मुद्रास्फीति, कर और भारतीय मध्यम वर्ग: नीडोनॉमिक्स में समाधान

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,10 फरवरी।

प्रो. मदन मोहन गोयल, पूर्व कुलपति

भारत के मध्यम वर्ग के लिए मुद्रास्फीति एक महत्वपूर्ण चिंता बनी हुई है। दिसंबर 2024 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति 5.22% वर्ष-दर-वर्ष दर्ज की गई, जिसमें ग्रामीण मुद्रास्फीति 5.76% और शहरी मुद्रास्फीति 4.58% रही। इसी अवधि में थोक मूल्य सूचकांक (WPI) मुद्रास्फीति बढ़कर 2.37% हो गई, जिसका मुख्य कारण खाद्य कीमतों में वृद्धि है। इन आँकड़ों से स्पष्ट है कि बढ़ती कीमतें विशेष रूप से 8वें वेतन आयोग और बढ़ते कर दायित्वों की पृष्ठभूमि में घरेलू बजट पर भारी पड़ रही हैं।

eNM रिसर्च लैब के अनुसार, 2025-26 के केंद्रीय बजट में मध्यम वर्ग को प्रत्यक्ष लाभ मिलने की संभावना कम है, क्योंकि इनमें से कई आयकर दायरे से बाहर हैं। इसके अतिरिक्त, स्रोत पर कर कटौती (TDS) में वृद्धि का भी मध्यम वर्ग को कोई लाभ नहीं होगा।

मध्यम वर्ग की दुविधा: बढ़ती लागत और कर भार

नीडोनॉमिक्स इस बात पर बल देता है कि भारत को 2047 तक “विकसित भारत” बनाने में मध्यम वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। 2016 में कुल जनसंख्या का 25% होने के मुकाबले 2025 तक यह वर्ग 40% तक बढ़ने की संभावना है। मध्यम वर्ग, जिसकी वार्षिक आय 5 लाख रुपये से 30 लाख रुपये (2020-21 के मूल्यों के अनुसार) के बीच मानी जाती है, भारतीय बाजार और आर्थिक विकास को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

हालाँकि, ग्लोबल सेंटर फॉर नीडोनॉमिक्स, कुरुक्षेत्र के eNM रिसर्च लैब के अनुसार, मध्यम वर्ग की परिभाषा केवल आय पर आधारित नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसमें वे लोग भी शामिल होने चाहिए जो अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) को ध्यान में रखते हुए खुदरा विक्रेताओं से मोलभाव करते हैं, जो आवश्यकताओं पर आधारित उपभोग मानसिकता को दर्शाता है।

मध्यम वर्ग, जिसे अक्सर भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जाता है, दो मुख्य चुनौतियों का सामना कर रहा है:

मुद्रास्फीति का दबाव: आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ती कीमतों से निपटने में मध्यम वर्ग को कठिनाई हो रही है। खाद्य मुद्रास्फीति, जो WPI का प्रमुख घटक है, मध्यम वर्ग के बजट पर अधिक प्रभाव डाल रही है, क्योंकि इन परिवारों की आय का एक बड़ा हिस्सा आवश्यकताओं पर खर्च होता है।
बढ़ी हुई आय पर कर: 8वें वेतन आयोग के तहत सरकारी कर्मचारियों और पेंशनभोगियों की वेतन वृद्धि होगी, लेकिन इस अतिरिक्त आय पर अधिक कर लगेगा, जिससे वास्तविक लाभ कम हो जाएगा। उच्च मुद्रास्फीति के माहौल में इस अतिरिक्त आय की क्रय शक्ति भी सीमित हो जाएगी।
बजट 2025-26: क्या यह वास्तविक राहत प्रदान करेगा?

2025-26 के केंद्रीय बजट से इन महत्वपूर्ण मुद्दों का समाधान करने की उम्मीद थी, लेकिन पिछले रुझानों को देखते हुए मध्यम वर्ग के लिए कर स्लैब में बदलाव, मानक कटौती में वृद्धि या सब्सिडी जैसे कोई भी संभावित राहत उपाय मुद्रास्फीति के प्रभाव को संतुलित करने के लिए पर्याप्त नहीं होंगे।

नीडोनॉमिक्स: मुद्रास्फीति और आर्थिक विकास के लिए एक सतत समाधान

नीडोनॉमिक्स एक ऐसी आर्थिक प्रणाली का समर्थन करता है जो अनियंत्रित उपभोग के बजाय मानव आवश्यकताओं को पूरा करने पर केंद्रित हो। इस दृष्टिकोण को नीति-निर्माण में अपनाकर निम्नलिखित समाधान संभव हो सकते हैं:

मुद्रास्फीति मापने की नई दृष्टि: पारंपरिक मासिक मुद्रास्फीति गणना घरेलू बजट पर वास्तविक प्रभाव को सही ढंग से नहीं दर्शाती है। मुद्रास्फीति को स्थिर और आवश्यकताओं पर आधारित पद्धति से मापने से ऐसी नीतियाँ बनाई जा सकती हैं जो अल्पकालिक सुधारों के बजाय दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करें।
मध्यम वर्ग के कर सुधार: कर नीतियों को मुद्रास्फीति के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए बनाया जाना चाहिए। नीडोनॉमिक्स के अनुसार, कर स्लैब और कटौती को मुद्रास्फीति के साथ जोड़कर इंडेक्सिंग करने से वेतनभोगी वर्ग पर कर का अतिरिक्त बोझ कम किया जा सकता है।
आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित करना: व्यापक सब्सिडी पर निर्भर रहने के बजाय, लक्षित नीतियों के माध्यम से खाद्य और स्वास्थ्य सेवाओं जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित किया जाना चाहिए, जिससे मध्यम वर्ग की वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
उपभोग के बजाय उत्पादकता पर ध्यान देना: आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं के घरेलू उत्पादन को प्रतिस्पर्धात्मक कीमतों पर बढ़ावा देने से आयात पर निर्भरता कम होगी, जिससे मुद्रास्फीति के जोखिम को कम किया जा सकता है।
निष्कर्ष: नीडोनॉमिक्स की आवश्यकता

भारत में एक सशक्त मध्यम वर्ग के उदय से 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को साकार करने का सुनहरा अवसर मिला है। आवश्यकता-आधारित उपभोग और दीर्घकालिक निवेश पर ध्यान देकर मध्यम वर्ग बाजारों को पुनर्परिभाषित कर रहा है और देश की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिरता में योगदान दे रहा है। इस क्षमता को पूरी तरह से उपयोग करने के लिए नीतियों को नीडोनॉमिक्स के सिद्धांतों के अनुरूप बनाना अनिवार्य होगा।

यदि 2025-26 का केंद्रीय बजट मुद्रास्फीति और कर भार को प्रभावी ढंग से संबोधित करने में विफल रहता है, तो वेतन वृद्धि और नीतिगत सुधारों के बावजूद मध्यम वर्ग की परेशानियाँ बनी रहेंगी। नीडोनॉमिक्स एक ऐसा मार्ग प्रदान करता है जो अल्पकालिक उपायों के बजाय वित्तीय भलाई को प्राथमिकता देता है।

सरकार को मुद्रास्फीति-प्रेरित नीतियों से हटकर आवश्यकताओं-आधारित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जिससे आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित हो, कर प्रणाली न्यायसंगत बने, और दीर्घकालिक स्थिरता प्राप्त की जा सके।

मुख्य प्रश्न यह है: क्या 2025-26 का बजट मध्यम वर्ग की वास्तविक आर्थिक चुनौतियों का समाधान करेगा, या यह केवल आँकड़ों की बाजीगरी बनकर रह जाएगा जिसका वास्तविक दुनिया पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा?

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.