IIT गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने औद्योगिक अपशिष्ट जल शुद्धिकरण के लिए फलों के कचरे से बनाए वाटर प्यूरीफायर

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गुवाहाटी, 25 मार्च 2025 पानी प्रदूषण की समस्या को हल करने की दिशा में एक क्रांतिकारी नवाचार करते हुए, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गुवाहाटी (IIT-G) के वैज्ञानिकों ने एक किफायती और पर्यावरण के अनुकूल तकनीक विकसित की है, जो औद्योगिक अपशिष्ट जल से हानिकारक प्रदूषकों को प्रभावी ढंग से हटा सकती है। इस तकनीक में अनानास के मुकुट (Pineapple Crowns) और मौसमी के रेशों (Mosambi Fibers) जैसे फलों के कचरे से तैयार बायोचार का उपयोग किया गया है, जो रंगाई, फार्मा और कीटनाशक उद्योगों के अपशिष्ट जल में पाए जाने वाले जहरीले नाइट्रोएरोमैटिक रसायनों को अवशोषित करने में सक्षम है।

इस शोध का नेतृत्व IIT गुवाहाटी के रसायन विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. गोपाल दास कर रहे हैं। उनके अनुसार, पाइरोलिसिस नामक प्रक्रिया के माध्यम से जैविक कचरे को बायोचार में परिवर्तित किया जाता है। पाइरोलिसिस एक ऐसी तकनीक है, जिसमें जैविक कचरे को ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में गर्म किया जाता है, जिससे यह एक कार्बन-आधारित पदार्थ, बायोचार में बदल जाता है।

अनानास के मुकुट और मौसमी के रेशों से तैयार बायोचार को ACBC (Ananas Comosus Biochar) और MFBC (Citrus Limetta Biochar) नाम दिया गया है। यह बायोचार औद्योगिक अपशिष्ट जल में मौजूद जहरीले नाइट्रोएरोमैटिक यौगिक 4-नाइट्रोफेनोल को अवशोषित करने में असाधारण रूप से प्रभावी साबित हुआ है। यह रसायन अपने कैंसरजनक प्रभावों, आनुवंशिक परिवर्तनों और अन्य स्वास्थ्य खतरों के लिए कुख्यात है।

हाल ही में प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका Chemical Engineering Science में प्रकाशित इस अध्ययन में बताया गया कि ACBC बायोचार ने 99% दक्षता के साथ 4-नाइट्रोफेनोल को हटा दिया, जबकि MFBC ने इसे 97% तक अवशोषित किया। पारंपरिक अपशिष्ट जल शोधन तकनीकों की तुलना में यह विधि न केवल अधिक प्रभावी है, बल्कि अत्यंत तेज भी है। बायोचार ने मात्र पांच मिनट में संतुलन (Equilibrium) हासिल कर लिया, जबकि पारंपरिक तकनीकों में महंगे उत्प्रेरकों (Catalysts) और जटिल उपकरणों की आवश्यकता होती है और यह प्रक्रिया अधिक समय लेती है।

“इस त्वरित अवशोषण तंत्र और प्रभावी जल शुद्धिकरण के कारण, यह तकनीक बड़े पैमाने पर औद्योगिक उपयोग के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है,” डॉ. दास ने बताया। उन्होंने आगे कहा कि यह बायोचार कई बार पुन: उपयोग किया जा सकता है, जिससे यह आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ विकल्प बन जाता है।

इस शोध का प्रभाव केवल औद्योगिक जल प्रदूषण तक सीमित नहीं है। डॉ. दास के अनुसार, इस तकनीक को ग्रामीण क्षेत्रों में भी लागू किया जा सकता है, जहां स्वच्छ जल की समस्या बनी रहती है। इसके अलावा, इस तकनीक का उपयोग बड़े पैमाने पर पर्यावरण शुद्धिकरण के लिए भी किया जा सकता है, जिससे कचरे को उपयोगी उत्पादों में बदला जा सकता है।

शोध दल, जिसमें डॉ. दीपमोनी डेका और नेहा गौतम प्रमुख रूप से शामिल हैं, अब प्रयोगशाला स्तर पर परीक्षण और क्षेत्रीय परीक्षण (Field Trials) की योजना बना रहा है ताकि तकनीक को और बेहतर बनाया जा सके। शोधकर्ता इस प्रणाली की प्रभावशीलता और व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन की संभावनाओं को जांचने की तैयारी कर रहे हैं। इसके लिए वे औद्योगिक क्षेत्र के साझेदारों की तलाश कर रहे हैं, ताकि इस गेम-चेंजर तकनीक को व्यावसायिक रूप से लॉन्च किया जा सके और वैश्विक जल प्रदूषण की समस्या का समाधान निकाला जा सके।

IIT गुवाहाटी का यह नवाचार न केवल जल प्रदूषण की गंभीर समस्या का समाधान पेश करता है, बल्कि सर्कुलर इकोनॉमी (Circular Economy) को भी बढ़ावा देता है, जिसमें कचरे को पुन: उपयोग कर एक मूल्यवान संसाधन में बदला जाता है। यह खोज पर्यावरण के अनुकूल औद्योगिक प्रक्रियाओं की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

इस शोध से यह उम्मीद जगी है कि सस्ती और हरित औद्योगिक जल शोधन तकनीक जल्द ही पूरी दुनिया में जल प्रदूषण से निपटने का एक प्रभावी समाधान बन सकती है।

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