गणगौर (सुहागिन स्त्रियों का उत्सव)•••

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गणगौर माता पार्वती का गौर
अर्थात— श्वेत रूप है, उन्हें गौरी ए महागौरी भी कहते हैं।
अष्टमी के दिन इनकी पूजा होता है, किन्तु चैत्र नवरात्र की तृतीया को उन्हें इसलिए पूजा जाता है क्योंकि लोक परंपरा के अनुसार इस दिन माता की अपने मायके के यहां से विदाई हुई थी।
गण का अर्थ देवाधिदेव महादेव शिवजी व गौर का अर्थ जगतजननी आदिशक्ति माँ गौरी।
अतैव गणगौर व्रत में भगवान शिवजी तथा माता पार्वती की पूजा की जाती है, प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को गणगौर का त्योहार बड़े ही धूम- धाम से मनाया जाता है।
गणगौर का त्योहार कुंवारी लड़कियां इसीलिए मनाती हैं ताकि उन्हें उनका मनचाहा वर प्राप्त हो सके एवम इस त्यौहार को विवाहित लड़कियां इसीलिए मनाती हैं ताकि उनके पति को लंबी उम्र की प्राप्ति हो सके एवम उन्हें सदैव उनके पति का प्रेम मिलता रहे।
〰️👉🏻 चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को प्रातः स्नान करके गीले वस्त्रों में ही रहकर घर के ही किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोना चाहिए। इस दिन से विसर्जन तक व्रती को एकासना (एक समय भोजन) रखना चाहिए। इन जवारों को ही देवी गौरी व शिवजी अथवा ईश्वर का स्वरूप माना जाता है।

🎎 गणगौर की पूजा विधि—

〰️👉🏻 1√ गणगौर व्रत में व्रती महिला को केवल एक समय में भोजन करना चाहिए।
〰️👉🏻 2√मां गौरी को श्रृंगार का सामान अर्पित करें।
〰️👉🏻 3√ इसके बाद चंदन, अक्षत, धूप-दीप आदि अर्पित करें।
〰️👉🏻 4√ इसके बाद मां गौरी को भोग लगाएं।
〰️👉🏻 5√ भोग लगाने के बाग गणगौर व्रत कथा सुनें या पढ़ें।
〰️👉🏻 6√ भोग लगाने के बाद माता गौरी को चढ़ाए गए सिंदूर से सुहागन लें।
〰️👉🏻 7√ खीर, चूरमा, पूरी, मठरी से गणगौर को पूजा जाता है। आटे तथा बेसन के घेवर बनाए जाते हैं और गणगौर माता को चढ़ाए जाते हैं।
〰️👉🏻 8√ गणगौर पूजन का स्थान किसी एक स्थान अथवा घर में किया जाता है।

गणगौर—
भारत विविधताओं का देश है और यहां कई ऐसे अनोखे त्यौहार और पर्व मनाए जाते हैं जो अपने आप में ही बहुत विशेष होते हैं। ऐसा ही एक पर्व है जो महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है जिसे भारत के उत्तरी प्रांतों में ज्यादातर मनाया जाता है। यह पर्व है गणगौर व्रत, ‌जिस दिन महिलाएं अपने पति से छुपकर व्रत करती हैं और गणगौर माता यानी माता पार्वती की पूजा करके अपने पति की लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं। हर वर्ष यह तिथि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया पर पड़ती है।
गणगौर पूजा के साथ मत्स्य जयंती भी मनाई जाती है। जानकार बताते हैं कि, गणगौर का मतलब गण शिव और गौर माता पार्वती से है। 16 दिन तक चलने वाली यह पूजा चैत्र कृष्ण प्रथम यानी दुल्हैंडी से आरम्भ होकर शुक्ल तृतीया अर्थात तीसरे नवरात्र को पूर्ण होती है।
✷गणगौर पर्व को राजस्थान में मारवाड़ी समाज के लोग 16 दिनों तक
एवम
✷मध्यप्रदेश में निमाड़ी समाज के लोग तीन दिनों तक मनाते हैं
तथा
✷बुंदेलखंड में एक दिन मनाया जाता है।
वास्तव में गणगौर महिलाओं का ही पर्व है। इस दिन कुंवारी कन्याएं के साथ सुहागिन महिलाएं दोपहर तक उपवास रखती हैं एवम पूरे विधि विधान से शिवजी और पार्वती की पूजा करती हैं।<<+D®️2>>
कुंवारी कन्याएं अच्छे वर के लिए जबकि सुहागिनें पति की लंबी उम्र के लिए यह पूजा करती हैं।

गणगौर पूजा का महत्व—
गणगौर पूजा राजस्थान और मध्य प्रदेश समेत भारत के उत्तरी प्रांतों का लोकप्रिय पर्व है। महिलाओं और कुंवारी कन्याओं के लिए यह पूजा बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार,‌ इस‌ दिन को प्रेम का जीवंत उदाहरण माना जाता है क्योंकि भगवान शिव ने माता पार्वती को और माता पार्वती ने संपूर्ण स्त्रियों को सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था। जो सुहागिन गणगौर व्रत करती हैं तथा भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं उनके पति की उम्र लंबी हो जाती है। वहीं, जो कुंवारी कन्याएं गणगौर व्रत करती हैं उन्हें मनपसंद जीवनसाथी का वरदान प्राप्त होता है। इस पर्व को 16 दिन तक लगातार मनाया जाता है और गौर का निर्माण करके पूजा की जाती है।

कैसे होती है पूजा, क्या है मान्यता???

तालाब, नदी अथवा कुएं पर जाकर महिलाएं गणगौर को पानी पिलाती है। इस दिन टेसू के फूलों को पानी में भिगोकर इनका इस्तेमाल किया जाता है। शास्त्रों की मानें तो मां पार्वती ने अखण्ड सौभाग्य की कामना के लिए तप किया था और इसी तप के प्रभाव से उन्हें भगवान शिव की प्राप्ति हुई थी। इस अवसर पर मां पार्वती ने सभी स्त्रियों को भी सौभाग् का वरदान दिया और तभी से गणगौर की पूजा आरम्भ हुई।

यह पर्व बहुत धूमधाम से प्रायः सारे राजस्थान व हरियाणा एवम मालवा के कुछ भागों में आज चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जा रहा है। इस दिन नवविवाहिताएँ अपने वैवाहिक जीवन की सफलता, तथा कुंआरी कन्याएँ अच्छे पति की प्राप्ति के लिए गौरी (पार्वती) जी की आराधना करती हैं।
होली के दूसरे दिन से ही यह आराधना आरम्भ हो जाती है और चैत्र शुक्ल तृतीया तक चलती है।
इस दिन कन्याओं व नव विवाहिताओं को उनके माता पिता व भाई खूब लाड करते हैं, उनकी मन पसंद मिठाइयाँ आदि देते हैं और उनकी हर इच्छा यथासंभव पूरी करते हैं।
एक बार भगवान शंकर तथा पार्वतीजी नारदजी के साथ भ्रमण को निकले। चलते-चलते वे चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन एक गाँव में पहुँच गए। उनके आगमन का समाचार सुनकर गाँव की श्रेष्ठ कुलीन स्त्रियाँ उनके स्वागत के लिए स्वादिष्ट भोजन बनाने लगीं।<<+D®️2>>

भोजन बनाते-बनाते उन्हें काफी विलंब हो गया। किंतु साधारण कुल की स्त्रियाँ श्रेष्ठ कुल की स्त्रियों से पहले ही थालियों में हल्दी तथा अक्षत लेकर पूजन हेतु पहुँच गईं। पार्वतीजी ने उनके पूजा भाव को स्वीकार करके सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया। वे अटल सुहाग प्राप्ति का वरदान पाकर लौटीं। तत्पश्चात उच्च कुल की स्त्रियाँ अनेक प्रकार के पकवान लेकर गौरीजी और शंकरजी की पूजा करने पहुँचीं। सोने-चाँदी से निर्मित उनकी थालियों में विभिन्न प्रकार के पदार्थ थे।

उन स्त्रियों को देखकर भगवान शंकर ने पार्वतीजी से कहा— ‘तुमने सारा सुहाग रस तो साधारण कुल की स्त्रियों को ही दे दिया। अब इन्हें क्या दोगी???’

पार्वतीजी ने उत्तर दिया— ‘प्राणनाथ! आप इसकी चिंता मत कीजिए। उन स्त्रियों को मैंने केवल ऊपरी पदार्थों से बना रस दिया है। इसलिए उनका रस धोती से रहेगा। परंतु मैं इन उच्च कुल की स्त्रियों को अपनी उँगली चीरकर अपने रक्त का सुहाग रस दूँगी। यह सुहाग रस जिसके भाग्य में पड़ेगा, वह तन-मन से मुझ जैसी सौभाग्यवती हो जाएगी।’

जब स्त्रियों ने पूजन समाप्त कर दिया, तब पार्वतीजी ने अपनी उँगली चीरकर उन पर छिड़क दी। जिस पर जैसा छींटा पड़ा, उसने वैसा ही सुहाग पा लिया। तत्पश्चात भगवान शिव की आज्ञा से पार्वतीजी ने नदी तट पर स्नान किया और बालू की शिव-मूर्ति बनाकर पूजन करने लगीं। पूजन के बाद बालू के पकवान बनाकर शिवजी को भोग लगाया।

प्रदक्षिणा करके नदी तट की मिट्टी से माथे पर तिलक लगाकर दो कण बालू का भोग लगाया। इतना सब करते-करते पार्वती को काफी समय लग गया। काफी देर बाद जब वे लौटकर आईं तो महादेवजी ने उनसे देर से आने का कारण पूछा।

उत्तर में पार्वतीजी ने झूठ ही कह दिया कि वहाँ मेरे भाई-भावज आदि मायके वाले मिल गए थे। उन्हीं से बातें करने में देर हो गई। परंतु महादेव तो महादेव ही थे। वे कुछ और ही लीला रचना चाहते थे। अतः उन्होंने पूछा— ‘पार्वती! तुमने नदी के तट पर पूजन करके किस चीज का भोग लगाया था और स्वयम कौन-सा प्रसाद खाया था???’

स्वामी! पार्वतीजी ने पुनः झूठ बोल दिया— ‘मेरी भावज ने मुझे दूध-भात खिलाया। उसे खाकर मैं सीधी यहाँ चली आ रही हूँ।’ यह सुनकर शिवजी भी दूध-भात खाने की लालच में नदी-तट की ओर चल दिए। पार्वती दुविधा में पड़ गईं। तब उन्होंने मौन भाव से भगवान भोले शंकर का ही ध्यान किया और प्रार्थना की – हे भगवन! यदि मैं आपकी अनन्य दासी हूँ तो आप इस समय मेरी लाज रखिए<<+D®️2>>

यह प्रार्थना करती हुई पार्वतीजी भगवान शिव के पीछे-पीछे चलती रहीं। उन्हें दूर नदी के तट पर माया का महल दिखाई दिया। उस महल के भीतर पहुँचकर वे देखती हैं कि वहाँ शिवजी के साले तथा सलहज आदि सपरिवार उपस्थित हैं। उन्होंने गौरी तथा शंकर का भाव-भीना स्वागत किया। वे दो दिनों तक वहाँ रहे।

तीसरे दिन पार्वतीजी ने शिव से चलने के लिए कहा, पर शिवजी तैयार न हुए। वे अभी और रुकना चाहते थे। तब पार्वतीजी रूठकर अकेली ही चल दीं। ऐसी हालत में भगवान शिवजी को पार्वती के साथ चलना पड़ा। नारदजी भी साथ-साथ चल दिए। चलते-चलते वे बहुत दूर निकल आए। उस समय भगवान सूर्य अपने धाम (पश्चिम) को पधार रहे थे। अचानक भगवान शंकर पार्वतीजी से बोले— ‘मैं तुम्हारे मायके में अपनी माला भूल आया हूँ।’

‘ठीक है, मैं ले आती हूँ।’ – पार्वतीजी ने कहा और जाने को तत्पर हो गईं। परंतु भगवान ने उन्हें जाने की आज्ञा न दी और इस कार्य के लिए ब्रह्मपुत्र नारदजी को भेज दिया। परंतु वहाँ पहुँचने पर नारदजी को कोई महल नजर न आया। वहाँ तो दूर तक जंगल ही जंगल था, जिसमें हिंसक पशु विचर रहे थे। नारदजी वहाँ भटकने लगे और सोचने लगे कि कहीं वे किसी गलत स्थान पर तो नहीं आ गए? मगर सहसा ही बिजली चमकी और नारदजी को शिवजी की माला एक पेड़ पर टँगी हुई दिखाई दी। नारदजी ने माला उतार ली और शिवजी के पास पहुँचकर वहाँ का हाल बताया।

शिवजी ने हँसकर कहा— ‘नारद! यह सब पार्वती की ही लीला है।’

इस पर पार्वती बोलीं— ‘मैं किस योग्य हूँ।’

तब नारदजी ने सिर झुकाकर कहा— ‘माता! आप पतिव्रताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं। आप सौभाग्यवती समाज में आदिशक्ति हैं। यह सब आपके पतिव्रत का ही प्रभाव है। संसार की स्त्रियाँ आपके नाम-स्मरण मात्र से ही अटल सौभाग्य प्राप्त कर सकती हैं और समस्त सिद्धियों को बना तथा मिटा सकती हैं। तब आपके लिए यह कर्म कौन-सी बड़ी बात है???’ महामाये! गोपनीय पूजन अधिक शक्तिशाली तथा सार्थक होता है।

आपकी भावना तथा चमत्कारपूर्ण शक्ति को देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है। मैं आशीर्वाद रूप में कहता हूँ कि जो स्त्रियाँ इसी तरह गुप्त रूप से पति का पूजन करके मंगलकामना करेंगी, उन्हें महादेवजी की कृपा से दीर्घायु वाला पति मिलेगा।

बोल श्री गवारजा माता की जय 👏🚩

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