समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,27 दिसंबर। डॉ. मनमोहन सिंह, भारतीय राजनीति के एक ऐसे नेता हैं, जिनकी छवि एक ईमानदार और कुशल अर्थशास्त्री की रही है। लेकिन उनका कार्यकाल केवल आर्थिक सुधारों या वैश्विक पहचान तक सीमित नहीं है। उनके नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने एक दशक तक सत्ता में मजबूती से टिके रहकर राजनीतिक स्थिरता बनाए रखी। आज भले ही इतिहास उनके कार्यकाल का आकलन अलग-अलग नजरिए से करे, लेकिन एक तथ्य निर्विवाद है—सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर मनमोहन सिंह का बड़ा एहसान है।
सोनिया गांधी के लिए संकटमोचक
2004 में जब कांग्रेस अप्रत्याशित रूप से सत्ता में लौटी, तब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद से पीछे हटकर मनमोहन सिंह को यह जिम्मेदारी सौंपी। इस फैसले ने न केवल कांग्रेस की छवि को एक नई ऊंचाई दी, बल्कि भारतीय राजनीति में त्याग और मर्यादा का एक नया अध्याय भी लिखा। मनमोहन सिंह ने इस जिम्मेदारी को निष्ठा और दक्षता से निभाया। उन्होंने सोनिया गांधी की राजनीतिक प्राथमिकताओं का सम्मान करते हुए अपने काम को अंजाम दिया, जिससे कांग्रेस की संगठनात्मक शक्ति बरकरार रही।
राहुल गांधी के लिए संरक्षक
मनमोहन सिंह का कार्यकाल राहुल गांधी के राजनीतिक करियर को संवारने के लिए भी महत्वपूर्ण था। उन्होंने राहुल को एक ऐसे नेता के रूप में उभरने का अवसर दिया, जो धीरे-धीरे पार्टी की कमान संभालने की तैयारी कर रहा था। मनमोहन ने कभी भी राहुल की आलोचना नहीं की और हमेशा उन्हें एक मार्गदर्शक की तरह समर्थन दिया।
आलोचना और समर्थन के बीच संतुलन
मनमोहन सिंह का कार्यकाल विवादों से भी अछूता नहीं रहा। 2जी स्पेक्ट्रम, कोयला घोटाला, और अन्य घोटालों ने उनकी सरकार की छवि को धूमिल किया। लेकिन इसके बावजूद उनकी व्यक्तिगत ईमानदारी पर कभी सवाल नहीं उठे। सोनिया और राहुल के प्रति उनकी वफादारी और पार्टी के प्रति उनका समर्पण निर्विवाद है।
इतिहास का आकलन और भविष्य की दृष्टि
आज, जब कांग्रेस नई चुनौतियों का सामना कर रही है, तो यह जरूरी है कि पार्टी मनमोहन सिंह के योगदान को याद रखे। उन्होंने अपनी नीतियों और नेतृत्व से न केवल कांग्रेस को सत्ता में बनाए रखा, बल्कि देश को आर्थिक रूप से भी एक मजबूत आधार दिया।
सोनिया गांधी और राहुल गांधी के लिए मनमोहन सिंह केवल एक प्रधानमंत्री नहीं थे, बल्कि एक संरक्षक और विश्वासपात्र भी थे। इतिहास चाहे उनका आकलन कैसे भी करे, कांग्रेस को उनके योगदान को कभी नहीं भूलना चाहिए। यह एहसान भारतीय राजनीति में उनकी स्थायी विरासत का हिस्सा रहेगा।