आपातकाल: भारतीय लोकतंत्र का एक काला अध्याय

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 3जुलाई। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में आपातकाल (1975-1977) एक ऐसा अध्याय है, जिसे आज भी काले अक्षरों में लिखा जाता है। यह वह समय था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल घोषित किया। यह आपातकाल 21 महीने तक चला और इस दौरान भारतीय जनता ने लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन, सेंसरशिप और विरोधियों पर अत्याचार देखा ।

आपातकाल की घोषणा और कारण
आपातकाल की घोषणा का कारण आधिकारिक तौर पर आंतरिक अशांति और राष्ट्रीय सुरक्षा को बताया गया। हालांकि, इसके पीछे कई राजनीतिक और व्यक्तिगत कारण भी थे। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 12 जून 1975 को एक फैसले में इंदिरा गांधी को चुनावी कदाचार का दोषी ठहराया और उनके लोकसभा चुनाव को अवैध घोषित कर दिया। इस फैसले के बाद इंदिरा गांधी पर इस्तीफा देने का दबाव बढ़ गया। इसके कुछ ही दिनों बाद, उन्होंने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल की घोषणा करने का अनुरोध किया।

आपातकाल के प्रभाव
आपातकाल के दौरान सरकार ने नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया, प्रेस पर सेंसरशिप लागू कर दी और राजनीतिक विरोधियों को बड़ी संख्या में गिरफ्तार किया। जनसंघ, आरएसएस, कांग्रेस (ओ), सोशलिस्ट पार्टी और अन्य विपक्षी दलों के नेताओं को जेल में डाल दिया गया। जेपी आंदोलन के नेता जयप्रकाश नारायण, जो आपातकाल के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे, उन्हें भी गिरफ्तार किया गया।

मीडिया और सेंसरशिप
आपातकाल के दौरान मीडिया पर सख्त सेंसरशिप लागू की गई। सभी समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को प्रकाशन से पहले सरकारी मंजूरी लेनी होती थी। सरकार के खिलाफ कोई भी नकारात्मक खबर प्रकाशित करना सख्त मना था। कई पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया और कई समाचार पत्र बंद कर दिए गए।

संशोधन और नीतियां
आपातकाल के दौरान संविधान में 42वां संशोधन पारित किया गया, जिसमें प्रधानमंत्री और संसद की शक्तियों को और बढ़ाया गया। इस संशोधन ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सीमित कर दिया और सरकार को अप्रत्याशित अधिकार दिए। इसी समय, परिवार नियोजन कार्यक्रमों को जबरन लागू किया गया, जिससे लाखों लोगों को जबरन नसबंदी का सामना करना पड़ा।

आपातकाल की समाप्ति
आपातकाल का अंत 21 मार्च 1977 को हुआ, जब इंदिरा गांधी ने लोकसभा चुनावों की घोषणा की। जनता पार्टी, जो विभिन्न विपक्षी दलों का गठबंधन था, ने चुनाव में बड़ी जीत हासिल की और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनाई। इंदिरा गांधी और कांग्रेस पार्टी को भारी हार का सामना करना पड़ा।

आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बड़ी परीक्षा थी। यह घटना यह दिखाती है कि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका, स्वतंत्र मीडिया और जागरूक नागरिकों का होना कितना आवश्यक है। आपातकाल के बाद भारत ने लोकतंत्र की मजबूती के लिए कई सुधार किए और इस काले अध्याय से सीखा कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए हमेशा सतर्क रहना जरूरी है।

साभार- theindianportal.com

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.