मंत्री कैलाश विजयवर्गीय का बयान – “शिवाजी महाराज नहीं होते तो मैं होता कलीमुद्दीन”

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समग्र समाचार सेवा
भोपाल,21 फरवरी।
मध्यप्रदेश के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने एक कार्यक्रम के दौरान छत्रपति शिवाजी महाराज की महिमा का गुणगान करते हुए एक बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा, “अगर शिवाजी महाराज नहीं होते, तो मैं कलीमुद्दीन होता।” उनके इस बयान ने सियासी और सामाजिक हलकों में चर्चा छेड़ दी है।

शिवाजी महाराज की महिमा का बखान

कैलाश विजयवर्गीय ने इस बयान के जरिए यह दर्शाने की कोशिश की कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिंदू संस्कृति और सभ्यता की रक्षा में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा कि यदि शिवाजी महाराज मुगलों के अत्याचार के खिलाफ नहीं लड़ते, तो आज भारत की तस्वीर कुछ और ही होती।

उन्होंने यह भी कहा कि शिवाजी महाराज ने न सिर्फ मराठा साम्राज्य की नींव रखी बल्कि संपूर्ण हिंदू समाज की अस्मिता को बचाया।

बयान पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

उनके इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है।

  • भाजपा नेताओं ने इसे हिंदू गौरव और मराठा शौर्य की सराहना बताया और कहा कि कैलाश विजयवर्गीय ने ऐतिहासिक सच्चाई को उजागर किया है।
  • विपक्षी दलों ने इस बयान को सांप्रदायिक रंग देने वाला बताया और कहा कि नेताओं को ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर सोच-समझकर बयान देना चाहिए।

शिवाजी महाराज: हिंदू अस्मिता के प्रतीक

छत्रपति शिवाजी महाराज न केवल एक वीर योद्धा थे, बल्कि उन्होंने अपनी सूझबूझ से मुगलों और अन्य विदेशी आक्रांताओं के खिलाफ सफलतापूर्वक संघर्ष किया।

  • उन्होंने स्वराज्य की स्थापना की और एक सशक्त हिंदू साम्राज्य की नींव रखी।
  • उनकी प्रशासनिक नीतियां, सैन्य रणनीतियां और जनता के प्रति उनका व्यवहार उन्हें एक महान शासक बनाता है।
  • वह धार्मिक सहिष्णुता के समर्थक थे और उनके शासन में सभी समुदायों को सम्मान मिला।

क्या है इस बयान का महत्व?

कैलाश विजयवर्गीय के बयान को हिंदुत्व से जोड़कर देखा जा रहा है। उनके अनुसार, अगर इतिहास में शिवाजी महाराज जैसे योद्धा नहीं होते, तो भारतीय संस्कृति की पहचान ही बदल जाती।

हालांकि, उनके इस बयान ने विवाद भी खड़ा कर दिया है, क्योंकि इसे एक धर्म विशेष के खिलाफ टिप्पणी के रूप में भी देखा जा रहा है।

निष्कर्ष

कैलाश विजयवर्गीय का यह बयान राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर व्यापक बहस का विषय बन गया है। जहां एक ओर इसे शिवाजी महाराज के योगदान की सराहना के रूप में देखा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष इसे सांप्रदायिक बयानबाजी करार दे रहा है।

बहरहाल, शिवाजी महाराज का योगदान भारत के इतिहास में अमिट है, और वह सभी भारतीयों के लिए प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।

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