“एक देश, एक चुनाव” से लोकतंत्र को मिलेगी मजबूती – रविशंकर प्रसाद

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समग्र समाचार सेवा
इंदौर ,25 मार्च।
देश में “एक देश, एक चुनाव” को लेकर बहस तेज हो गई है। इसी कड़ी में इंदौर स्थित आईसीएआई भवन में सीए एसोसिएशन और अधिवक्ताओं के साथ एक विशेष चर्चा का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में पूर्व केंद्रीय मंत्री और पटना से सांसद श्री रविशंकर प्रसाद, मध्य प्रदेश के कैबिनेट मंत्री श्री कैलाश विजयवर्गीय, इंदौर के महापौर एवं “एक देश, एक चुनाव” के सह संयोजक श्री पुष्यमित्र भार्गव, भाजपा संभाग प्रभारी राघवेंद्र गौतम, नगर अध्यक्ष सुमित मिश्रा, विधायक उषा ठाकुर सहित बड़ी संख्या में सीए प्रैक्टिशनर्स, अधिवक्ता और छात्र उपस्थित रहे।

चर्चा के दौरान पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश में चुनाव प्रणाली में सुधार की जरूरत है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि जब देश अर्थव्यवस्था, तकनीक और प्रशासनिक स्तर पर आगे बढ़ रहा है, तो चुनाव प्रणाली को भी नए जमाने के हिसाब से ढालने की आवश्यकता है

उन्होंने कहा कि “एक देश, एक चुनाव” न केवल लोकतंत्र को मजबूत करेगा, बल्कि इसे अधिक प्रभावी और निष्पक्ष भी बनाएगा। इसके साथ ही उन्होंने आम नागरिकों से चुनावी प्रक्रिया में जागरूकता और भागीदारी बढ़ाने की अपील की।

मध्य प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि बार-बार होने वाले चुनावों से सरकारी संसाधनों की बर्बादी होती है और इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है

उन्होंने कहा कि अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं, तो इससे सरकारी तंत्र पर दबाव कम होगा, साथ ही निर्वाचन आयोग और सुरक्षा एजेंसियों के संसाधनों की बचत होगी।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अलग-अलग चुनाव होने से बार-बार आचार संहिता लागू होती है, जिससे विकास कार्य ठप पड़ जाते हैं। ऐसे में “एक देश, एक चुनाव” से देश की प्रशासनिक व्यवस्था को और सुचारू बनाया जा सकता है।

इंदौर के महापौर श्री पुष्यमित्र भार्गव ने इस कार्यक्रम में चुनावी खर्च के बढ़ते बोझ पर प्रकाश डालते हुए बताया कि भारत में अलग-अलग चुनाव कराने पर करीब 5 से 6 लाख करोड़ रुपये खर्च होते हैं। अगर “एक देश, एक चुनाव” की नीति लागू होती है, तो यह खर्च घटकर 1 से 1.5 लाख करोड़ रुपये तक आ सकता है

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 2019 और 2024 के चुनावी घोषणा पत्र में “एक देश, एक चुनाव” को लागू करने की प्रतिबद्धता जताई थी। उन्होंने युवाओं और प्रोफेशनल्स से इस मुहिम को समर्थन देने की अपील की

चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और सुगमता आएगी।
बार-बार आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य बाधित होते हैं, इसे रोका जा सकेगा।
चुनाव प्रचार में होने वाले भारी-भरकम खर्च को कम किया जा सकेगा।
प्रशासनिक और सुरक्षा बलों पर अतिरिक्त दबाव नहीं पड़ेगा।

“एक देश, एक चुनाव” की अवधारणा भारतीय लोकतंत्र के लिए एक ऐतिहासिक बदलाव साबित हो सकती है। हालांकि, इसे लागू करने के लिए संविधान में संशोधन और राज्यों की सहमति जरूरी होगी।

इस कार्यक्रम ने “एक देश, एक चुनाव” पर बहस को और तेज कर दिया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस प्रस्ताव को लेकर आगे क्या कदम उठाती है और क्या यह विचार आने वाले वर्षों में हकीकत बन पाएगा

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