मेघालय ने रेलवे को कहा ‘ना’: बर्नीहाट-शिलांग परियोजना रद्द, ₹209 करोड़ लौटाए जाएंगे

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,8 अप्रैल।
देश में पहली बार किसी राज्य सरकार ने बुनियादी ढांचे के विकास और सांस्कृतिक पहचान के टकराव के चलते एक महत्वपूर्ण रेलवे परियोजना को औपचारिक रूप से खारिज कर दिया है। मेघालय सरकार ने वर्षों से ठप पड़ी बर्नीहाट-शिलांग रेलवे परियोजना को पूरी तरह रद्द करते हुए ₹209.37 करोड़ की राशि केंद्र को लौटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह धनराशि मूलतः ज़मीन अधिग्रहण के लिए आवंटित की गई थी।

री-भोई जिले के डिप्टी कमिश्नर द्वारा 30 मार्च 2017 को अधिग्रहण की गई ज़मीन के लिए आवंटित यह राशि अब सात वर्षों की निष्क्रियता और सिविल सोसाइटी संगठनों के भारी विरोध के बाद वापस की जा रही है।

इस निर्णय से स्पष्ट होता है कि मेघालय सरकार ने एक उच्च स्तरीय समिति गठित की थी, जिसकी अध्यक्षता मुख्यमंत्री कोनराड के. संगमा कर रहे थे। इस समिति का कार्य रेलवे संपर्क के व्यापक प्रभावों, विशेषकर खासी-जयंतिया हिल्स क्षेत्र में, का मूल्यांकन करना था। हालांकि आलोचकों का मानना है कि यह प्रयास “बहुत कम और बहुत देर से” किया गया, क्योंकि इस बीच पूर्वोत्तर के अन्य राज्य तेजी से रेलवे नेटवर्क से जुड़ने की दिशा में आगे बढ़ चुके हैं।

इस फैसले के साथ शिलांग भारत की एकमात्र ऐसी राज्य राजधानी बन जाएगी जहां रेलवे संपर्क नहीं होगा, जबकि आइजॉल, इम्फाल और गंगटोक जैसी छोटी और दूरस्थ राजधानियां रेलवे नेटवर्क का हिस्सा बनने की दिशा में प्रयासरत हैं।

रद्द की गई परियोजना तेतेलिया-बर्नीहाट रेलवे लाइन थी, जिसकी लंबाई केवल 20.5 किमी थी। इसमें से महज़ 2.5 किमी हिस्सा मेघालय में आता था। ₹496 करोड़ लागत वाली इस परियोजना को 2017 में स्थानीय विरोध के चलते रोक दिया गया था।

विरोध के केंद्र में है एक गहरी सांस्कृतिक चिंता—जनसंख्या संतुलन में संभावित बदलावखासी स्टूडेंट्स यूनियन (KSU), फेडरेशन ऑफ खासी जयंतिया एंड गारो पीपल (FKJGP) और अन्य प्रभावशाली संगठनों का तर्क है कि रेलवे के ज़रिए अनियंत्रित प्रवास बढ़ेगा, जिससे स्थानीय जनजातीय पहचान खतरे में पड़ सकती है।

पिछले सप्ताह, इन संगठनों—KSU, FKJGP, जयंतिया स्टूडेंट्स यूनियन (JSU) और ह्निएवत्रेप नेशनल यूथ फ्रंट (HNYF)—ने एक सख्त बयान जारी किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब तक ठोस “एंटी-इन्फ्लक्स नीति” लागू नहीं होती, तब तक राज्य में किसी भी रेलवे परियोजना को पुनर्जीवित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी

मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने सार्वजनिक रूप से रेलवे के आर्थिक लाभ, विशेष रूप से कृषि उत्पादों के परिवहन और आपूर्ति श्रृंखला में सुधार की बात स्वीकार की है। लेकिन उनकी सरकार ने जनमत संग्रह और सहमति निर्माण की नीति अपनाते हुए बेहद सावधानी से कदम बढ़ाए हैं। बावजूद इसके, विकास के लक्ष्य और जनता की आशंकाओं के बीच की खाई को पाटने में अभी तक कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है।

आलोचकों का कहना है कि सरकार सिविल सोसाइटी और राजनीतिक संगठनों के साथ संवाद स्थापित करने में विफल रही है, जिसका नुकसान राज्य को लंबे समय तक भुगतना पड़ सकता है। ₹209 करोड़ की वापसी के साथ मेघालय ने न केवल एक केंद्रीय निवेश के अवसर को गंवाया है, बल्कि आधुनिक संपर्क साधनों के सपने से भी मुंह मोड़ लिया है

जहां एक ओर स्थानीय संगठन अपनी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए सजग हैं, वहीं यह घटना इस बात की चेतावनी बन गई है कि अविश्वास, संवाद की कमी और बदलाव के भय के चलते विकास की गाड़ी पटरी से उतर सकती है—शाब्दिक और रूपक दोनों अर्थों में

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