कोल्लम मंदिरों में ‘गण गीतम’ के गायन पर राजनीतिक बवाल, कांग्रेस ने जताई आपत्ति

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अंशुल कुमार  मिश्रा

कोट्टुक्कल, केरल 8 April, 2025:केरल के कोल्लम जिले में त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड (TDB) के अधीन कोट्टुक्कल स्थित एक मंदिर में आयोजित ‘गण मेला’ के समारोह के दौरान गाए गए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रार्थना गीत ‘गण गीतम’ ने राज्य में एक नई राजनीतिक बहस खड़ी कर दी  है। कांग्रेस ने यह घटना धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने की एक “राजनीतिक साजिश” के रूप में पेश की है और संबंधित अफसरों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई की माँग  की है।

रविवार को हुए इस संगीत कार्यक्रम में जब एक सांगीतिक मंडली ने ‘गण गीतम’ प्रस्तुत किया, तब से विवाद गहराता जा रहा है। कांग्रेस का आरोप है कि कार्यक्रम के दौरान मंदिर परिसर में आरएसएस के झंडे भी लगाए गए, जिससे धार्मिक स्थल को “राजनीतिक रंग” देने की कोशिश की गई।

‘गण गीतम’ आरएसएस का अधिकारिक प्रार्थना गीत है, जो शाखाओं में ध्वज के समक्ष श्रद्धापूर्वक गाया जाता है। यह गीत भारत माता के लिए समर्पित है और इसका उद्देश्य राष्ट्रभक्ति को प्रकट करना होता है। कांग्रेस और विपक्षी दलों का मानना है कि ऐसे गीतों का मंदिर परिसर में सार्वजनिक रूप से गायन धार्मिक स्थलों का “राजनीतिकरण” करने की कोशिश है।

विपक्ष के विधानसभा नेता वी.डी. सतीशन ने इस मामले को गंभीर चिंता का विषय घोषित किया। उन्होंने कहा, “मंदिरों का उपयोग राजनीतिक एजेंडा चलाने के लिए नहीं करना चाहिए। हम टीडीबी से माँग  करते हैं कि ऐसे कार्यक्रमों  की अनुमति देने वाले अधिकारियों के विरुद्ध तत्काल कार्रवाई की जाए।”

सतीशन ने यह भी आरोप लगाया कि यह गतिविधि सीधे तौर पर केरल हाई कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है। उन्होंने 10 मार्च को कोर्ट द्वारा दिए गए उस फैसले का हवाला दिया जिसमें कडक्कल देवी मंदिर उत्सव में राजनीतिक प्रतीकों के प्रदर्शन और राजनीतिक संगीत पर कड़ी आपत्ति जताई गई थी।

त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड, जो एक वैधानिक और स्वायत्त संस्था है और केरल के करीब 1252 मंदिरों का प्रबंधन करता है, इस पूरे प्रकरण पर अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दे पाया है। वहीं, पुलिस का कहना है कि उन्हें मामले की जानकारी मिली है और वे जाँच  कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है।

आरएसएस के समर्थकों का तर्क है कि ‘गण गीतम’ कोई राजनीतिक गीत नहीं है लेकिन मातृभूमि के प्रति समर्पण की भावना का प्रतीक है और इसे गाते ही कोई अपराध नहीं माना जाना चाहिए।

यह विवाद फिर से यह प्रश्न खड़ा करता है कि क्या धार्मिक स्थलों पर सांस्कृतिक गतिविधियों की आड़ में राजनीतिक विचारधाराओं का प्रचार-प्रसार सही है? और क्या सामाजिक संगठनों की गतिविधियों को धर्म और राजनीति से स्पष्ट रूप से अलग किया जा सकता है?

 आगामी चुनावों को यह मुद्दा और भी राजनीतिक रंग ले सकता है। वर्तमान में, सभी निगाहें त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड और केरल सरकार की अगली कार्रवाई पर हैं।

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