डॉ भीमराव अंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर विशेष

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डॉ ममता पाण्डेय

“सतारा के सरकारी स्कूल में प्राथमिक शिक्षा कक्षा के दरवाजे के बाहर अपने साथ लाए बोरे में बैठकर शिक्षा प्राप्त करने वाला बालक को कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा नंबर वन स्कॉलर घोषित किया गया। इसी विद्यार्थी की पुस्तक “वेटिंग फॉर वीज़ा”अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय मेंपाठ्यक्रम में शामिल है।”पिता राम जी सकपाल माता श्रीमती भीमा बाई के घर 14 अप्रैल 1891 में 14 वीं संतान के रूप में उनका जन्म हुआ। अंबेडकर जी अपने आप को “चौदहवां रत्न “कहा करते थे। बाल्यावस्था से ही वे बहुत परिश्रमी ;संयमी और धर्म निष्ठ थे। 1907में हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद बड़ौदा नरेश के प्रोत्साहन पर उच्चतर शिक्षा के लिए न्यूयॉर्क (अमेरिका) गए। अमेरिकी प्रवास में उन्हें दो बातों ने बहुत प्रभावित किया एक तो अमेरिकी संविधान का 14वां संशोधन; जिससे नीग्रो जाति को दासता से मुक्ति मिली। दूसरे वे बुकर टी. वॉशिंगटन के जीवन से बहुत प्रभावित हुए वे अमेरिका में नीग्रो जाति के हितार्थ महान सुधारक और मार्गदर्शक थे। उन्होंने संस्कृत का धार्मिक; पौराणिक और पूरा वैदिक वांग्मय अनुवाद की सहायता से पढ़ा ।और ऐतिहासिक सामाजिक क्षेत्र में अनेक मौलिक अवधारणाएं प्रस्तुत की विशेषत:इतिहास; मीमांसक; विधिवेत्ता ;अर्थशास्त्री समाजशास्त्री; शिक्षाविद् तथा धर्म दर्शन के व्याख्याता बनकर उभरे। कुछ समय वकालत भी की ।समाज और राजनीति में बेहद सक्रिय भूमिका निभाते हुए उन्होंने अछूतों ;स्त्री और मजदूरों को मानवीय अधिकार व सम्मान दिलाने हेतु संघर्षशील योद्धा के रूप में कार्य किया। परिणाम स्वरुप वह “दलितों के मसीहा” “महा मानव” और समाज सुधारक कहलाते हैं।
मानव_मुक्ति के पुरोधा बाबा साहब भीम राव आंबेडकर अपने समय के सबसे सुपठित जनों में से एक थे।
उनके चिंतन और रचनात्मकता को प्रभावित करने वाले प्रमुख ग्रन्थ ” रामायण ” “महाभारत” हैं। तीन प्रेरक व्यक्तित्व बुद्ध ;कबीर और ज्योतिबा फुले जी हैं।
ज्योतिबा फुले के विचार थॉमस पेन की पुस्तक “राइट्स ऑफ मैन “संस्कृत के “वज्र सूची “ग्रंथ तथा कबीर के बीजक ग्रंथ के “विप्रमतिभजा “से प्रभावित थे।
कोलंबिया विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान संकाय के नियमित छात्र के रूप मैं 1916 में उन्होंने भारत में जाति (castes in india their Mechanism.Genesis and Development)विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत किया। अपने इस शोध कार्य में उन्होंने जाति; उसकी उत्पत्ति; रचना ;विकास; निरंतर आदि की व्याख्या की है।
1917 में वे भारत लौट आए। महाराजा बड़ौदा के सैनिक सचिव के रूप में उनकी नियुक्ति भी हुई । बड़ौदा राज्य की नौकरी छोड़कर मुंबई आ गए उन्होंने नवंबर 1918 में सिडनहम कॉलेज में राजनीतिक अर्थशास्त्र विषय के प्रोफेसर नियुक्त हुए।
अपनी पढ़ाई को पूर्ण करने के लिए वे पुन:लंदन गए ।उन्होंने गंभीर अध्ययन और कठिन परिश्रम किया । ब्रिटिश भारत में औपनिवेशिक बिल का प्रांतीय विकेंद्रीकरण विषय पर उन्होंने थीसिस प्रस्तुत की ।जिसे जून 1921 में डी.एस.सी .के लिए स्वीकार कर लिया गया । उन्हें “बार एट लॉ “की भी उपाधि प्रदान की गई।
24 विषयों में मास्टर; 4 विषय में पीएचडी और नौ भाषाओं का ज्ञान रखने वाले “ज्ञान के प्रतीक” हैं डॉ भीमराव अंबेडकर।डॉ अंबेडकर ने अपने लंदन प्रवास के दौरान ब्रिटेन की संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था; स्वतंत्रता तथा उदारवादिता के मूल्यों का गहन अध्ययन किया।

अप्रैल 2023 में डॉ० अंबेडकर भारत लौट आए और मुंबई में उन्होंने वकालत प्रारंभ की।
“मैं पढ़ लिखकर वकील बनूंगा अछूतों के लिए नया कानून बनाऊंगा और छुआछूत को खत्म करूंगा “डॉ अंबेडकर ने अपने प्राथमिक कक्षा के शिक्षक श्री कृष्ण केशव अंबेडकर जी से यही कहा था। अब संकल्प को कार्य रूप में परिणित करने का समय आ गया था। महाराज कोल्हापुर की मदद से डॉ०अंबेडकर ने 1920 में मराठी भाषा में” मूक नायक” समाचार पत्र प्रकाशित किया।1920 _1923 “बार एट लॉ” की उपाधि जो उन्होंने लंदन से प्राप्त की थी यह शिक्षा ही उनकी सबसे सुदृढ़ हथियार और ढाल बनी।20 जुलाई 1924 मुंबई में सामाजिक अछूतोद्धार कार्यक्रम के अंतर्गत “बहिष्कृत हितकारी सभा” की स्थापना की। 1927 में महत तालाब सत्याग्रह (सार्वजनिक रूप से तालाब के उपयोग हेतु किया)1927 में अंबेडकर ने बहिष्कृत भारत नामक मराठी पत्रिका का प्रकाशन किया।1927 में उन्हें मुंबई विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया। मुंबई में सिद्धार्थ कॉलेज प्रारंभ किया और औरंगाबाद में मिलिंद कॉलेज का पुनरुद्धार किया। उन्होंने “पिपुल्स” एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की जिसके अंतर्गत आज कई कॉलेज संचालित हैं।1930 में नासिक के कालाराम मंदिर में अछूतों के प्रवेश और पूजा हेतु सत्याग्रह किया। अपने अभियान को कानूनी एवं राजनीतिक संरक्षण देने हेतु उन्होंने “इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी” की स्थापना की।तीनों गोल मेज सम्मेलन में भाग लेने वाले डॉ० अंबेडकर ने दलितों अल्पसंख्यकों के हितार्थ मांगे रखीं। 1942 में उनकी नियुक्ति भारत के गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में मजदूरों के प्रतिनिधि के रूप में की गई इस गौरवपूर्ण पद पर सन 1946 तक कार्य करते रहे। 1946 में बंगाल की विधानसभा हेतु निर्वाचित हुए जहां “भारत एक हो “का नारा दिया।
भारतीय संविधान के निर्माण मेंप्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में उनकी महती भूमिका और एक निश्चित समर्पण के कारण उन्हें भारतीय संविधान का “निर्माता” “जनक” “आधुनिक मनु”कहा जाता है।डॉ आंबेडकर स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि मंत्री बनाए गए। उन्होंने महिला सशक्तिकरण हेतु हिंदू कोड बिल 5 फरवरी 1951 को संसद में पेश किया। इस बिल पर संसद में तीन दिन तक चर्चा हुई देशभर में बिल के विरोध हेतु प्रदर्शन हुए बिल पास नहीं हो सका। पारस्परिक मतभेदों के कारण 27 सितंबर 1951 को डॉ अंबेडकर ने नेहरू मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। चौबीस घंटे में “18 घंटे” स्वाध्याय करने वाले इस मनीषी नेलगभग 21 वर्षों तक विश्व के सभी धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन किया और निष्कर्षत: बौद्ध धर्म को ही श्रेष्ठतम माना। पाली भाषा का शब्दकोश लिखने वाले डॉ० अंबेडकर ने सन 1949 में काठमांडू में आयोजित “विश्व बौद्ध सम्मेलन” में “बौद्ध धर्म तथा मार्क्सवाद” पर भाषण दिया। सन 1951 में स्वयं उन्होंने भारतीय बुध जैन संघ की स्थापना की और “बुद्ध उपासना पथ “पुस्तक का संपादन किया। किया 19अक्टूबर 1956 को अपनी पत्नी श्रीमती सविता बाई और50हजार अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली।1954 में रंगून में आयोजित विश्व बौद्ध सम्मेलन में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया। 1955 में “भारतीय बुद्ध महासभा” की स्थापना की।
दुनिया भर में भगवान बुद्ध की प्रतिमा में बुद्ध की आंखें बंद है डॉ० अंबेडकर ने बुद्ध की पहली पेंटिंग बनाई उसमें बुद्ध की आंखें खुली हुई थी।बौद्ध धर्म पर उद्बोधन के दौरान उन्होंने कहा बौद्ध धर्म”:” प्रज्ञा “करुणा” और समता का संदेश देता है इस कारण मुझे बौद्ध धर्म अधिक प्रिय है।”14 अक्टूबर 1956 को डॉक्टर अंबेडकर ने अपनी पत्नी सविता बाई एवं 50 हजार अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली।वर्ष 1956 में ही उन्हें काठमांडू में आयोजित विश्व बौद्ध सम्मेलन में” नव बुद्ध” की उपाधि से नवाजा गया।

6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में इस महान विभूति का ( निधन हो गया) आज के दिन को “महापरिनिर्वाण “दिवस के रूप में मनाया जाता है। “महापरिनिर्वाण “संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है मुक्ति। बौद्ध धर्म मृत्यु के बाद निर्वाण पर विश्वास करता है। विश्व के 65 देशों में डॉ आंबेडकर के अनुयाई हैं। उल्लेखनीय है कि विश्व में सर्वाधिक प्रतिमाएं डॉ० भीम राव अंबेडकर जी की ही बनती हैं। इस महान “विभूति” को मरणोपरांत वर्ष 1990 में “भारत रत्न” से नवाजा गया।विश्व के विभिन्न देशों में बौद्ध धर्मावलंबी इन्हें” विश्व रत्न ” कहते हैं।
“विश्व रतन ” पर विश्व में सर्वाधिक गीत रचे जाते हैं और किताबें लिखी गई हैं। लंदन संग्रहालय में कार्ल मार्क्स के साथ डॉ अंबेडकर की प्रतिमा लगाई गई है ; यह गौरव प्राप्त करने वाले डॉ आंबेडकर एकमात्र भारतीय हैं।आज भारतीय संविधान के वास्तुकार डॉ अंबेडकर के 69 वें महापरिनिर्वाण दिवस पर हम समस्त भारतवासी उन्हें श्रद्धा पूर्वक नमन करते हैं।

डॉ ममता पाण्डेय
सहायक प्राध्यापक राजनीति विज्ञान
पंडित अटल बिहारी वाजपेई
शासकीय महाविद्यालय जयसिंहनगर
जिला शहडोल (मध्य प्रदेश)

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