यात्मिक गुरु हैं..!!
*कुमार राकेश

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