समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 5अगस्त। बांग्लादेश में हिंसक प्रदर्शन के बाद सोमवार (5 अगस्त) को तख्तापलट हो गया। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, जिन्हें उनके समर्थक हमेशा एक ‘आयरन लेडी’ के रूप में सराहते रहे हैं, का 15 साल के शासन का नाटकीय ढंग से अंत हो गया है। शेख हसीना का शासन 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद से लगातार प्रभावशाली रहा है, लेकिन वर्तमान संकट ने उनकी राजनीतिक यात्रा को एक नया मोड़ दे दिया है।
1975 में भी भारत में ली थी शरण
शेख हसीना को एक समय बांग्लादेश के सैन्य शासन को स्थिरता प्रदान करने के लिए जाना जाता था, लेकिन उनके विरोधियों ने उन्हें एक ‘निरंकुश’ नेता के रूप में आलोचना की। हसीना (76) सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली दुनिया की कुछ चुनिंदा महिलाओं में शामिल हैं।
हसीना का राजनीतिक करियर 1960 के दशक के अंत में ढाका विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान शुरू हुआ था। उनके पिता, बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान, देश के राष्ट्रपति और फिर प्रधानमंत्री बने। हालांकि, अगस्त 1975 में उनके पिता और उनके परिवार के कई सदस्य सैन्य अधिकारियों द्वारा हत्या कर दिए गए। हसीना और उनकी बहन इस हमले से विदेश में होने के कारण बच गईं और उन्होंने उस समय भारत में शरण ली थी।
1981 में लौटकर लोकतंत्र की आवाज बनीं
हसीना ने 1981 में स्वदेश लौटकर बांग्लादेश में लोकतंत्र की मुखर आवाज बनीं। उन्हें कई बार नजरबंद किया गया और 1991 के आम चुनाव में हसीना की पार्टी अवामी लीग को बहुमत हासिल नहीं हुआ। लेकिन 1996 में हसीना प्रधानमंत्री बनीं।
2008 में बड़ी जीत और ‘आयरन लेडी’ का उपनाम
2008 में हसीना ने भारी जीत के साथ सत्ता में वापसी की। उनकी सरकार ने 2013 में इस्लामिस्ट पार्टी और बीएनपी की प्रमुख सहयोगी जमात-ए-इस्लामी को चुनाव में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया। हसीना ने 2017 में म्यांमा से भागकर आए दस लाख से अधिक रोहिंग्याओं को बांग्लादेश में शरण दी, जिसे लेकर उन्हें तारीफें मिलीं।
हसीना को ‘आयरन लेडी’ का उपनाम एक समाचार वेबसाइट ने दिया था, जिसे पश्चिमी मीडिया ने भी स्वीकार किया। उन्होंने भारत और चीन के प्रतिद्वंद्वी हितों के बीच कुशलतापूर्वक बातचीत की और चुनावों से पहले दोनों प्रमुख पड़ोसियों और रूस का समर्थन प्राप्त किया।
आलोचनाएँ और विवाद
हालांकि, हसीना की सरकार को राजनीतिक विरोधियों द्वारा “निरंकुश” और भ्रष्ट शासन के आरोपों का सामना करना पड़ा। नागरिक अधिकार समूहों और संस्थाओं ने भी मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगाया।
अब, बांग्लादेश में हालात बिगड़ने के बाद, शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा है। उनके लंबे राजनीतिक करियर का यह नया मोड़ बांग्लादेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में दर्ज होगा।