ताहिर हुसैन, शाहरुख पठान… विवादित चेहरों के जरिए दिल्ली चुनाव में दम दिखा पाएगी ओवैसी की पार्टी?

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,31 दिसंबर।
दिल्ली में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी तेज हो रही है, और इस बार ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने सुर्खियां बटोरी हैं। चर्चा है कि पार्टी विवादित चेहरों जैसे ताहिर हुसैन और शाहरुख पठान जैसे नामों को अपने प्रचार और संभावित उम्मीदवारों की सूची में शामिल करने पर विचार कर रही है। सवाल यह उठता है कि क्या ओवैसी की पार्टी इन चेहरों के जरिए दिल्ली की राजनीति में अपनी मौजूदगी मजबूत कर पाएगी, या यह कदम उनके लिए नुकसानदेह साबित होगा?

कौन हैं ताहिर हुसैन और शाहरुख पठान?

  • ताहिर हुसैन:
    ताहिर हुसैन दिल्ली दंगों के दौरान चर्चा में आए थे। उन पर दंगों की साजिश में शामिल होने और हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया था। उन्होंने इन आरोपों को नकारते हुए कहा था कि वह राजनीतिक षड्यंत्र का शिकार हुए हैं।
  • शाहरुख पठान:
    शाहरुख पठान उस समय सुर्खियों में आए थे जब उनकी एक तस्वीर वायरल हुई, जिसमें वह दिल्ली दंगों के दौरान एक पुलिसकर्मी पर पिस्तौल ताने खड़े थे। यह तस्वीर विवादों का केंद्र बन गई थी और वह लंबे समय तक जेल में रहे।

ओवैसी की रणनीति

असदुद्दीन ओवैसी अपनी पार्टी के जरिए दिल्ली के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं। एआईएमआईएम का लक्ष्य आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच मौजूद मुस्लिम वोटबैंक में सेंध लगाना है।

  • विवादित चेहरों का उपयोग:
    पार्टी इन चेहरों का उपयोग कथित रूप से यह संदेश देने के लिए कर सकती है कि वे उन मुसलमानों के साथ खड़ी हैं जो “सिस्टम के शिकार” हुए हैं।
  • भावनात्मक अपील:
    एआईएमआईएम इस रणनीति के जरिए मुस्लिम समुदाय के बीच एकजुटता का आह्वान कर सकती है।

चुनौतीपूर्ण पहलू

हालांकि, विवादित चेहरों को आगे लाने की रणनीति पार्टी के लिए फायदे से ज्यादा नुकसान भी ला सकती है।

  1. विरोधियों को हमले का मौका:
    बीजेपी और अन्य दल इसे ‘वोट बैंक की राजनीति’ करार देकर एआईएमआईएम की आलोचना कर सकते हैं।
  2. विवादों का बढ़ना:
    ऐसे चेहरों को प्रचार में शामिल करने से एआईएमआईएम पर “कट्टरपंथी छवि” का ठप्पा और गहरा सकता है।
  3. मुख्यधारा के मतदाताओं की नाराजगी:
    जिन मतदाताओं को एआईएमआईएम से उम्मीदें हैं, वे भी इस कदम से दूर हो सकते हैं।

दिल्ली की राजनीति में एआईएमआईएम का प्रभाव

दिल्ली में एआईएमआईएम का प्रभाव अभी सीमित है। पार्टी ने नगर निगम चुनावों में कुछ सीटें जीती थीं, लेकिन विधानसभा स्तर पर अभी तक कोई बड़ी सफलता नहीं मिली है।

  • मुस्लिम वोटबैंक की लड़ाई:
    आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पहले से ही मुस्लिम वोटबैंक पर पकड़ बनाए हुए हैं। एआईएमआईएम को यहां पैर जमाने के लिए मजबूत रणनीति की जरूरत होगी।
  • स्थानीय मुद्दे:
    दिल्ली के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में शिक्षा, रोजगार, और बुनियादी सुविधाओं के मुद्दे अधिक प्रभावी हो सकते हैं, बजाय केवल भावनात्मक या विवादित मुद्दों के।

क्या यह रणनीति कारगर होगी?

विवादित चेहरों को चुनाव प्रचार में शामिल करना एआईएमआईएम को अल्पकालिक फायदा दिला सकता है, लेकिन यह पार्टी की दीर्घकालिक छवि और वोटबैंक को प्रभावित कर सकता है। दिल्ली के मतदाता विकास और स्थिरता जैसे मुद्दों पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, और केवल भावनात्मक अपील लंबे समय तक काम नहीं कर सकती।

निष्कर्ष

दिल्ली चुनाव में एआईएमआईएम का दांव विवादित चेहरों के जरिए चलना जोखिम भरा है। हालांकि यह कुछ खास क्षेत्रों में पार्टी के लिए समर्थन जुटा सकता है, लेकिन व्यापक स्तर पर यह रणनीति उलटी पड़ने की भी संभावना है। ओवैसी को यदि दिल्ली की राजनीति में अपनी उपस्थिति मजबूत करनी है, तो उन्हें विवादों से परे स्थानीय मुद्दों और सकारात्मक विकास योजनाओं पर ध्यान देना होगा।

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