समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 30जुलाई। भगवान्ना पहलवान का जन्म 1885 में नारायणा गांव में हुआ था, जो अब दिल्ली के पास स्थित है। उस समय ब्रिटिश राज था। भगवान्ना की 7 फीट की ऊचाई और उनके कुश्ती के दांव धोबी पाट और घिस्सा दांव लोगों के आकर्षण का केंद्र थे।
भगवान्ना ने 18 साल की उम्र में पुलिस में भर्ती हो गए। एक समय उनकी यूनिट कोलंबो, श्रीलंका गई। वहां लोग भगवान्ना को देखकर चौंक गए क्योंकि उन्होंने केवल उनका नाम सुना था। उस समय महान पहलवान राममूर्ती भी श्रीलंका में थे, जिन्होंने भगवान्ना को कुस्ती के लिए चुनौती दी। जब अंग्रेजों को इसकी जानकारी मिली, तो उन्होंने भगवान्ना को कुस्ती न लड़ने का आदेश दिया और एक कमरे में बंद कर दिया। लेकिन भगवान्ना ने एक खिड़की को उखाड़कर चुपचाप कुस्ती के मैदान में जाने का निर्णय लिया और 40 मिनट में राममूर्ती को हराया।
इस कुस्ती पर 5000 रुपये का इनाम रखा गया, जो भगवान्ना को दिया गया। इसके अलावा, कुस्ती प्रेमियों ने मिलकर 1700 रुपये भी भगवान्ना को दिए। अंग्रेजों की बात न मानने के कारण भगवान्ना को सस्पेंड कर दिया गया।
नौकरी छूटने के बाद भगवान्ना अपने गांव लौट आए और शिव मंदिर में जोर आजमाईश करने लगे। एक दिन जब भगवान्ना अपनी रिश्तेदारी में जा रहे थे, तो प्यास लग गई। कुएं पर रखी चड़स को खींचने के लिए बैल नहीं थे, इसलिए भगवान्ना ने चड़स को अपने हाथों से खींचना शुरू कर दिया। राजा का एक वजीर इस दृश्य को देखकर भगवान्ना के पास आया और उन्हें लाहौर के एक मुसलमान रियासतदार के पास ले गया, जो कुस्ती प्रेमी था।
लाहौर में भगवान्ना का मन नहीं लगा और एक साल बाद वह महाराष्ट्र के कोल्हापुर आ गए। कोल्हापुर के महाराज भी कुस्ती प्रेमी थे और भगवान्ना को बहुत इज्जत दी। महाराज ने भगवान्ना को दरवारी पहलवान घोषित कर दिया। भगवान्ना की उम्र में गामा पहलवान से 15-16 साल बड़ी थी। एक बार उनकी कुस्ती में भगवान्ना की आंख पर चोट लगी, लेकिन उन्होंने गामा को अखाड़े के बाहर पटक दिया। इस विवाद में गामा के भाई ने गामा को लड़ने से मना कर दिया, जिससे भगवान्ना को विजयी घोषित किया गया। महाराज ने भगवान्ना को सरकारी सम्मान के साथ-साथ सोने के दो कड़े और सोने के सिक्कों से भरा एक थेला भेंट किया। यह घटना राम सिंह रावत की किताब ‘रवा राजपूतों का इतिहास’ के पहले खंड में भी दर्ज है।
कुछ दिन बाद, राजा के राज्य में एक शेर आ गया। महाराज ने शेर को पकड़ने के लिए पहलवानों और सैनिकों की सहायता से खेत घेर लिया। जब शेर राजा की ओर लपका, तो भगवान्ना ने शेर की कमर में लाठी मारी, जिससे शेर की हड्डी टूट गई और कुछ समय बाद शेर ने दम तोड़ दिया। महाराज ने भगवान्ना को गले से लगा लिया। जब महारानी को इस घटना की जानकारी मिली, तो उन्होंने भगवान्ना के पैर छूने की इच्छा जाहिर की, लेकिन भगवान्ना ने विनती की कि ऐसा न किया जाए।
भगवान्ना एक बार अपने गांव में आए और खेत में पत्थर की कोहलड़ी को कंधे पर रखकर खेत में पटक दिया, जिससे फसल को नुकसान नहीं हुआ। आज भले ही भगवान्ना पहलवान का नाम समय के साथ धुंधला गया हो, लेकिन एक दौर ऐसा था जब माताएं रात को अपने बच्चों को भगवान्ना पहलवान की बहादुरी की कहानियां सुनाती थीं। आइए, हम इस महान योद्धा को श्रद्धांजलि अर्पित करें।