25/26 जून 1975 की रात भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय,जैसा मैंने देखा …

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शीतला शंकर विजय मिश्र
शीतला शंकर विजय मिश्र

शीतला शंकर विजय मिश्र
25जून 1975को दिल्ली के रामलीला मैदान में जे पी की विशाल जनसभा हुई जिसमें भाग लेने के लिए इलाहाबाद से आया था।
तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने जे पी की लोक प्रियता एवं राष्ट्रव्यापी जनाक्रोश से घबरा कर 25 जून 1975आधी रात को आपात काल की घोषणा कर दी।
मैं,जे पी का उत्तर प्रदेश के लिए कार्यक्रम लेने के लिए 26जून की भोर गांधी शांति संस्थान उनके कक्ष में गया तो कक्ष ख़ाली था मुझे लगा क़ि पटना जाने के लिए कहीं एयरपोर्ट तो नही चले गए तभी संस्थान के केयर टेकर से जानकारी मिली कि रात में वे गिरफ़्तार कर लिए गये हैं।मुझे कहा कि मिश्र जी तुरंत यहाँ से जाइये अन्य सभी आंदोलन कारियों को सूचित कर दीजिए पुलिस वालों की लिस्ट में आपका भी नाम है गिरफ़्तारी हो सकती है ।
आपात काल की कड़वी यादें48 वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद आज भी याद है ।
इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र की आत्मा को छलनी- छलनी करते हुए देश पर आपात काल थोपा था और मुझ जैसे किशोर को भी बिना मुक़दमा चलाए मीसा के तहत केंद्रीय कारागार नैनी में निरुद्ध कर दिया गया था।कारागार में श्री जनेश्वर मिश्र , श्री माधव प्रसाद त्रिपाठी , डाक्टर मुरली मनोहर जोशी , श्री राम नरेश यादव , श्री कल्याण सिंह , श्री राम प्रकाश गुप्ता , श्री कैलाश प्रकाश , डाक्टर रघुवंश , डाक्टर बनवारी लाल शर्मा , डाक्टर के बहादुर एवं श्री राजनाथ सिंह आदि का सानिध्य मिला और इलाहाबाद विश्व विद्यालय के प्रोफ़ेसर गण डाक्टर रघुवंश , डाक्टर के लाल एवं डाक्टर एस एन मित्तल ने मुझे कारागार में पढ़ाया और मैंने इंटर मिडिएट की परीक्षा 1976 में विज्ञान वर्ग के स्थान पर कला वर्ग में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर सरकार द्वारा केंद्रीय कारागार नैनी में स्थापित परीक्षा केंद्र पर दी थी परंतु परीक्षा फल घोषित नही किया गया।
चौधरी चरण सिंह जी ने हिसार जेल से मुझे पत्र लिख कर केंद्रीय कारागार नैनी में भेज कर मेरा मनोबल बढ़ाया था कि निराश मत होना और मन में कमजोरी की बाते मत लाना यदि परीक्षा फल सरकार घोषित नही कर रही है तो एक वर्ष ही तो ख़राब होगा ।
मुझे याद है आपात काल थोपने की प्रक्रिया 24 जून 75 को हीप्रारम्भ हो गयी थी जब सुप्रीम कोर्ट ने लोक बंधु राजनारायण जी के मुक़दमे में पारित इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस ऐतिहासिक फ़ैसले पर आदेश पारित किया था की इंदिरा गांधी संसद की कार्यवाही में भाग तो ले सकती हैं, लेकिन सांसद के रूप में वोट नही कर सकतीं ,जिसमें उनका निर्वाचन रद्द कर दिया गया था ।
आपातकाल में इंदिरा ने राजनीतिक प्रतिद्वंदियो का निर्ममता से दमन किया , न्याय पालिका एवं समाचार पत्रों , मीडिया की स्वतंत्रता को कुचला और विश्व के सबसे जीवंत लोक तंत्र भारत को एक फाँसी वादी देश में तब्दील कर दिया था।
तानाशाही तांडव नृत्य कर रही थी निर्दोषों को जेल में ठूँस दिया गया था 21 माह तक देश ने असहनीय उत्पीड़न झेला । मीडिया पर सेंसरशिप लगा दी गयी थी । सर्वोच्च नौकर शाही नतमस्तक थी । उच्चतर न्यायपालिका भी पंगु हो चुकी थी। पुलिस ने लाखों लोगों को मीसा एवं डीआइ आर के तहत जेलोंमें नज़र बंद कर दिया । ऐसा लगता था कि भारत में लोकतंत्र का सूरज अस्त हो चुका है ।
अन्ततः 21 मार्च 1977को पुनः सूर्य उदित हुआ और आपातकाल के साथ मेरी नज़र बंदी का अंत हो गया।
25जून 1975 के घटना क्रम से जानकारी मिलती है कि देश के समस्त ढाँचों को यकायक कैसे ध्वस्त किया जा सकता है । इसका पूर्ण विवरण शाह आयोग की रिपोर्ट में दर्ज है ।
आपातकाल की काली कहानी बार बार याद किये जाने की ज़रूरत है ताकि देशवासियों को स्मरण रहे कि लोकतांत्रिक परंपराओं के क्षरण के कितने दुष्परिणाम होते हैं। यदि हम लोग कभी आपातकाल की पुनरावृत्ति नही चाहते हैं तो हमें इसके लिए ज़िम्मेदार लोगों और पार्टी को न तो कभी बिस्मृत करना चाहिये और न माफ़ करना चाहिये।
जयहिंद।
शीतला शंकर विजय मिश्र
लोकतंत्र रक्षक सेनानी

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