चुनाव से पहले मुफ्त योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी सही? फ्री राशन और पैसा मिले तो…?

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,14 फरवरी।
भारत में चुनावों से पहले फ्री राशन, मुफ्त बिजली, कैश ट्रांसफर, और अन्य वादों की बौछार कोई नई बात नहीं है। राजनीतिक दल वोटरों को लुभाने के लिए हर संभव तरीके अपनाते हैं, लेकिन क्या ये ‘रेवड़ी कल्चर’ देश की अर्थव्यवस्था और समाज के लिए सही है? सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर चुनावों के दौरान मुफ्त योजनाओं की घोषणा पर चिंता जताई है और इसे विकास के रास्ते में बाधा बताया है।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारों को मुफ्त की योजनाओं पर अधिक निर्भर नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह वित्तीय अनुशासन को कमजोर करता है और राजनीति को आर्थिक तुष्टिकरण का जरिया बना देता है। अदालत ने यह भी कहा कि मुफ्तखोरी को बढ़ावा देना दीर्घकालिक विकास के लिए नुकसानदायक है और इससे करदाताओं पर अनावश्यक बोझ पड़ता है।

फ्री योजनाओं का क्या असर?

1. अर्थव्यवस्था पर दबाव

मुफ्त योजनाओं को लागू करने के लिए सरकार को अतिरिक्त धन जुटाना पड़ता है, जिससे या तो करों में वृद्धि करनी पड़ती है या फिर कर्ज लेना पड़ता है। इससे राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) बढ़ता है और अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ता है।

2. करदाताओं पर भार

सरकार जो भी मुफ्त योजनाएं लागू करती है, उसका पैसा मध्यवर्गीय करदाताओं की जेब से आता है। यानी जो लोग मेहनत कर टैक्स देते हैं, उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा इन योजनाओं में चला जाता है, जिससे समाज में असमानता की भावना पैदा हो सकती है।

3. काम करने की प्रेरणा कम होती है

अगर लोगों को हर महीने मुफ्त राशन, पैसा और अन्य सुविधाएं मिलने लगें, तो वे काम करने के बजाय सरकार पर निर्भर हो सकते हैं। इससे रोजगार और उद्यमिता की भावना प्रभावित होती है और लंबे समय में यह आर्थिक उत्पादकता घटा सकता है

4. असल जरूरतमंदों को कितना फायदा?

हालांकि, गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करना किसी भी सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है, लेकिन कई बार ये मुफ्त योजनाएं सिर्फ वोट बैंक को मजबूत करने के लिए चलाई जाती हैं। कई बार इनका लाभ वास्तविक जरूरतमंदों तक नहीं पहुंचता और इसका फायदा सिर्फ राजनीतिक दलों को मिलता है

क्या मुफ्त योजनाएं पूरी तरह गलत हैं?

नहीं, सभी मुफ्त योजनाएं गलत नहीं हैं। असली मुद्दा यह है कि इन योजनाओं को किस तरह से लागू किया जाता है।

जरूरतमंदों को मदद मिलनी चाहिए, लेकिन इसका एक संतुलित तरीका होना चाहिए।
फ्री योजनाओं के बजाय रोजगार सृजन और आत्मनिर्भरता बढ़ाने वाली योजनाओं पर फोकस करना चाहिए।
विकास की योजनाएं ऐसी हों जो सिर्फ चुनावी फायदे के लिए नहीं, बल्कि दीर्घकालिक हो।

क्या हो सकता है समाधान?

  1. शिक्षा और कौशल विकास पर जोर दें ताकि लोग आत्मनिर्भर बनें और सरकार पर निर्भर न रहें।
  2. सब्सिडी का सही लक्ष्य निर्धारण हो, जिससे केवल असली जरूरतमंदों तक ही मदद पहुंचे।
  3. रोजगार और उद्यमिता को बढ़ावा दिया जाए, जिससे लोग मुफ्त योजनाओं की जगह खुद कमाने पर ध्यान दें।
  4. सभी योजनाओं की पारदर्शिता सुनिश्चित हो, ताकि किसी भी योजना का गलत फायदा न उठाया जा सके।

निष्कर्ष

चुनाव से पहले मुफ्त योजनाओं का ऐलान एक लोकप्रिय लेकिन खतरनाक ट्रेंड बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी सही है क्योंकि यह राजनीतिक लाभ के लिए सरकारी संसाधनों के अनुचित उपयोग को उजागर करता है। जरूरतमंदों की सहायता जरूर होनी चाहिए, लेकिन इसका व्यापक और संतुलित दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है। मुफ्त राशन और पैसा अस्थायी समाधान हो सकते हैं, लेकिन स्थायी विकास के लिए रोजगार, शिक्षा और आत्मनिर्भरता ही असली कुंजी है।

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