समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,19फरवरी। दिगंबर जैन श्रमण परंपरा के सर्वोच्चनायक आचार्य भगवंत गुरुदेव श्री विद्यासागर जी महा ऋषिराज का संलेखना पूर्वक समाधि मरण का समाचार संपूर्ण देश के लिए एक अपूर्ण क्षति है।
दक्षिण भारत में जन्में आचार्य भगवंत ने उत्तर भारत को अपनी कर्मभूमि बनाकर संपूर्ण भारत को धन्य -धन्य किया है। आपके उदात्त चिंतन ने संपूर्ण भारतीय संस्कृति को गौरवान्वित किया है। आपके द्वारा रचित मूकमाटी महाकाव्य इस सृष्टि के लिए एक अलौकिक अनुपमेय वरदान सिद्ध हुआ है।
इंडिया नहीं भारत बोलो ,अंग्रेजी नहीं हिंदी बोलो आदि दिव्य चिंतनों से आपने एक नवीन वैचारिक क्रांति को जन्म दिया है।
मांस निर्यात बंद करो पशुधन बचाओ जैसे सूत्रों से प्राणी मात्र के प्रति आपकी करुणा स्पष्ट रूप से प्रकट हुई, जिसके परिणाम स्वरुप दयोदय महासंघ की स्थापना हुई, जिसके माध्यम से लाखों पशु सुरक्षित किए गए।
आपके उन्नत चिंतन ने नारी शिक्षा के लिए प्रतिभा स्थली प्रदान की है और बालकों की शिक्षा के लिए श्रमण संस्कृति संस्थान, जिसके माध्यम से श्रमण संस्कृति का उत्थान नियम से हुआ है।
हथकरघा योजना के माध्यम से आपने स्वरोजगार की अलख जगा कर भारतीय संस्कृति को परिपुष्ट किया है। आपके इस वियोग पर संपूर्ण मानव समाज अत्यंत दुःखी है और आपके अनंत उपकारों के प्रति ऋणी है।
जारी कर्ता:
विनोद बंसल