धर्मेंद्र प्रधान ने 15 मार्च 2024 को तमिलनाडु शिक्षा विभाग द्वारा पीएम श्री योजना के लिए भेजे गए सहमति पत्र को साझा करते हुए आरोप लगाया था कि तमिलनाडु सरकार ने इस योजना पर अपनी मंजूरी देने में अपने रुख में बदलाव किया है। प्रधान ने यह भी कहा था कि डीएमके और मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने संसद में उन्हें गुमराह करने का प्रयास किया।

प्रधान ने अपने ट्वीट में लिखा, “कल डीएमके सांसदों और माननीय मुख्यमंत्री स्टालिन ने मुझ पर तमिलनाडु की सहमति के बारे में संसद को गुमराह करने का आरोप लगाया था। मैं अपनी बात पर कायम हूं और तमिलनाडु शिक्षा विभाग का सहमति पत्र साझा कर रहा हूं।” उन्होंने आगे कहा, “डीएमके सांसद और मुख्यमंत्री जितनी चाहें झूठ बोल सकते हैं, लेकिन सच तब ही सामने आता है जब यह धरातल पर गिरता है।”

इसके जवाब में, कनीमोझी ने ट्विटर (X) पर अपने बयान में कहा, “यह पत्र स्पष्ट रूप से बताता है कि तमिलनाडु केवल राज्य सरकार द्वारा गठित समिति की सिफारिशों के आधार पर पीएम श्री स्कूलों को स्वीकार करेगा, न कि केंद्रीय सरकार की सिफारिशों के आधार पर। हमने कहीं भी तीन-भाषा नीति या एनईपी को पूरी तरह से स्वीकार करने की बात नहीं की है। तमिलनाडु के लिए जो स्वीकार्य होगा, वही हम स्वीकार करेंगे—कुछ ज्यादा, कुछ कम नहीं। तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करना बंद करें।”

कनीमोझी के इस बयान ने विवाद को और तूल दे दिया, जिसमें तमिलनाडु की राज्य सरकार और केंद्र के बीच भाषा नीति और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को लेकर बढ़ते मतभेदों को उजागर किया। कनीमोझी ने साफ किया कि राज्य के लिए किसी भी योजना को लागू करने से पहले उसकी नीति से मेल खाना बेहद जरूरी है, और केंद्र सरकार के कुछ प्रस्तावों को राज्य सरकार ने स्वीकार नहीं किया है, जैसे तीन-भाषा नीति और एनईपी का पूरी तरह से पालन।

प्रधान ने डीएमके पर आरोप लगाते हुए कहा कि पार्टी भाषा के मुद्दे को एक “ध्यान भटकाने की रणनीति” के रूप में उठा रही है, और उनका मानना था कि डीएमके का रुख छात्रों की भलाई से ज्यादा राजनीतिक लाभ के लिए था। प्रधान ने कहा, “एनईपी पर अचानक रुख बदलने का कारण सिर्फ राजनीतिक फायदे और डीएमके की राजनीति को पुनः जीवित करना है। यह राजनीति तमिलनाडु के छात्रों के उज्जवल भविष्य के लिए एक बड़ा नुकसान है।”

प्रधान ने मंगलवार को राजसभा में यह भी स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार किसी भी राज्य पर कोई भाषा थोपने का प्रयास नहीं कर रही है और न ही किसी के अधिकारों को छीनने का कोई इरादा है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत एक बहुभाषी देश है, और मोदी सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि किसी भी भाषा के आधार पर किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचे।

इस राजनीतिक युद्ध ने तमिलनाडु की राज्य सरकार और केंद्र के बीच बढ़ती असहमति को फिर से उजागर किया है। एक ओर जहां केंद्र सरकार पीएम श्री योजना को लागू करने के लिए उत्सुक है, वहीं दूसरी ओर तमिलनाडु सरकार ने साफ किया है कि राज्य की सांस्कृतिक और भाषाई विशेषताओं के अनुरूप ही किसी भी योजना को स्वीकार किया जाएगा।

तमिलनाडु में शिक्षा क्षेत्र पर केंद्र सरकार के प्रभाव को लेकर लगातार विवाद उठते रहे हैं, और यह ताजा विवाद इस बात का संकेत है कि तमिलनाडु की सरकार केंद्र के साथ अपने रिश्ते को लेकर सतर्क और अपनी नीतियों के प्रति प्रतिबद्ध है। दोनों पक्षों के बीच चल रही इस बयानबाजी का क्या परिणाम निकलता है, यह आने वाले समय में ही स्पष्ट होगा, लेकिन फिलहाल यह स्पष्ट है कि तमिलनाडु अपनी नीतियों में किसी भी प्रकार की समझौता करने को तैयार नहीं है।