प्रधानमंत्री मोदी ने 41 साल पहले लिखी थी ‘मारुति की प्राण प्रतिष्ठा’ कविता, सोशल मीडिया पर अब हो रही वायरल
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 10अप्रैल। पीएम मोदी द्वारा लिखित एक कविता सोशल मीडिया पर तरफ छाई हुई है. उनकी इस कविता में आदिवासियों की स्थिति और संघर्ष को दर्शाया गया है. उन्होंने इस कविता को साल 1983 में लिखा था. पीएम नरेंद्र मोदी ने इस कविता को जिस परिस्थिति में लिखा था, वह बड़ा दिलचस्प है. ‘मारुति की प्राण प्रतिष्ठा’ शीर्षक वाली इस कविता का एक अंश जो नरेंद्र मोदी के द्वारा हस्तलिखित है, उसकी प्रति सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर खूब शेयर की जा रही है. इस कविता के अंश को एक्स पर मोदी आर्काइव हैंडल से पहले शेयर किया गया है. जहां से इसके वायरल होने का सिलसिला शुरू हुआ है.
पीएम मोदी द्वारा लिखित कविता वायरल
बता दें कि 1983 में जब नरेंद्र मोदी ने यह कविता लिखी तब वह एक आरएसएस (संघ) के स्वयंसेवक थे, उन्हें दक्षिण गुजरात में एक हनुमान मंदिर की ‘प्राण प्रतिष्ठा’ में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था. रास्ता लंबा था और कई किलोमीटर तक कोई भी व्यक्ति नजर नहीं आ रहा था. गांव के रास्ते में उनकी नजर धरमपुर के आदिवासियों पर पड़ी, जो संसाधनों की कमी के कारण परेशानी में जीवन यापन कर रह रहे थे. उनके शरीर काले पड़ गए थे.
आदिवासियों की स्थिति के बारे में कविता
नरेंद्र मोदी अपने जीवन में पहली बार यह दृश्य देखकर बहुत परेशान, सहानुभूति और करुणा से भरे एवं प्रभावित थे. घर जाते समय उन्होंने आदिवासियों की स्थिति और उनके संघर्षों के बारे में ‘मारुति की प्राण प्रतिष्ठा’ शीर्षक से एक कविता लिखी. बता दें कि गुजरात के धरमपुर में स्थित भावा भैरव मंदिर, पनवा हनुमान मंदिर, बड़ी फलिया और अन्य स्थानीय मंदिरों सहित कई हनुमान मंदिरों में आज भी आदिवासी समुदाय द्वारा पूजा की जाती है.
'Maruti ki Pran Pratishtha'
In 1983, @narendramodi, then an RSS Swayamsevak, was invited to participate in the 'pran pratishta' of a Hanuman temple in South Gujarat. The drive was long, and no soul was in sight for kilometres at a stretch. On his way to the village, he noticed… pic.twitter.com/LC0AhdkYMX
— Modi Archive (@modiarchive) April 9, 2024
पीएम नरेंद्र मोदी कई बार इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि वह अपने ‘वनबंधु’ दोस्तों के साथ धरमपुर जंगल का दौरा करते थे, जहां वे भगवान हनुमान की मूर्तियां स्थापित करते थे और छोटे मंदिर बनाते थे. नरेंद्र मोदी की इस कविता को देखकर आपको पता चल जाएगा कि वह कैसे देश की उन्नति के लिए हमारी जड़ों के महत्व को पहचानते हैं. किसी खास जनजाति के बारे में इस तरह के विचार केवल उसी व्यक्ति से उत्पन्न हो सकते हैं, जिसने अपना जीवन उन व्यक्तियों के बीच बिताया हो. (इनपुट्स एजेंसी)