जातिगत जनगणना के मुद्दे पर मोदी का मास्टरस्ट्रोक, चुनाव में भाजपा को होगा फायदा?

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,15 नवम्बर। जातिगत जनगणना का मुद्दा भारतीय राजनीति के केंद्र में आ चुका है। बिहार में जातिगत सर्वे के बाद यह विषय और भी गरमा गया है। विपक्षी दलों ने इसे अपनी राजनीति का प्रमुख एजेंडा बना लिया है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे को एक नए नजरिये से उठाकर चुनावी समीकरण बदलने की कोशिश की है।

जातिगत जनगणना का मुद्दा क्यों अहम है?

जातिगत जनगणना का मकसद है समाज के हर वर्ग की सटीक संख्या जानना ताकि उनके हक और हिस्सेदारी को सुनिश्चित किया जा सके। विपक्षी दल, विशेषकर कांग्रेस और बिहार के महागठबंधन के नेता जैसे नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव, इस मुद्दे को बड़े जोर-शोर से उठा रहे हैं। उनका तर्क है कि जातिगत आंकड़े सामने आने से सामाजिक न्याय और वंचित वर्गों के सशक्तिकरण में मदद मिलेगी।

मोदी का जवाब: गरीबों पर केंद्रित एजेंडा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जातिगत जनगणना के मुद्दे पर सीधा जवाब देने के बजाय “गरीब” पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने हर वर्ग के गरीबों को भाजपा की योजनाओं का लाभार्थी बताकर जातिगत राजनीति की धार को कमजोर करने का प्रयास किया है।

मोदी ने कहा, “हमारी सरकार का एक ही लक्ष्य है – गरीबों का उत्थान। चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या क्षेत्र का हो। हमारी योजनाएं, जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, और आयुष्मान भारत, सभी के लिए हैं।”

गरीबी बनाम जाति का मुद्दा

मोदी सरकार ने जाति की बजाय गरीबी को एक बड़ा मुद्दा बना दिया है। भाजपा के रणनीतिकार मानते हैं कि “गरीबों” को एकजुट करने से विपक्ष की जातिगत राजनीति का प्रभाव कम किया जा सकता है। मोदी सरकार द्वारा गरीब सवर्णों को 10% आरक्षण देना भी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

चुनावी समीकरण पर असर

जातिगत जनगणना का मुद्दा उत्तर प्रदेश, बिहार, और अन्य हिंदी भाषी राज्यों में बड़ा प्रभाव डाल सकता है, क्योंकि यहां जातीय समीकरण चुनावों को सीधे प्रभावित करते हैं। मोदी सरकार की गरीब-केंद्रित राजनीति से भाजपा का यह प्रयास है कि वह समाज के हर वर्ग में अपनी पकड़ बनाए रखे।

हाल ही में बिहार के जातिगत सर्वे ने यह दिखाया कि ओबीसी और ईबीसी वर्ग की जनसंख्या बहुत बड़ी है। विपक्ष इसे अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश में है। लेकिन मोदी सरकार के गरीब-केंद्रित एजेंडे से इस प्रभाव को संतुलित करने की कोशिश हो रही है।

क्या भाजपा को मिलेगा फायदा?

  1. गरीबों को एकजुट करने की कोशिश: मोदी सरकार का फोकस जाति के बजाय गरीबी पर है, जिससे विभिन्न जातियों के गरीब वर्गों को एकसाथ लाने की संभावना है।
  2. योजनाओं का सीधा लाभ: उज्ज्वला, आयुष्मान, और मुफ्त राशन जैसी योजनाओं ने गरीबों को भाजपा के करीब लाया है।
  3. विपक्ष की रणनीति पर चोट: जातिगत जनगणना का मुद्दा सिर्फ आंकड़ों तक सीमित हो सकता है, जबकि भाजपा का गरीब-केंद्रित एजेंडा रोजमर्रा की समस्याओं को हल करने पर जोर देता है।

भविष्य की चुनौतियां

हालांकि मोदी सरकार की रणनीति मजबूत दिख रही है, लेकिन विपक्ष जातिगत मुद्दे को भुनाने के लिए पूरी ताकत लगाएगा। अगर भाजपा गरीबों को जाति आधारित राजनीति से ऊपर उठाने में कामयाब होती है, तो यह विपक्ष के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है।

निष्कर्ष

जातिगत जनगणना के मुद्दे पर मोदी सरकार ने एक नई सोच के साथ जवाब दिया है। गरीबों पर ध्यान केंद्रित करना और विकास को जाति के मुद्दे से ऊपर रखना भाजपा की चुनावी रणनीति को मजबूत करता है। हालांकि, इसका असर कितना होगा, यह तो 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे ही बताएंगे। लेकिन इतना तय है कि मोदी का यह मास्टरस्ट्रोक विपक्ष के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर सकता है।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.