समग्र समाचार सेवा
लखनऊ, 30जुलाई। उत्तर प्रदेश सरकार ने सोमवार को विधानसभा में उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध (संशोधन) विधेयक, 2024 पेश किया। यह विधेयक 2021 में इसी सरकार द्वारा पारित उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम की जगह लेगा। नए विधेयक में धर्मांतरण का आरोप साबित होने पर अधिकतम सज़ा को 10 वर्ष से बढ़ाकर उम्रकैद में बदल दिया गया है। इसके साथ ही, किसी भी व्यक्ति को शिकायत दर्ज करने की अनुमति देने के लिए इसके दायरे का विस्तार किया गया है और इसमें मिलने वाली जमानत को और अधिक कठिन बना दिया गया है।
2021 के अधिनियम की अपर्याप्तता
यूपी सरकार का कहना है कि उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 के तहत मौजूदा प्रावधान “पर्याप्त नहीं” हैं। यानी 2021 में जिन सख्तियों के बारे में योगी सरकार नहीं सोच पाई थी, उसे अब सोचकर लागू किया जा रहा है। भाजपा धर्मांतरण को चुनावों में मुद्दा बनाती है और इसके जरिए वो मुस्लिमों और ईसाई मिशनरियों को टारगेट करती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अक्सर 80 और 20 की बात कहते रहे हैं, यानी 80% हिन्दू आबादी और 20% मुस्लिम आबादी की। फिर भी धर्मांतरण एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है।
धर्मांतरण पर सरकार की चिंता
यूपी सरकार धर्मांतरण के मामलों से बेहद चिंतित है। बिल पेश करते समय उसका आधिकारिक बयान इस बात की पुष्टि करता है। सरकार का कहना है कि “अवैध धर्म परिवर्तन विरोधी कानून इस अपराध की संवेदनशीलता और गंभीरता, महिलाओं की गरिमा और सामाजिक स्थिति, और इसके जरिए जनसंख्या परिवर्तन में विदेशी और राष्ट्र-विरोधी तत्वों और संगठनों की संगठित और योजनाबद्ध गतिविधियों को ध्यान में रखते हुए किया गया है।” यह महसूस किया गया कि उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम में जुर्माने और उसकी राशि को बढ़ाया जाना चाहिए और जमानत की शर्तों को यथासंभव कठोर बनाया जाना चाहिए।
नए विधेयक में प्रावधान
विधेयक में कहा गया है कि मौजूदा दंडात्मक प्रावधान नाबालिग, विकलांग, मानसिक रूप से विकलांग व्यक्ति, महिला या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के संबंध में धार्मिक रूपांतरण और सामूहिक रूपांतरण को रोकने और नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इसलिए, इसमें संशोधन की आवश्यकता है। अतीत में कानूनी मामलों के संबंध में धारा 4 के तहत उत्पन्न हुई कुछ कठिनाइयों को हल करना भी आवश्यक हो गया है।
मौजूदा अधिनियम किसी भी पीड़ित व्यक्ति, उसके माता-पिता, भाई, बहन या रक्त, विवाह या गोद लेने से संबंधित किसी भी व्यक्ति को गैरकानूनी धर्मांतरण के मामले में एफआईआर दर्ज करने की अनुमति देता है। नया विधेयक इसके दायरे को बढ़ाता है। अब “किसी भी व्यक्ति” को शामिल किया गया है। यानी “अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन से संबंधित कोई भी जानकारी कोई भी व्यक्ति दे सकता है।” अब कोई भी तीसरा व्यक्ति अगर दूसरे के बारे में धर्मांतरण की सूचना देता है तो भी एफआईआर दर्ज की जाएगी। पीड़ित चाहे परेशान न हो, लेकिन तीसरा व्यक्ति अगर उसकी स्थिति से परेशान है, तो भी एफआईआर हो जाएगी।
सख्त सजा का प्रावधान
नए विधेयक में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति, जो धर्म परिवर्तन करने के इरादे से, किसी व्यक्ति को उसके जीवन या संपत्ति के भय में डालता है, हमला करता है या बल का उपयोग करता है, शादी का वादा करता है या उकसाता है, किसी नाबालिग, महिला को शादी के लिए उकसाता है या साजिश रचता है, उसे कम से कम 20 साल की कठोर सजा से दंडित किया जाएगा, जिसे उम्रकैद तक बढ़ाया जा सकता है। यानी धर्म परिवर्तन कराने पर हत्या के अपराध जैसी सजा का इंतजाम योगी आदित्यनाथ सरकार ने किया है। धर्म परिवर्तन को हत्या के अपराध के बराबर कर दिया गया है।
इस धारा के तहत लगाया गया जुर्माना पीड़िता को इलाज में खर्च और पुनर्वास के लिए दिया जाएगा। विधेयक में कहा गया है, “अदालत उक्त धार्मिक रूप से पीड़ित को आरोपी द्वारा देय उचित मुआवजे को भी मंजूरी देगी, जो 5 लाख रुपये तक हो सकती है, यह जुर्माने के अतिरिक्त होगा।”
विदेशी धन प्राप्ति पर सख्ती
विधेयक में कहा गया है कि जो कोई भी गैरकानूनी धर्म परिवर्तन के संबंध में किसी विदेशी या अवैध संस्था से धन प्राप्त करता है, उसे कम से कम 7 साल की सजा होगी, जिसे 14 साल तक बढ़ाया जा सकता है, और न्यूनतम 10 लाख रुपये का जुर्माना भी देना होगा।
विशेष प्रावधान
विधेयक के अनुसार, जो कोई भी नाबालिग, विकलांग या मानसिक रूप से प्रभावित व्यक्ति, महिला या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के संबंध में कानून का उल्लंघन करेगा, उसे 14 साल तक की सजा होगी और कम से कम 1 लाख रुपये का जुर्माना देना होगा। मौजूदा अधिनियम में 10 साल तक की सजा का प्रावधान है, और न्यूनतम जुर्माना 25,000 रुपये तय है।
सामूहिक धर्म परिवर्तन से संबंधित मामलों में प्रस्तावित सजा 7-14 साल की कैद और न्यूनतम 1 लाख रुपये का जुर्माना है, जबकि मौजूदा अधिनियम में सजा 3-10 साल की कैद और न्यूनतम 50,000 रुपये का जुर्माना है।
जमानत प्रावधान को सख्त बनाना
मौजूदा अधिनियम की धारा 7 में कहा गया है: “इस अधिनियम के तहत सभी अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होंगे और सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय होंगे।” लेकिन अब जो विधेयक पेश किया गया है उसमें जमानत प्रावधान को और अधिक सख्त बनाने के लिए इसमें एक अतिरिक्त उपधारा जोड़ी गई है। उस उपधारा के मुताबिक, “अधिनियम के तहत दंडनीय किसी भी अपराध का आरोपी व्यक्ति, यदि हिरासत में है, तो उसे तब तक जमानत पर रिहा नहीं किया जाएगा जब तक कि लोक अभियोजक (सरकारी वकील) को ऐसी रिहाई के लिए जमानत के आवेदन का विरोध करने का अवसर नहीं दिया जाता है।”
जहां लोक अभियोजक जमानत के लिए आवेदन का विरोध करता है, वहां जमानत तभी मिलेगी जब सत्र अदालत इस बात से संतुष्ट हो कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि वह इस तरह के अपराध का दोषी नहीं है और जमानत पर रहते हुए उसके द्वारा कोई अपराध नहीं किया जा सकता है।