बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल और सत्ता संघर्ष: बदलाव के मुहाने पर खड़ा देश

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,25 मार्च।
बांग्लादेश इस समय राजनीतिक अशांति और संघर्ष के दौर से गुजर रहा है, जहां छात्र संगठन और सैन्य अधिकारी प्रमुख भूमिकाएं निभा रहे हैं। जैसे-जैसे तनाव बढ़ रहा है, देश एक बड़े बदलाव के मुहाने पर खड़ा दिखाई देता है, जहां सत्ता संघर्ष और भ्रष्टाचार के आरोप पहले से ही जल रही आग में घी डालने का काम कर रहे हैं।

इस अशांति के केंद्र में देश की राजनीतिक सत्ता, सेना और छात्र संगठनों के बीच जारी गतिरोध है। हाल के महीनों में प्रदर्शन तेज़ हुए हैं, जिसमें छात्र भ्रष्टाचार, असमानता और राजनीतिक वर्ग के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। ये विरोध केवल घरेलू मुद्दों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि अब यह सरकार के अधिकार को सीधी चुनौती देने में बदल गया है। देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों के छात्र इस आंदोलन के चेहरे बन गए हैं, जो सरकार से पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग कर रहे हैं।

बांग्लादेश की राजनीति में हमेशा से ही सेना एक मजबूत ताकत रही है, लेकिन इस बार वह एक कठिन स्थिति में फंस गई है। छात्र प्रदर्शनकारियों और सैन्य अधिकारियों के बीच तनाव बढ़ रहा है, क्योंकि सेना को लग रहा है कि उनकी शक्ति को विपक्ष कमजोर करने की कोशिश कर रहा है। सेना के भीतर भी कुछ हलकों में सरकार को अस्थिर करने या सत्ता पलटने की चर्चा जोरों पर है।

यह सत्ता संघर्ष केवल राजनीतिक दलों और छात्र संगठनों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सेना भी शामिल हो चुकी है, जिसे बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिरता का एक अहम स्तंभ माना जाता है। यह स्थिति बांग्लादेश के राजनीतिक परिदृश्य को अधिक अस्थिर और अप्रत्याशित बना रही है।

इस अशांति की सबसे विवादास्पद बात यह है कि सेना पर 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान किए गए कथित युद्ध अपराधों के आरोप फिर से उठ रहे हैं। छात्र संगठनों ने हाल के महीनों में सेना के वरिष्ठ अधिकारियों पर युद्ध अपराधों में संलिप्तता के आरोप लगाए हैं। इन आरोपों ने देश को गहराई से विभाजित कर दिया है—कुछ लोग सेना का बचाव कर रहे हैं, तो कुछ न्याय की मांग कर रहे हैं।

हालांकि यह मुद्दा ऐतिहासिक है, लेकिन इसे अब राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे सेना की आधुनिक बांग्लादेश में भूमिका को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। इन आरोपों के चलते प्रदर्शन और प्रतिवाद बढ़ते जा रहे हैं, जहां सरकार और सेना अपनी पकड़ बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि छात्र संगठन परिवर्तन की मांग कर रहे हैं।

इस स्थिति को और जटिल बना रहा है बांग्लादेश के राजनीतिक दलों के भीतर फूट। कुछ रिपोर्टों के अनुसार, कुछ नेताओं को सत्ता से हटाने की साजिशें रची जा रही हैं, और सेना देश की सरकार में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की योजना बना रही है। इससे संकेत मिलता है कि बांग्लादेश एक बड़े राजनीतिक बदलाव की ओर बढ़ रहा है, जहां सरकार, सेना और नागरिक समाज के बीच शक्ति संतुलन बदल सकता है।

बांग्लादेश की आंतरिक उथल-पुथल ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान आकर्षित किया है। दक्षिण एशिया में इसकी रणनीतिक स्थिति और बढ़ती आर्थिक शक्ति ने इसे क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों के केंद्र में ला दिया है। लगातार जारी विरोध और राजनीतिक अस्थिरता को लेकर विदेशी सरकारें चिंतित हैं, क्योंकि इससे पूरे क्षेत्र पर असर पड़ सकता है।

बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति अब अत्यधिक जटिल हो चुकी है, और कोई स्पष्ट समाधान नजर नहीं आ रहा है। राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है, जहां तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। अभी यह कहना मुश्किल है कि क्या यह अशांति नई सरकार के गठन की ओर ले जाएगी, या फिर सत्ता में बैठे लोग स्थिति को काबू में लाने में कामयाब रहेंगे।

एक बात निश्चित है—बांग्लादेश की राजनीतिक अस्थिरता अभी खत्म नहीं हुई है। छात्र संगठन अब भी सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ खड़े हैं, और सेना राजनीति में अधिक दखल देने लगी है। आने वाले महीने इस राष्ट्र के भविष्य के लिए निर्णायक हो सकते हैं।

संक्षेप में, बांग्लादेश इस समय एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है। सत्ता संघर्ष, भ्रष्टाचार और पुराने अपराधों के आरोपों ने देश के राजनीतिक भविष्य को अस्थिर कर दिया है। छात्र, सेना और राजनीतिक नेता आमने-सामने हैं, और देश की तकदीर अधर में लटकी हुई है। आने वाले हफ्तों और महीनों में यह घटनाक्रम और रोचक मोड़ ले सकता है, और पूरी दुनिया की नजरें इसपर टिकी रहेंगी कि बांग्लादेश इस राजनीतिक संकट से कैसे बाहर निकलता है।

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