मुस्लिमों में मुताह: एक विवादास्पद विवाह प्रथा

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,28 अक्टूबर। मुताह, जिसे अस्थायी विवाह या ‘मुताह निका’ भी कहा जाता है, एक प्रथा है जो मुख्यतः शिया मुस्लिम समुदाय में पाई जाती है। यह एक ऐसा विवाह है जिसमें एक निश्चित समय के लिए, आमतौर पर कुछ दिनों से लेकर सालों तक, दो व्यक्तियों के बीच विवाहिक संबंध स्थापित किया जाता है। इस प्रथा का जिक्र इस्लामी इतिहास और धार्मिक ग्रंथों में मिलता है, लेकिन यह हमेशा से विवाद का विषय रही है।

मुताह का अर्थ और प्रक्रिया

मुताह का शाब्दिक अर्थ है ‘सुख लेना’। इस प्रथा के अंतर्गत, एक पुरुष और एक महिला एक निश्चित अवधि के लिए विवाह बंधन में बंधते हैं। यह विवाह अक्सर मौखिक रूप से या लिखित अनुबंध के माध्यम से किया जाता है। इसमें महिला को एक निश्चित मुआवजा (मेहर) दिया जाता है, जो उसके अधिकारों की पुष्टि करता है। इस तरह का विवाह मुस्लिम समाज में उन परिस्थितियों में प्रचलित होता है जहां पारंपरिक स्थायी विवाह संभव नहीं होता।

मुताह के लाभ और चुनौतियाँ

मुताह का प्रमुख लाभ यह है कि यह उन लोगों को एक वैध तरीके से आपसी संबंध स्थापित करने की अनुमति देता है, जो लंबे समय तक एक-दूसरे के साथ रहने के इच्छुक होते हैं लेकिन स्थायी विवाह नहीं कर सकते। यह प्रथा विशेष रूप से उन परिस्थितियों में सहायक होती है जब लोग यात्रा पर होते हैं या युद्ध के समय में होते हैं।

हालांकि, इस प्रथा के कई आलोचक भी हैं। कुछ का मानना है कि मुताह से महिलाओं के अधिकारों का हनन होता है, क्योंकि यह एक अस्थायी संबंध है और इसमें स्थायी विवाह की सुरक्षा और अधिकारों की गारंटी नहीं होती। यह विशेष रूप से महिलाओं के लिए असुरक्षा की भावना पैदा कर सकता है, क्योंकि वह कभी-कभी एक ही पुरुष के साथ कई बार मुताह कर सकती हैं, जिससे उनके सामाजिक स्थान पर प्रश्न उठते हैं।

मुस्लिम समाज में मुताह का प्रभाव

मुस्लिम समुदाय में मुताह की प्रथा को लेकर अलग-अलग मत हैं। कुछ इसे एक वैध विकल्प मानते हैं, जबकि अन्य इसे इस्लाम की मूल शिक्षाओं के खिलाफ समझते हैं। कुछ देशों में, जैसे ईरान, मुताह को कानूनी मान्यता प्राप्त है, जबकि कई अन्य देशों में इसे सामाजिक या धार्मिक कारणों से प्रतिबंधित किया गया है।

निष्कर्ष

मुताह एक ऐसी प्रथा है जो मुस्लिम समुदाय में विभिन्न दृष्टिकोणों और विचारधाराओं के बीच विभाजन का कारण बनी हुई है। इस प्रथा के फायदे और नुकसान दोनों हैं, और यह समय, स्थान और सांस्कृतिक मान्यताओं पर निर्भर करती है। यह आवश्यक है कि समाज इस प्रथा पर खुलकर चर्चा करे और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करे, ताकि कोई भी व्यक्ति असुरक्षित महसूस न करे। मुताह की वास्तविकता को समझने के लिए इसे सामाजिक, धार्मिक और कानूनी दृष्टिकोण से देखना आवश्यक है।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.