रोहतक, अप्रैल 7: हरियाणा के रोहतक में राज्य स्तरीय फिल्म महोत्सव के समापन अवसर पर मुख्यमंत्री नायब सैनी ने एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए बताया कि पिंजौर में 100 एकड़ में फैली एक अत्याधुनिक फिल्म सिटी बनाई जाएगी। यह घोषणा न केवल हरियाणा के सांस्कृतिक विकास की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि भारतीय सिनेमा के भविष्य के लिए भी एक अहम संकेत है – कि अब फिल्म निर्माण सिर्फ मुंबई यानी बॉलीवुड तक सीमित नहीं रहेगा।
फिल्म निर्माण का विकेन्द्रीकरण क्यों अनिवार्य है?भारतीय फिल्म उद्योग लंबे समय से मुंबई-केंद्रित रहा है। फिल्म निर्माण, वितरण, और प्रोडक्शन हाउस की अधिकतम संख्या आज भी बॉलीवुड में ही केंद्रित है। इससे न केवल एक सांस्कृतिक एकरूपता उत्पन्न हुई है, बल्कि यह देश के अन्य क्षेत्रों की विविधता को हाशिए पर डाल देता है। इसके अलावा, बॉलीवुड पर सत्ता, पैसों और प्रभावशाली परिवारों का नियंत्रण भी कई बार ‘नेपोटिज्म’ और ‘एक ही दृष्टिकोण’ जैसी समस्याओं को जन्म देता है।
इसीलिए जब उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, और अब हरियाणा जैसे राज्य फिल्म सिटी की ओर काम कर रहे हैं, तो यह बस एक इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन हो सकता है।
हरियाणा सरकार के पिंजौर में प्रस्तावित फिल्म सिटी न तो राज्य की सांस्कृतिक हिरणी को प्रेरित करेगा, हाँ, भी युवाओं के लिए नए रोजगार और प्रशिक्षण के मौके भी बनाएगी। रोहतक भी जैसा शहर है और वहाँ पर फिल्म महोत्सव का आयोजन यह साबित करता है कि राज्य अब अपने रचनात्मक क्षेत्र को गंभीरता से ले रहा है।
हरियाणा, जिसकी पृष्ठभूमि में नृत्य, लोक संगीत और परंपराओं की समृद्ध विरासत है, अब खुद ही अपनी कहानियों को बयां करने की स्थिति में आ सकता है। यह परिवर्तन क्षेत्रीय फिल्मकारों को प्लेटफॉर्म तो देगा ही, दर्शकों को भी विविधता से भरपूर, वास्तविक और स्थानीय कहानियों के साथ जोड़ पाएगा।
कैसे टूटेगा बॉलीवुड का एकाधिकार? फिल्म सिटीज़ बनाना विभिन्न राज्यों में होने पर यह संभव होगा कि बड़े बजट की फिल्में भी अब केवल मुंबई पर निर्भर न रहें। इससे टेक्निकल क्रू, कलाकार, लेखक और निर्देशक अपने-अपने क्षेत्रों में रहकर ही गुणवत्तापूर्ण कंटेंट बना सकेंगे।
इसके कई महत्वपूर्ण लाभ सामने आ सकते हैं। सबसे पहले, बजट में बड़ी कटौती संभव होगी क्योंकि मेट्रो शहरों की तुलना में छोटे शहरों और राज्यों में शूटिंग कहीं अधिक सस्ती होती है। इसके अलावा, स्थानीय युवाओं के लिए तकनीकी, क्रिएटिव और सपोर्ट भूमिकाओं में नौकरियों के नए अवसर खुलेंगे, जिससे क्षेत्रीय रोजगार को मजबूती मिलेगी। साथ ही, एक ही ढर्रे पर बनी कहानियों की जगह विभिन्न सांस्कृतिक अनुभवों और भाषाई विविधताओं से प्रेरित कंटेंट सामने आएगा, जिससे सिनेमा में नवाचार को बढ़ावा मिलेगा। इन प्रयासों से बॉलीवुड की एकरूपता में बदलाव आएगा, क्योंकि आज की भारतीय ऑडियंस कंटेंट-ड्रिवन और विविधता से भरपूर सिनेमा की ओर आकर्षित हो रही है। क्षेत्रीय फिल्म सिटी का निर्माण इस नई माँग को पूरा करने में अहम भूमिका निभा सकता है।
दुनिया में आज ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की वजह से दर्शकों के पास विकल्पों की कमी नहीं है। एक छोटी सी फिल्म जो राजस्थान, बिहार, या छत्तीसगढ़ की कहानी हो, वो भी राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराही जा सकती है। इसी डिजिटल युग में, क्षेत्रीय फिल्म सिटीज़ कंटेंट उत्पादन का नया केंद्र बन सकती हैं।
पिंजौर में बनने वाली फिल्म सिटी केवल एक राज्य परियोजना, न कि भारतीय सिनेमा के लिए दिशा बदलाव की निशानी हो सकती है। जब तक फिल्म निर्माण के संसाधन और संभावनाएँ फिर कुछ हाथों में सीमित ही रहेंगी, तब तक सिनेमा समाज का पूरा प्रतिबिंब नहीं बन पाएगा।
हरियाणा की यह पहल वह एक विशाल आंदोलन का रूप ले सकता है जो सिनेमा को केंद्र से बाहर करके हर कोने तक पहुँचा दे। जहाँ गाँव , शहर, बोली, संस्कृति, और परम्पराएं खुद अपने किरदारों के साथ स्क्रीन पर उतरें — बॉलीवुड की सीमाओं से बाहर निकलकर, एक नया ” सिनेमा आकार ले।