पंजाब में धर्मांतरण पर पहचान का पर्दा: कागजों पर सिख ही रहना चाहते हैं कन्वर्टेड ईसाई, ताकि न विवाद हो, न आरक्षण छूटे!

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,15 फरवरी।
पंजाब में धर्मांतरण का एक अनोखा और पेचीदा मामला सामने आ रहा है, जहां बड़ी संख्या में लोग ईसाई धर्म अपना रहे हैं, लेकिन सरकारी दस्तावेजों में अब भी खुद को सिख ही दिखा रहे हैं। यह ट्रेंड न केवल सामाजिक और धार्मिक विवादों से बचने के लिए अपनाया जा रहा है, बल्कि आरक्षण और अन्य सरकारी सुविधाओं का लाभ जारी रखने के लिए भी किया जा रहा है।

धर्म बदला, पहचान नहीं!

पंजाब में धर्मांतरण की यह प्रक्रिया कई वर्षों से जारी है, लेकिन हाल के वर्षों में इसमें तेज़ी आई है। कई लोग चर्च की धार्मिक परंपराओं को अपना चुके हैं, बाइबल पढ़ते हैं और ईसाई धर्म के रीति-रिवाजों का पालन करते हैं, लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में खुद को सिख समुदाय का हिस्सा ही बनाए रखते हैं।

इसका सबसे बड़ा कारण यह बताया जा रहा है कि अगर वे आधिकारिक रूप से अपना धर्म बदल लेते हैं, तो उन्हें अनुसूचित जाति (SC) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए मिलने वाले आरक्षण और सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा।

धर्मांतरण के पीछे की वजहें

धर्मांतरण के पीछे कई सामाजिक और आर्थिक कारण बताए जाते हैं।

  1. बीमारी और गरीबी से राहत की उम्मीद: चर्चों द्वारा किए जाने वाले सेवा कार्य, जैसे कि मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएं, आर्थिक मदद और शिक्षा, गरीब तबके के लोगों को आकर्षित कर रहे हैं।
  2. अस्पृश्यता और भेदभाव: पंजाब में अब भी जातिगत भेदभाव की घटनाएं होती हैं। दलित समुदाय से आने वाले लोग अक्सर बेहतर सामाजिक स्थिति की तलाश में धर्म परिवर्तन कर रहे हैं।
  3. मजबूत ईसाई मिशनरी नेटवर्क: पंजाब में कई ईसाई मिशनरी संगठन सक्रिय हैं, जो लोगों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं।

कागजों पर सिख ही क्यों बने रहते हैं कन्वर्टेड ईसाई?

  1. आरक्षण का लाभ: भारतीय संविधान के अनुसार, अगर कोई अनुसूचित जाति (SC) से आने वाला व्यक्ति हिंदू, बौद्ध या सिख धर्म छोड़कर ईसाई या मुस्लिम बनता है, तो उसे SC आरक्षण का लाभ नहीं मिलता।
  2. सामाजिक विवादों से बचाव: पंजाब में सिख और ईसाई समुदायों के बीच धर्मांतरण को लेकर अक्सर विवाद होते हैं। कागजों पर सिख बने रहने से लोग किसी प्रकार की सामाजिक अस्थिरता से बच सकते हैं।
  3. परिवार और समाज में स्वीकार्यता: धर्म बदलने के बाद परिवार और समुदाय से बहिष्कृत होने का डर भी कई लोगों को दस्तावेज़ी धर्मांतरण से रोकता है।

सिख संगठनों की आपत्ति और प्रतिक्रिया

पंजाब में सिख संगठनों ने इस पर आपत्ति जताई है और इसे ‘धर्मांतरण की छिपी हुई लहर’ बताया है। कई सिख संगठन मांग कर रहे हैं कि सरकार इस पर सख्त कानून बनाए ताकि धर्मांतरण करने वालों को सरकारी लाभ न मिले और यह तय किया जाए कि जो भी व्यक्ति ईसाई धर्म अपनाए, वह खुद को सरकारी कागजों में भी ईसाई दर्ज कराए।

क्या सरकार कोई कदम उठाएगी?

यह मुद्दा अब धीरे-धीरे राजनीतिक रंग भी पकड़ रहा है। कई राजनीतिक दल इसे चुनावी मुद्दा बना सकते हैं, क्योंकि यह सामाजिक न्याय और धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़ा मसला बनता जा रहा है।

निष्कर्ष

पंजाब में धर्मांतरण का यह छिपा हुआ पहलू सरकार और समाज के सामने एक बड़ी चुनौती पेश कर रहा है। एक ओर, लोग अपनी धार्मिक स्वतंत्रता के तहत किसी भी धर्म को चुनने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन दूसरी ओर, सरकारी सुविधाओं और आरक्षण का लाभ लेने के लिए अपनी असली पहचान छिपाने का मुद्दा बहस का विषय बना हुआ है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और समाज इस जटिल स्थिति से कैसे निपटते हैं।

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