सतत शिक्षा हेतु गीता-प्रेरित नीडोनॉमिक्स आवश्यक है, जो सुबह के समय का उपयोग करते हुए बेहतर समय प्रबंधन से शिक्षण और सीखने को प्रभावी बनाता है

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मुंबई , मार्च 21,2025 – ” सतत शिक्षा हेतु, शिक्षण और सीखने को गीता-प्रेरित नीडोनॉमिक्स द्वारा परिवर्तित किया जाना चाहिए, जिसमें प्रातःकालीन कार्य समय और बेहतर समय प्रबंधन पर जोर हो।“ यह बात तीन बार के कुलपति और नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट के प्रवर्तक प्रो. एम. एम. गोयल ने कही, जो कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हुए हैं।

वह यूजीसी-मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र (एमएमटीटीसी), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन (एनआईईपीए), दिल्ली द्वारा एसआईईएस कॉलेज ऑफ आर्ट्स, साइंस एंड कॉमर्स (एम्पावर्ड ऑटोनॉमस), मुंबई के सहयोग से आयोजित ऑनलाइन बहु-विषयक रिफ्रेशर कोर्स में प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे। उनका व्याख्यान ” शैक्षणिक नेतृत्व: सतत शिक्षण भविष्य हेतु गीता-प्रेरित नीडोनोमिक्स” पर केंद्रित था। कार्यक्रम की अध्यक्षता एमएमटीटीसी की निदेशक प्रोफेसर मोना खरे ने की। कार्यक्रम समन्वयक डॉ. श्रुति आर. पांडे, एसोसिएट प्रोफेसर ने स्वागत भाषण दिया और प्रो. एम. एम. गोयल की उपलब्धियों पर  एक प्रशस्ति पत्र प्रस्तुत किया।

प्रो. गोयल का मानना है कि मजबूत पारस्परिक कौशल वाले व्यक्तियों के लिए महान शिक्षक बनने और सफल भविष्य बनाने की असीम संभावनाएँ और रोमांचक अवसर उपलब्ध हैं।

प्रो. गोयल ने बताया कि शैक्षणिक नेतृत्व स्थायी शैक्षिक प्रथाओं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो मूल्य-आधारित शिक्षा, जिम्मेदार संसाधन उपयोग और भावी पीढ़ियों के लिए समग्र छात्र विकास पर जोर देता है।

प्रो. गोयल ने कहा कि शिक्षा की स्थिरता केवल नीतियों तक सीमित नहीं, बल्कि एक दर्शन है।

प्रो. गोयल ने बताया कि गीता-प्रेरित नीडोनॉमिक्स को अपनाकर, शैक्षणिक नेतृत्व सीखने को एक शक्तिशाली शक्ति में बदल सकता है जो दिमाग का पोषण करती है, समाज की सेवा करती है और भविष्य को सुरक्षित करती है।

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