गुस्ताखी माफ़ हरियाणा-  पवन कुमार बंसल

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-रणबीर सिंह फौगाट के सौजन्य से
विदेशी मूल की फ़ूड प्रोडक्ट्स बनाने वाली एक कंपनी को भारत में किसी राज्य में प्रवेश करने और यहां अपने प्रोडक्ट्स का उत्पादन के बाद या कहीं और बनाए गे फ़ूड आइटम्स को इम्पोर्ट करने करके बेचने की अनुमति देने के बहुत से प्रोसीजर्स हैं जो फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट और कंपनी-‘ला’ से रेगुलेट होते हैं. पूर्व मुख्मंत्री श्री भूपेन्द्र सिंह हूडा के शासन काल में नेस्ले कंपनी को हरयाणा में प्लांट लगाने और प्रोडक्ट्स को देश में बेचने जैसे नीतिगत मामले में उक्त बात का या मुख्य मंत्री का बड़ा रोल नहीं है, सिवाय इसके कि जमीन, पानी, पॉवर और आवागमन को सुगम करने सम्बन्धी फैसला ले. नेस्ले के विरुद्ध जो आरोप लगाए गए थे उनका नतीज़ा अभी नहीं निकला है. देरी से ही सही लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अब इसे फिर से जागृत कर दिया है. दो केस हैं: एक है बेबी फ़ूड ‘ सेरेलक’ में शुगर की अधिक मात्रा मिलाकर भारत में बेचने का और दूसरा नूडल्स के बारे में. सेरेलक को बच्चों के डॉक्टर्स भी शिशु आहार के रूप में बच्चा चार महीने का हो जाने के बाद दिए जाने की सिफारिश किया करते.
यूरोप और अमरीका में जो सेरेलक की जो कम्पोजीशन बेची जाती है उसमें स्वीटनर की किस्म और मात्रा उधर के एफडीए के मुताबिक़ कम राखी गयी है. कोर्ट ने इस केस के सम्बन्ध में डेटा का अध्ययन करने के बाद सुनवाई करने का इरादा किया है और फ़ूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (ऍफ़.एस.एस.ए.आई) को कहा कि वे जांच करके रिपोर्ट कोर्ट में पेश करें. अगर आरोप सही पाए गए तो नेस्ले के विरुद्ध नियमों के अंतर्गत कार्रवाई की जाएगी. ‘द इकॉनोमिक टाइम्स’ ने आज अपने एडिशन में अनुपयुक्त इंटरप्रिटेशन करते हुए ऍफ़.एस.एस.ए.आई के हवाले से लिखा है कि ‘कड़ी से कड़ी’ (स्ट्रिंजेंट) कार्रवाई की जाएगी. नियमों के अंतर्गत कार्रवाई कैसी होगी यह तो कम्पनी के द्वारा ‘अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस’ के आरोप के चलते भारत के फ़ूड रेगुलेटर द्वारा गढ़े गए नियमों के अंतर्गत ही होनी है. कार्रवाई की प्रकृति पर ही यह निर्भर है कि यह ‘सॉफ्ट’ अथवा ‘माइल्ड’ है या ‘कड़ी’, लेकिन पहली नज़र में जर्नलिस्टिक एथिक्स के नाते पूर्वानुमान लगाकर एक रिपोर्टर अपनी तरफ से रिपोर्ट में ‘भाव’ या फीलिंग नहीं जोड़ सकता और न ही ‘इन्टरप्रेट’ कर सकता है. जांच का काम एक कमेटी द्वारा किया जाना है. रिपोर्ट आने से पहले यह कैसे कह सकते हैं कि कार्रवाई के लिए कैसा विधान तय हुआ है? अर्थात यह नरम रुख या कड़े रुख वाली होगी.

सेरेलक (अनाज आधारित एक शिशु आहार) बनाने और भारत में बेचने वाली नेस्ले कंपनी के भारत प्रतिनिधि ने मीडिया के हवाले से कहा है कि “We would like to assure you that our Infant Cereal products, are manufactured to ensure the appropriate delivery of nutritional requirements such as Protein, Carbohydrates, Vitamins, Minerals, Iron etc. for early childhood. We never compromise and will never compromise on the nutritional quality of our products. We constantly leverage our extensive Global Research and Development network to enhance the nutritional profile of our products,” (हिंदी अनुवाद: हम आपको आश्वस्त करना चाहते हैं कि हमारे शिशु अनाज के उत्पादों का निर्माण शिशु के लिए प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, खनिज, लोहा आदि जैसी पोषण संबंधी आवश्यकताओं की उचित डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है। हम कभी समझौता नहीं करते हैं और अपने उत्पादों की पोषण गुणवत्ता से कभी समझौता नहीं करेंगे। हम अपने उत्पादों के पोषण प्रोफाइल को बढ़ाने के लिए अपने व्यापक वैश्विक अनुसंधान और विकास नेटवर्क का लगातार लाभ उठाते हैं”।)
जो १५ प्रकार के फ़ूड प्रोडक्ट्स भारत में नेस्ले कंपनी बेचती है इनमें से प्रत्येक में उत्पाद की एक खुराक में अमूमन २.५ से ३ ग्राम के लगभग ‘शुगर’ पायी गयी है. भारत की किसी एजेंसी ने अभी ‘शुगर’ की मात्रा और किस्म का निर्धारण नहीं किया है. अभी यह मालूम नहीं है कि यह नेचुरल शुगर जिसे भारत में चीनी और रिफाइंड खांड कहा जाता है वह है या पौधों से प्राप्त एक स्वीटनर या कोई और चीज. नेस्ले भारत में मक्का, गेहूं, चावल, मोटे अनाज जैसे की ज्वार या बाजरा, और फल अवशेष के अलावा ‘बिसकिटी’ ब्रांड्स के सेरेलक उत्पाद बेचता है.
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गुस्ताखी माफ़ हरियाणा- पवन कुमार बंसल

अब कार के लिए लड रहे हैं आई जी पूर्ण कुमार –

जब आई ए एस अफसर अशोक खेमका साइकिल पर सवार होकर सेक्रेटेरिएट गए l कई साल पहले जब आई ए एस अफसर अशोक खेमका को कार अलॉट नहीं हुई तो वे साइकिल पर सवार होकर सेक्रेटेरिएट गए l अब आई जी पूर्ण कुमार को शिकायत है कि उनके रुतबे के मुताबिक कार नहीं मिली है l बाकायदा चीफ सेक्रेटरी को चिट्ठी लिखकर अपनी हैसियत के मुताबिक कार की मांग की है lहरियाणा के 2001 बैच के सीनियर आईपीएस वाई पूरन कुमार अपनी सात साल पुरानी होंड सिटी कार को लेकर परेशान हैं। उन्होंने नई इनोवा क्रिस्टा कार नहीं मिलने पर नाराजगी जताई है। नाराज पुलिस ऑफिसर ने पुलिस विभाग के द्वारा आवंटित की गई अपनी कार को वापस कर दिया है। साथ ही उन्होंने मुख्य सचिव टीवीएसएन प्रसाद को लेटर लिखकर आईपीएस ऑफिसर्स को ऑफिशियल व्हीकल के अलाटमेंट सिस्टम पर सवाल उठाए हैं।

लेटर में उन्होंने लिखा है कि वह वाहन (होंडा सिटी) उस रैंक के मानक के अनुरूप नहीं था जिसके वह हकदार थे। 2023 नवंबर में आईजीपी दूरसंचार की जिम्मेदारी संभालने और आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली के प्रभारी होने के बाद 2017 मॉडल कार (होंडा सिटी) आवंटित की गई थी।

उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें आवंटित कार सात साल पुरानी थी और ख़राब हालत में थी, जबकि उनके पूर्ववर्ती (एडीजीपी रैंक के अधिकारी) को उनके कार्यकाल के दौरान एक नई टोयोटा इनोवा क्रिस्टा दी गई थी।

इसलिए उठाई जांच की मांग

आईपीएस ऑफिसर ने लेटर में यह जांचने का सुझाव दिया कि क्या कुछ चुनिंदा अधिकारियों को नए वाहन दिए जा रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने एक्स्ट्रा चार्ज वाले अधिकारियों को एक से अधिक व्हीकल अलाटमेंट रिव्यू करने का अनुरोध किया है। उन्होंने लिखा है कि हरियाणा पुलिस एक्ट, 2007 के अनुसार पुलिस मुख्यालय से स्टाफ कार के रूप में वाहनों के आवंटन के नियमों में संशोधन किया जाए ताकि प्रत्येक आईपीएस अधिकारी को उनकी बारी और वरिष्ठता के अनुसार नए वाहन आवंटित किए जा सकें।

क्या बोले आईपीएस पूरन कुमार

आईजी वाई पूरन कुमार ने लेटर में यह भी लिखा है कि, मैंने DGP शत्रुजीत कपूर के नोटिस में लाने के लिए 22 मार्च, 2024 को एक लेटर लिखा था कि कुछ अफसरों को लगातार नया वाहन अलाट किया जाता है। मैंने अपने लिए भी एक स्टाफ कार अलाट करने का आग्रह किया था, जिसके लिए मैं पात्र हूं। जब यह मामला आईजी एम एंड डब्ल्यू अमिताभ ढिल्लों के ध्यान में आया तो उन्होंने मुझे टेलीफोन बताया कि नया वाहन अलाट करने से कुछ अफसरों कि हार्ट बर्निंग होगी। यह उनके पूर्वाग्रह को दर्शाता है। वे ढाई साल से इसी पद पर तैनात हैं।

इन बिंदुओं पर उठाई जांच की मांग

– पदनाम के साथ कितनी स्टाफ कार और ऑपरेशनल व्हीकल्स अलाट किए हुए हैं?

– जो अफसर कोई पद नहीं संभाल रहे हैं क्या वे वाहनों का प्रयोग कर रहे हैं?

– एडिशनल चार्ज के नाम पर वाहनों का अधिक इस्तेमाल करने की भी जांच हो?

 

गुस्ताखी माफ़ हरियाणा-पवन कुमार बंसल

अरविंद केजरीवाल के लिए मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें तुरंत राहत नहीं दी है और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली उनकी याचिका पर केवल प्रवर्तन निदेशालय को नोटिस जारी किया है और उनके कैबिनेट सहयोगी राज कुमार आनंद ने सरकार में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी है। इससे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली उनकी याचिका को खारिज कर दिया था और अब सुप्रीम कोर्ट ने ईडी को 24 अप्रैल तक जवाब देने को कहा है।ऐसा लगता है कि दिल्ली सरकार की बहुप्रचारित आबकारी नीति का भूत न केवल अरविंद केजरीवाल बल्कि उनकी सरकार और उनकी पार्टी को भी सता रहा है। शराब-गेट घोटाले के सिलसिले में तिहाड़ जेल में बंद उनके सरकार चलाने के सपने को दिल्ली सरकार के सतर्कता निदेशालय ने उनके पी.ए. बिभव कुमार को इस आधार पर बर्खास्त करके चकनाचूर कर दिया है कि उनकी नियुक्ति में निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था और उन पर एक लोक सेवक को अपना कर्तव्य निभाने से रोकने और उन पर हमला करने का आरोप है।उनके कैबिनेट सहयोगी मनीष सिसोदिया पहले से ही जेल में हैं और संजय सिंह को हाल ही में जमानत पर रिहा किया गया है। इस घोटाले में। उनकी चिंताओं को और बढ़ाते हुए प्रवर्तन निदेशालय ने पार्टी विधायक अमानतुल्ला खान के खिलाफ गैर-जमानती वारंट की मांग की है। दिल्ली सरकार में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए मंत्री राज कुमार आनंद के इस्तीफे ने अरविंद केजरीवाल को असहज और असहाय स्थिति में डाल दिया है, जो पीड़ित कार्ड खेल रहे थे और आरोप लगा रहे थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को बर्खास्त करने की योजना बना रहे थे, क्योंकि वह एनडीए विरोधी गठबंधन बनाने में सबसे आगे थे। आनंद मनी लॉन्ड्रिंग केस का सामना कर रहे हैं और ईडी ने उनके आवास और अन्य ठिकानों पर छापेमारी की थी। उन्होंने चौंकाने वाला बयान दिया है कि ‘आप’ का गठन भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए किया गया था, लेकिन अब वह इसमें उलझ गई है और मेरे लिए मंत्री के तौर पर काम करना मुश्किल हो गया है।’ उन्होंने आगे आरोप लगाया कि पार्टी में दलितों को सम्मान नहीं मिलता। दिल्ली भाजपा सचिव बांसुरी स्वराज ने अपने हमले को तेज करते हुए कहा कि आनंद का इस्तीफा इस बात की गवाही देता है कि आप और अरविंद केजरीवाल दोनों ने दिल्ली में अपनी विश्वसनीयता खो दी है, जबकि दूसरी ओर, मंत्री सौरभ सिंह और राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने इस मुद्दे को कमतर आंकने की कोशिश की और आरोप लगाया कि भाजपा ‘हमारे मंत्रियों और विधायकों को तोड़ने’ के लिए ईडी और सीबीआई का इस्तेमाल कर रही है। विडंबना यह है कि कांग्रेस सरकार में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर आरटीआई कार्यकर्ता से दिल्ली के सीएम तक पहुंचने वाले अरविंद केजरीवाल पर उनके राजनीतिक विरोधियों ने नहीं बल्कि उनके कैबिनेट सहयोगी ने भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाया है। केजरीवाल की गिरफ्तारी से दिल्ली और पंजाब में पार्टी के अभियान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जहां पार्टी की महत्वपूर्ण उपस्थिति है। आम आदमी पार्टी के उदय पर नज़र रखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, मौजूदा हालात के लिए अरविंद केजरीवाल खुद ही ज़िम्मेदार हैं। अपने अहंकार और तानाशाही कार्यशैली के कारण आम आदमी पार्टी ने प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास और योगेंद्र यादव जैसे महत्वपूर्ण नेताओं को खो दिया है। यहां तक ​​कि प्रवर्तन निदेशालय के समन को बार-बार नकार कर उन्होंने अदालतों की नाराज़गी भी मोल ली है और इसे राजनीति से प्रेरित बताया है। अदालतों ने सही कहा है कि केजरीवाल किसी को सरकारी गवाह बनाने के प्रावधान पर सवाल नहीं उठा सकते, हालांकि अदालतों में सुनवाई के दौरान उन्होंने अपनी बात रखने की कोशिश की कि जिन लोगों ने प्रवर्तन निदेशालय को उनके खिलाफ़ बयान दिए हैं, उनके खिलाफ़ सरकार ने केस दर्ज करके दबाव बनाया है। अगर केजरीवाल को बाद में जमानत मिल भी जाती है, तो भी वे एनडीए के खिलाफ़ देश भर में आक्रामक तरीके से प्रचार करने की स्थिति में नहीं होंगे। माना जा रहा है कि मंत्री राज कुमार आनंद का इस्तीफ़ा सिर्फ़ एक झलक है और भविष्य में एनडीए की रणनीतिक चालों के तहत पार्टी को और भी नेताओं का सामना करना पड़ सकता है। जेल से सरकार चलाने की केजरीवाल की जिद उल्टी साबित हुई है। जेल से ही उन्होंने अपनी पत्नी सुनीता केजरीवाल को अपना अघोषित उत्तराधिकारी बनाने की कोशिश की, जिससे पार्टी के कार्यकर्ताओं में नाराज़गी फैल गई। आदर्श रूप से, केजरीवाल को अपना इस्तीफा दे देना चाहिए था और नए नेता के चुनाव का काम पार्टी विधायकों पर छोड़ देना चाहिए था। केजरीवाल राघव चड्डा और स्वाति मालीवाल के कॉकस पर बहुत अधिक निर्भर थे। उन्होंने आम आदमी की अपनी कथित छवि के विपरीत अपने आधिकारिक आवास के जीर्णोद्धार पर करोड़ों रुपये खर्च करके खुद को विवादों में डाल लिया। अकालियों ने उन पर भगवंत मान के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार को रिमोट कंट्रोल से चलाने का आरोप लगाया। अब जब केजरीवाल जेल में हैं और राघव चड्डा कथित तौर पर विदेश चले गए हैं, तो संजय सिंह और भगवंत मान पार्टी में शक्तिशाली नेता के रूप में उभरे हैं।

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