जय छत्रपति शिवाजी महाराज

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शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि,

फाल्गुन मास का वह दिन था

जब पवन ,पेड़,नदियाँ, समंदर

झीलें, तालाब ,वसुंधरा

खुशी से झूम उठा  था अंबर ,

वह जिनके अवतरण का दिवस था ।

जगदम्बा की भेंट शिव स्वरूप मानो स्वयं,

शिव राजा बन कर  आया था,

मुगलों से घिरे भारत को मुक्त करने हेतू

मानो रुद्र ही धरती पर आया था।

कोई पूछे परिचय  शिवाजी का,

तो उसे बता देना तुम,

सम्मानीय  भारत का पुत्र

छत्रपति कहलाया था ।

ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक

शूरवीर महापराक्रमी  वह ,

देश भक्ति  रक्तकण,

रग – रग में उसके देशप्रेम समाया था।

नेत्रों में सदा धर्म की ज्योति,

हिंदुराष्ट्र स्थापना का स्वप्न उसने दिखाया था ।

महापापी का  शीश काटकर जिसने नीचता का अंत किया था ,

जगदम्बा के पुत्र स्वरूप में

भगवा लहराने वाला शिवा ,

चाणक्य जैसा ज्ञानी भी  कहलाया था ।

राजनीति में कुशल ऐसा ,

तान्हाजी ,बाजी राव ,संभाजी सदृश

भारत के निर्माण कार्य में ,

सर्वस्व अपना लगाया था ।

मुगलों का हर  अत्याचार

विफल हुआ हमला  हर बार ,

,जय जगदम्बा का लगाए नारा

अफजल खान को बाघनख से मारा

क्षत्रीय कुल के ऐसे राजा को तो,

अफजल खान की पीढ़ियाँ ,

न कभी भूल पाएंगी ,

छत्रपति शिवाजी नाम सुनते ही उनका  ह्रदय,

आज भी थर थर करके काँपेगा ।

हरे  रंग के भारत को केसरिया में परिवर्तित किया,

हर हर महादेव का नारा लगाकर मुगलों को भगाया,

छत्र छाया  तले शिवाजी  की,

कोई नीच कृत्य न हो संभव ,

इसीलिए वह शूरवीर छत्रपति कहलाया था ।

 

जीजाबाई का दुलारा माँ का आज्ञाकारी था

मुगलों से घेरे भारत में भगवा लहराना ही

उसके जीवन का उद्देश्य था ।

एक दिन फिर  पता चला था रायगढ़ के किले में,

अमर ज्योति बुझ गई समाया वह काल के गाल में,

भवानी पुत्र वह भारत माँ के आँचल में सदा के लिए सो गया ,

पर आज भी जीवंत वह वीर  हर मन में सर्वत्र अमर  हो गया ।

|| जय भवानी जय शिवाजी ||

—- बद्री विशाल गोस्वामी कक्षा -सात  ( क्राइश्ट ज्योति  स्कूल न गाँव)

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