आरएसएस के वार्षिक अधिवेशन में अवैध प्रवासन, एनआरसी और जनसांख्यिकी बदलाव होंगे प्रमुख मुद्दे

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,7 मार्च।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अपने आगामी वार्षिक अधिवेशन में कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार करेगा। यह अधिवेशन 21 मार्च से बेंगलुरु में शुरू होगा। इस तीन दिवसीय बैठक में अवैध प्रवासन, राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) की आवश्यकता, सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसांख्यिकी परिवर्तन और पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों जैसे विषय प्रमुख रूप से चर्चा में रहेंगे।

इस बैठक में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत सहित संगठन के शीर्ष नेतृत्व के संबोधन होंगे। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा, जो आरएसएस का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है, इस अधिवेशन में संघ और इसके सहयोगी संगठनों की पिछले वर्ष की गतिविधियों की समीक्षा करेगा और आगामी वर्ष की प्राथमिकताओं को तय करेगा। बैठक के एजेंडे से जुड़े सूत्रों के अनुसार, हिंदू समाज से जुड़े मुद्दे मुख्य केंद्र में रहेंगे, जिसमें अवैध प्रवासन और इसके कारण देश की जनसांख्यिकी में हो रहे बदलावों को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की जाएगी।

आरएसएस के इस अधिवेशन में विशेष रूप से उन सीमावर्ती राज्यों पर चर्चा की जाएगी, जहां अवैध प्रवासन ने जनसंख्या संतुलन को प्रभावित किया है। असम, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह समस्या लंबे समय से विवाद का विषय रही है। संघ इस बात पर जोर देगा कि अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वाले प्रवासियों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर किया जाए। इसी संदर्भ में, राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) को प्रभावी रूप से लागू करने की आवश्यकता पर भी बल दिया जाएगा।

संघ का मानना है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में अप्रवासियों की संख्या बढ़ने से राष्ट्रीय सुरक्षा, सांस्कृतिक पहचान और आर्थिक संसाधनों पर गंभीर दबाव पड़ रहा है। आरएसएस इस पर एक ठोस प्रस्ताव पारित कर सकता है, जिसमें भारत की संप्रभुता और मूल नागरिकों के हितों की सुरक्षा के लिए व्यापक कदम उठाने की मांग की जाएगी।

अधिवेशन में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे देशों में अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से हिंदू, सिख और अन्य धार्मिक समुदायों पर हो रहे अत्याचारों का मुद्दा भी उठाया जाएगा। आरएसएस पहले भी इस विषय को प्रमुखता से उठाता रहा है और भारत सरकार से ऐसे पीड़ित समुदायों को सुरक्षा और शरण देने की मांग करता रहा है।

संघ का यह रुख नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के समर्थन से भी जुड़ा हुआ है, जिसमें इन देशों से उत्पीड़न का शिकार होकर भारत आए धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। इस विषय पर अधिवेशन में प्रस्ताव पारित किया जा सकता है, जिससे सरकार पर इस कानून को शीघ्र लागू करने का दबाव बनाया जा सके।

इस बैठक में संघ के शताब्दी वर्ष समारोह की तैयारियों पर भी व्यापक विचार-विमर्श किया जाएगा। अक्टूबर 2025 में आरएसएस की स्थापना के सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं, जिसका आयोजन विजयादशमी के अवसर पर किया जाएगा। यह शताब्दी वर्ष संघ के इतिहास, विचारधारा और समाज सेवा के कार्यों को प्रदर्शित करने का महत्वपूर्ण अवसर होगा।

बेंगलुरु में होने वाला यह आरएसएस अधिवेशन न केवल संघ के लिए बल्कि पूरे देश की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। इस बैठक में पारित प्रस्ताव और लिए गए निर्णय अगले एक वर्ष में राष्ट्रीय राजनीति और नीतियों को प्रभावित कर सकते हैं।

संघ का ध्यान राष्ट्रीय सुरक्षा, जनसांख्यिकी परिवर्तन और अल्पसंख्यक सुरक्षा जैसे विषयों पर केंद्रित रहना यह दर्शाता है कि वह भारत के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में एक प्रमुख शक्ति बना रहेगा। इस अधिवेशन में लिए गए निर्णय और प्रस्ताव निश्चित रूप से राजनीतिक दलों और सरकार की नीति निर्माण प्रक्रिया को प्रभावित करेंगे।

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